धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

“ईश्वर एक अनुभूति”

ईश्वर कौन है, कैसा है-यह जान लेने पर, वह भी रोजमर्रा के उदाहरणों से विज्ञान सम्मत शैली द्वारा समझ लेने पर किसी को भी कोई संशय नहीं रह जाता कि आस्तिकता का तत्त्व दर्शन ही सही है . यह इसलिए भी जरूरी है कि ईश्वर पर आस्था और विश्वास यदि धरती पर नहीं रहा तो समाज में अनीति मूलक मान्यताओं, वर्जनाओं को लांघकर किये गए दुष्कर्म का ही बाहुल्य चारों ओर होगा, कर्मफल से फिर कोई डरेगा नहीं और चारों ओर नरपशु, नरकीटकों का या ”जिसकी लाठी उसकी भैंस का” शासन नजर आएगा . अपने कर्मों के प्रति व्यक्ति सजग रहे, इसीलिए ईश्वर विश्वास जरूरी है . कर्मों के फल को उसी को अर्पण कर उसी के निमित्त मनुष्य कार्य करता रहे, यही ईश्वर की इच्छा है .
ईश्वर शब्द बड़ा अभव्यंजनात्मक है .सारी स्रष्टिमें जिसका एश्वर्य छाया पड़ा हो, चारों ओर जिसका सौंदर्य दिखाई देता हो-स्रष्टिके हर कण में उसकी झाँकी देखी जा सकती हो, वह कितना ऐश्वर्यशाली होगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती . इसीलिए उसे अचिन्त्य बताया गया है . इस सृष्टि में यदि हर वस्तु का कोई निमित्त कारण है-कर्त्ता है, तो वह ईश्वर है .यही पर ब्रह्म-ब्राह्मी चेतना जिसे हर श्वांस में हर कार्य में, हर पल अनुभव किया जा सकता है-सही अर्थों में ईश्वर है . प्राणों के समुच्चय को जिस प्रकार महाप्राण कहते हैं, ऐसे ही आत्माओं के समुच्चय को-सर्वोच्च सर्वोत्काष्टरूप को-हम सब के परमपिता को परमात्मा कहते हैं, ईश्वर के संबंध में एक गूढ़ विवेचन का सरल सुबोध प्रतिपादन हर पाठक-परिजन को संतुष्टकर उसे सही अर्थों में आस्तिक बनाएगा.

ईश्वर कैसा है व कौन है यह जानने के लिए हमें उसे सबसे पहले आत्मविश्वास-सुदृढ़ आत्म-बल के रूप में अपने भीतर ही खोजना होगा . ईश्वर सद्गुणों का-सत्प्रवृत्तियों का-श्रेष्ठताओं का समुच्चय है जो अपने अन्दर जिस परिमाण में जितना इन सद्गुणों को उतारता चला जाता है, वह उतना ही ईश्वरत्व मे होता चला जाता है . ईश्वर तत्व की-आस्तिकता की यह परिभाषा अपने आप में अनूठी है . उनकी लालित्यपूर्ण भाषा में ईश्वर ”रसो वैसैः” के रूप में भी विद्यमान है तथा वेदान्त के तत्त्वमसि, अयमात्मा ब्रह्म के रूप में भी . व्यक्तित्व के स्तर को ”जीवो ब्रह्मैव नापरः” की उक्ति के अनुसार परिष्कात कर परमहंस-स्थित प्रज्ञ की स्थिति प्राप्त कर आत्म साक्षात्कार कर लेना ही ईश्वर दर्शन है-आत्म साक्षात्कार है-जीवन्मुक्त स्थिति है .

ईश्वर के संबंध में भ्रान्तियाँ भी कम नहीं हैं . बालबुद्धि के लोग कशाय कल्मशों को धोकर साधना के राज-मार्ग पर चलने को एक झंझट मानकर सस्ती पगडण्डी का मार्ग खोजते हैं . उन्हें वही शार्टकट पंसद आता है . वे सोचते हैं कि दृष्टिकोण को घटिया बनाए रखकर भी थोड़ा बहुत पूजा उपचार करके ईश्वर को प्रसन्न भी किया जा सकता है व ईश्वर विश्वास का दिखावा भी . जब कि ऐसा नहीं है . उपासना, साधना, आराधना की त्रिविध राह पर चल कर ही ईश्वर दर्शन संभव है यही सच हैं व तत्त्व-दर्शन के साथ-साथ व्यावहारिक समाधान भी मिलता हैं .

प्रतिभा देशमुख

श्रीमती प्रतिभा देशमुख W / O स्वर्गीय डॉ. पी. आर. देशमुख . (वैज्ञानिक सीरी पिलानी ,राजस्थान.) जन्म दिनांक : 12-07-1953 पेंशनर हूँ. दो बेटे दो बहुए तथा पोती है . अध्यात्म , ज्योतिष तथा वास्तु परामर्श का कार्य घर से ही करती हूँ . वडोदरा गुज. मे स्थायी निवास है .