लघुकथा

मेहमान

सुरेश अपने एक रिश्तेदार के यहाँ शादी में शामील होने आया था । कल उसके बुआ के लडके किशोर की शादी थी । मेहमानों के आने का सिलसिला चल ही रहा था । मेहमानों के आने के बाद उन्हें जलपान वगैरह कराकर उनके लिए पहले से तय कमरे में उनके ठहराने का इंतजाम कर दिया जाता ।
सुरेश इन सभी कामों में अपनी बुआ का हाथ बंटा रहा था । उसके पिताजी ने उसे बताया था ‘ कहीं भी किसीके भी यहाँ शादी या किसी विशेष आयोजन में आयोजकों की हरसंभव मदद करनी चाहिए ताकि आयोजन अच्छी तरह नीभ जाए । ‘
शाम होने को था । एक आलिशान विदेशी गाड़ी बुआ के दरवाजे पर आकर रुकी । गाड़ी देखते ही किसी काम में व्यस्त महिलाओं से घीरी बुआजी गाड़ी की तरफ बढ़ती हुयी दोनों हाथों से अभिवादन करती हुयी चहक पड़ीं ” अरे नागरजी ! आइये ! आइये ! अहोभाग्य हमारे जो आप पधारे ! आइये ! ”
कहती हुयी स्वयं उन्हें लेकर दीवानखाने में बिठाया और जलपान वगैरह कराया । जब तक नागरजी रहे बुआजी उनके साथ ही उनकी तीमारदारी में लगी रहीं । नागरजी ने एक लिफाफा बुआ जी को थमाया और चलने की इच्छा जताई । बुआ जी ने उनसे कल शादी तक रुकने का आग्रह किया लेकिन नागरजी ने साफ़ इंकार कर दिया । कहा ” कमला ! तुम खुशकिस्मत हो कि मैं थोड़ी देर के लिए ही सही तुम्हारे यहाँ आ गया । बहुतों को तो यह भी नसीब नहीं होता । और फिर मैंने जो देना था वह इस लिफाफे में है ही अब मेरी क्या जरुरत ? ” कहकर वह गाड़ी में सवार वहाँ से नीकल गए ।
हतप्रभ बुआजी विवशता का भाव चेहरे पर लिए साफ़ साफ़ फरक महसुस कर रही थीं अपने सामान्य मेहमानों और इस रईस मेहमान में ।
वहीँ सुरेश ने भी अन्य मेहमानों के मुकाबले नागरजी की विशेष आवभगत को महसुस कर लिया था ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।