दोहे – किरणों से होने लगा सिन्दूरी आकाश
किरणों से होने लगा, सिन्दूरी आकाश।
तम का निश्चित जानिये, होना सकल विनाश॥
पंछी चहचाने लगे, कलरव है चहुँ ओर।
नव आशा ले आ गयी, नवल सुहानी भोर॥
पंछी उड आकाश में, गाते है यह गीत।
तम पर होती है सदा, उजियारे की जीत॥
गिरिवर पर चाँदी बिछी, हुए सुनहरे ताल।
किरणों ने सबको किया, देखो मालामाल॥
छूकर खिलते पुष्प को, बही सुगंध समीर।
कलियों की मुस्कान से, बगिया हुई अमीर॥
कालचक्र चलता सदा, देखो अपनी चाल।
फूल कभी पतझर कभी,सदा बदलता हाल॥
खिले कमल दल ताल में, कूके कोयल बाग।
भँवरे फिर करने लगे, कलियों से अनुराग॥
खन-खन की आवाज से, गूँज रही हर ठौर।
हाली बैलों को लिये, चले खेत की ओर॥
पनघट पर पनहारियाँ, करती हँसी ठिठौर।
घूँघट के हर चाँद से, हुई सुहानी भौर॥
बंसल मन के दीप को, रखिये सदा जलाय।
जाने कब किस राह मे, तम काँटे बिखराय॥
— सतीश बंसल
१७-१२-२०१६