मुक्तक/दोहा

दोहे – किरणों से होने लगा सिन्दूरी आकाश

किरणों से होने लगा, सिन्दूरी आकाश।
तम का निश्चित जानिये, होना सकल विनाश॥

पंछी चहचाने लगे, कलरव है चहुँ ओर।
नव आशा ले आ गयी, नवल सुहानी भोर॥

पंछी उड आकाश में, गाते है यह गीत।
तम पर होती है सदा, उजियारे की जीत॥

गिरिवर पर चाँदी बिछी, हुए सुनहरे ताल।
किरणों ने सबको किया, देखो मालामाल॥

छूकर खिलते पुष्प को, बही सुगंध समीर।
कलियों की मुस्कान से, बगिया हुई अमीर॥

कालचक्र चलता सदा, देखो अपनी चाल।
फूल कभी पतझर कभी,सदा बदलता हाल॥

खिले कमल दल ताल में, कूके कोयल बाग।
भँवरे फिर करने लगे, कलियों से अनुराग॥

खन-खन की आवाज से, गूँज रही हर ठौर।
हाली बैलों को लिये, चले खेत की ओर॥

पनघट पर पनहारियाँ, करती हँसी ठिठौर।
घूँघट के हर चाँद से, हुई सुहानी भौर॥

बंसल मन के दीप को, रखिये सदा जलाय।
जाने कब किस राह मे, तम काँटे बिखराय॥

सतीश बंसल
१७-१२-२०१६

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.