गीत/नवगीत

भला क्या हासिल ?

भला क्या हासिल ?

साफ़ कर लो भले तुम
घर ‘ गली ‘ मोहल्ल्ले को
जब तलक साफ़ ना हो मन
तो भला क्या हासिल  ?

पुरी दुनिया की जो दौलत
भी तुमने पायी है
बेच कर नूर औ ‘जमीर
भला क्या हासिल ?

हर घडी पल जो तुम्हें
रिश्ते नए मिल जाएँ
संग ना हों तेरे माँ बाप
भला क्या हासिल  ?

दान करता है मंदिर ‘
मस्जिद औ गुरुद्वारों में
चूस कर रक्त गरीबों का
भला क्या हासिल  ?

घर हो महका तेरा जो
मीठे औ पकवानो से
साथ ना दे जो तबियत
तो भला क्या हासिल ?

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।