श्री लंका के पत्रकारों का संघ और भारत की मित्रता
श्री लंका और भारत की प्रगाढ़ मित्रता अत्यंत पुरानी है, जिसका एक ताज़ा अनुभवपिछले अक्टूबर कोश्री लंका के पत्रकारों के द्वारा आयोजित एक समारोह ने हमेंमहसूज़ करने का मौका दे दिया।श्री लंका के पत्रकारों के संघ की 61वीं सालगिरह मुख्य अतिथि श्री लंका के राष्ट्रपति मइत्रीपाल सिरीसेन की प्रमुखता से पिछले 25 अक्टूबर को श्री लंका की राजधानी कोलम्बो के BMICH शाला में सम्पन्न हुई। समारोह के अन्य निमंत्रित अतिथि-गण में श्री लंका के जनसंचार मंत्री तथा प्रतिनियुक्त मंत्री क्रमशः गयंत करुणातिलक और करुणारत्न परणवितान सबके आगे मौजूद थे।
श्री लंका और भारत के पत्रकारों का पुराना गहरा रिश्ता आगे बढ़ाने हेतु श्री लंका के पत्रकारों के संघ की आयोजन-कॉमिटि के द्वारा निमंत्रित IFWJ के पत्रकारों का एक दल भी समारोह के रंग चढ़ाने में सम्मिलित हुआ। उनका हार्दिक स्वागत भारतीय सांस्कृतिक वाद्य-यंत्र नगाड़ा-वादन के द्वारा किया गया। समारोह में राष्ट्रपति का हार्दिक स्वागत भारतीय पत्रकारों के द्वारा भारतीय रीति-रिवाज़ों के अनुकूल किया गया तथा एक विशेष स्मरण-पुरस्कार के द्वारा राष्ट्रपति को आनंदित किया गया। श्री लंका के राष्ट्रपति मइत्रीपाल सिरिसेन पत्रकारों के संघ में सम्मिलित होते हुए कहा किजिन संचार-माध्यमों के द्वारा आज मुझे वाक-प्रहार किये जा रहे हैं, उनको पहले स्वावलंबी होकर निर्भीकता से काम करने की शक्ति नहीं मिली। जो संचार-मध्यम मेरे किलफ़ इलज़ाम लगा रहे हैं, वे मुझे गिरा नहीं सकते।
राष्ट्रपति ने भारत से आए हुए पत्रकारों को अपनी कृतज्ञता का अर्पण किया और संचार माध्यम में दोनों देशो की जो संबंधता गूँथी ऊई थी, उनका भी सादर स्मरण किया। राष्ट्रपति ने कहा- दोनों देशो के पत्रकारों ने जिन-जिन युगों में जिन-जिन चुनौतियों का सामना किया, वे अकसर एक-दुसरे से भिन्न नहीं हैं। आज तक की अवधि में दोनों देशों का रिश्ता शस्त्र, संस्कृति, साहित्य, सभ्यता तथा शिष्टाचार आदि की दृष्टियों में दृढ़ है। 40वें दशक की ओर नज़र दौड़ाए तो, उस समय दोनों देशों के राजनीतिज्ञों की सर्वप्रमुख उत्तरदायित्व आपने देश तथा जाति के लिए स्वतंत्रता-संग्राम आगे बढ़ाना था, जिसे वे अपनी फर्ज़ समझना नहीं भूले थे।
भारत और श्री लंका ने एक ही दशक में स्वतंत्रता पायी। भारत का अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता पाना श्री लंका के स्वतंत्रता-संग्राम के लिए बहुत बड़ा आग्रह हुआ और जिस आग्रह से मिली शक्ति ने श्री लंका के स्वतंत्रता-संग्राम का मार्गदर्शन कराया। इस स्वतंत्रता-संग्राम में पत्रकार भी राजनीतिज्ञों की तरह अग्रसर थे और वे लेखनी के द्वारा अपना अमूल्य योगदान दिया करते थे। 50वें दशक से, तब तक स्वतंत्रता मिल चुकी थी, पत्रकारों को ही नहीं, बल्कि हर क्षेत्र के विद्वानों को अपने देश के लिए अपना फ़र्ज़ निभाने का मौका मिल गया। वर्तमान में हम सब स्वतंत्र संचार-माध्यम की चर्चा करते हैं। दुनियावाले आज स्वतंत्र संचार-माध्यम की कल्पना करते हैं। UNA से लेकर विश्व के जो विकसित देश हैं, इन्हें शीलता, कल्याण, जनतंत्र, स्वतंत्रता, मानव-अधिकारआदि की पहलुओं से सशक्त बनाने में पत्रकार बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं, इसलिए वर्तमान सरकार के रूप में हम अपने सरकारी सद्धांत के द्वारा स्वतंत्र संचार-माध्यम को सशक्त बनाने में पत्रकार जिन सुविधाओं की आशा करते हैं, इन सबके देने का उत्तरदायित्व उठाते हैं।
इस समारोह में राष्ट्रपति मयित्रीपाल सिरिसेन के हाथ से श्री लंका के दस वरिष्ठ पत्रकारों को सम्मानित किया गया और मूल्य पुरस्कारों के द्वारा भी उनकी सेवा सराही गयी। पत्रकारों के संघ के बीस सदस्यों को जिन्होंने ग्रंथ-लेखन में अपना जीवन खो दिया था,‘लेखन अभिमान’ पुरस्कार के द्वारा सम्मानित किया गया।यह श्री लंका के पत्रकारों का प्रथम संघ है, जिसकी स्थापना सन् 1955 में पूज्य उडकॅन्दवल सिरि सरणंकर बंते जी के द्वारा की गयी। उन्होंने भारतीय शांति निकेतन से पढ़ाई की। भारतीय स्वतंत्रता-संग्राम से तथा इसमें जो अखबार आवाज़ दे रहे थे, उनसे पाये हुए अनुभओंने उडकॅन्दवल सिरि सरणंकर बंते जी को इस संघ की स्थापना करने का आग्रह दिया। तब से आज तक श्री लंका में उपजे महान पत्रकार इस संघ को आगे बढ़ाने में अपना खून-पसीना बहाते थे। संघ की 61वीं सालगिरह आज साक्ष्य दे रही है कि वही खून और वही पसीना आगे भी बहते ही रहेंगे।
— धनंजय वितानगे