लघुकथा – बीपीएल
“नमस्कार ।” अचानक घर आये सूटबूटधारी युवक ने उन्हें अभिवादन किया ।
“जी, नमस्कार ।आइए बैठिए ।”उनका पहले से ही फूला हुआ सीना कुछ और फूल गया, वे इस योग्य हैं ही कि लोग उन्हें अभिवादन करें , उनकी तारीफ में गिर-गिर जायें ।
“और क्या हाल है सर ?”युवक ने बेहद विनम्रता से कहा ।
“बस, सब चकाचक है ।”वे मुस्कराये ।
“लड़के-बच्चे? ”
“पूछो मत। सभी सेट हैं ।एक मास्टर है, एक बाबू है और एक•••••।”
“रुकिए सर, रुकिए ।फिर तो आपकी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी है। हजारों रुपये हर महीने आते होंगे ।”
“हाँ, यह तो है ।”
“खेती-पाती ?”
“सौ बीघे की खेती है ।”
“वाहन ?”
“चौपहिया-दुपहिया सब कुछ ।”
“बैंक बैलेन्स ?”
“बहुत ।”
“लगता है, इस गाँव में आप सबसे सम्पन्न आदमी हैं ?”
“सो तो है, मुझसे आँखें मिलाने की किसी में हिम्मत नहीं ।”
“अच्छा चलता हूँ सर, नमस्कार ।” युवक उठ खड़ा हुआ ।
“अरे रुको रुको ।यह तो बताओ कि तुमने यह सब क्यों पूछा? ”
“यह केन्द्र सरकार का सर्वे है सर। सरकार गरीबों की किस्मत बदलने को तत्पर है, इसलिए लोगों की आर्थिक स्थिति आंकी जा रही है ।”
“एक मिनट ठहरो ।” कहकर वे भीतर गये, फिर निकल युवक के हाथ में कुछ थमाते हुए बोले -“यह लो, यह मेरा बी0पी0एल0 कार्ड है ।सरकारी योजनाओं का लाभ मुझे हमेशा मिलता रहा है, आगे भी मिलना चाहिए ।”
— मुन्नू लाल