तेरे ख्वाब
इस कदर वो खुद को सताते चले गए
गाफ़िल से अपने दिल को लगाते चले गए
दिनभर किया जतन की तुझे याद ना करें
फिर रातों को तेरे ख्वाब ही आते चले गए
जिसने हमे सिखाया मोहब्बत है इक सजा
खुद आशिकी की ज़द में वो आते चले गए
चल तू नहीं मिला तो तेरी याद ही सही
बस इसी भरम से दिल को मनाते चले गए
जब भी भिगोये होंठ तो पाया तुझे करीब
यूं मयकशी में खुद को डुबाते चले गए
अपनी शराफ़तों का हमें ये सिला मिला
मरहम भी हम पे चोट लगते चले गए
सफर का जो मज़ा है फ़क़त रास्तों में
मंज़िल पे हम भी धूल उड़ाते चले गए
(ग़ाफ़िल- बेपरवाह )