गीत/नवगीत

गीत : गुजरे लम्हे

मेरी पहली रचना उस पिता की है जिसको अपनी मर्ज़ी से शादी करने पर घर से निकाल दिया जाता है और कुछ साल बीतने पर उसकी पत्नी का निधन हो जाता है और उसकी बेटी जो अभी महज एक साल की है… उस पिता की अपने माँ बाप से गुहार है जो कि मेरी कविता के माध्यम से आपको दिखाई देगी..

  गुजरे लम्हे सब बीत गए
सागर के मोती सूख गए
मेरे घर में एक आग लगी
उसको बुझाने आ जाओ
अम्मा बाबा अब छोड़ो भी
मुझको अपनाने आ जाओ….

मैं घर में सबसे छोटा हूं
माँ के आँखो का तारा हूँ
मेरे भी अपने सपने हैं
उनको संवारने आ जाओ
अम्मा बाबा अब छोड़ो भी
मुझको अपनाने आ जाओ…

     मैं उसको छोड़ नहीं सकता
मेरी भी कुछ मजबूरी है
हूँ तन्हा मैं तुम सबके बिन
मिलना अब बोहोत जरूरी है

     कंधो पे लाचारी का
हर बोझ उठाए बैठा हूँ घर के ऊपर
पत्नी कि तस्वीर लगाए बैठा हूँ

   मरते – मरते उसने अपनी
बच्चि का दर्पण छोड़ा है
उसका बस एक सपना था
दादी – दादा का प्यार मिले
मेरी बिटिया को तुम सबका
एक छोटा सा परिवार मिले…

मेरी बच्चि धीरे – धीरे
माँ को आवाज लगाती है
वो रोती है चिल्लाती है
घबराती है चुप हो जाती है

  अब छोड़ो ये सारा गुस्सा
जल्दी से पास मेरे आओ
हूँ तन्हा तुम सबके बिन
मुझको अपनाने आ जाओ…

अम्मा बाबा अब छोड़ो भी……

आर्यन उपाध्याय ऐरावत

मेरा नाम आर्यन उपाध्याय है. मैं अभी एम. एस. सी कर रहा हूं. लेखन का शौक मुझे बचपन से है. मैं गाने भी लिखता हूँ और कविता लेखन का भी मुझे शौक है. मैं वाराणसी का रहने वाला हूँ.