ब्लॉग/परिचर्चासामाजिक

विभिन्नता

हमारा देश विभिन्नताओं का देश है । आज देश के परिदृश्य पर नजर डाला जाये तो यह बहुत ही तर्कसंगत लगता है । अभी कुछ ही दिन पहले तक हमारे देश में नोट बंदी एक बहुत बड़ी चर्चा का विषय बन गया था । क्या आम क्या खास सभी इसमें अपना अपना मत व्यक्त करने और उसके पक्ष या विपक्ष में  होने के अपने तर्क प्रस्तुत कर रहे थे । पांच राज्यों में होनेवाले चुनावों की घोषणा ने भी पक्ष और विपक्ष की राजनीति को गरमा दिया है । कई दल उनके अपने विचार अपने तर्क सब विभिन्नता ही तो बयान कर रहे हैं  । सबके अपने अपने रास्ते हैं तरीके हैं लेकिन मंजिल एक ही है ‘ जनता का मत प्राप्त करना ‘ । और इसके लिए उन्हें अलग अलग तरीकों से ही सही जनता को रिझाने का काम करना पड़ रहा है । कोई किसी धर्म विशेष की बात करता है तो कोई धर्म निरपेक्ष होने का तमगा स्वयं ही हासिल करना चाहता है । कोई अगड़ों का तो कोई पिछड़ों का मसीहा बनने का दम भरता है । सबकी अपनी अपनी दुकानदारी है और सभी अपने ग्राहकों को यथावत रखते हुए उनमें नए ग्राहक जोड़ने का प्रयत्न करते हैं । व्यापार के नए फार्मूले पर अमल करते हुए सभी पार्टियाँ विज्ञापन पर ज्यादा ध्यान दे रही हैं । इतना ही नहीं ये पार्टियाँ कई चीजों पर दी जा रही छुट का भी  बखूबी नक़ल कर जनता को भी विशेष ऑफ़र दे रही हैं । कोई कर्ज में छुट की बात कर रहा है तो कोई नशा मुक्ति की वहीँ कोई मोबाइल देने की बात कर रहा है । एक पार्टी ने तो बाकायदा लोगों को लैपटॉप देकर दिखा भी दिया है । कई करोड़ लोगों की आबादी में से कुछ हजार लोगों को मुफ्त लैपटॉप बांटकर यह कथित पार्टी अपनी घोषणा पत्र पर अमल करने का दम भरती है । लोग आज के इस आधुनिक युग में भी इन दलों के झांसे में आ जाते हैं । इनमें से एक दल के मुखिया के जन्मदिवस के नाम पर सैकड़ों करोड़ रूपया पानी की तरह बहा दिया जाता है । एक दलित महिला नेता ने तो अपनी मनपसंद सैंडल लाने के लिए मुंबई से चार्टर्ड प्लेन लखनौ भेज दिया था । खैर हम बात कर रहे थे विभिन्नता की । अब बात कर लेते हैं एकदम ज्वलंत विषय जो दक्षिण में विरोध के नए आयाम स्थापित कर रहा है । जलिकट्टू ! जी हाँ ! जलिकट्टू जिसे सुप्रीम कोर्ट ने प्रतिबंधित किया हुआ है । अब दक्षिण की जनता  इसे अपनी अस्मिता पर हमला मानते हुए खुलकर इस पर रोक लगाने के उच्च न्यायालय के फैसले का खुल कर विरोध कर रही है । संविधान से भी ऊँचा परंपरा को माना जा रहा है जिसकी रक्षा के लिए मोदीजी से अध्यादेश लाकर राहत देने की गुजारिश की गयी । लेकिन उन्हें निराशा ही हुयी । यहाँ मूक जानवरों पर परंपरा के नाम पर अत्याचार के समर्थन में प्रदर्शन हो रहे हैं । पूरा दक्षिण भारत आंदोलित है । इसमें भी कुछ अलगाववादी नेता राजनीतिक रोटी सेंकने में माहिर दिख रहे हैं । यहाँ हमारे देश में जानवरों की यह हालत है वहीँ इंग्लॅण्ड के लन्दन शहर में वहाँ की सरकार ने कुत्तों को घुमाने के लिए k9 नाम से एक टूरिस्ट बस की मुफ्त सेवा शुरू की है । इस अनोखी डबल डेकर बस में कुत्तों को अपने मालिकों के साथ मुफ्त तफरीह की व्यवस्था की गयी है । उस बस के मार्ग में भी कुत्तों के लिए उपयुक्त पब या बगीचे की पर्याप्त व्यवस्था की गयी है । लन्दन के कुत्तों की भी बल्ले बल्ले हो गयी है और हमारे यहाँ ………? चलते चलते एक सकारात्मक खबर में भी विभिन्नता को ही बल मिलता है । हमारे  देश में जहाँ आये दिन कन्या भ्रूण हत्या ‘ महिलाओं पर अत्याचार या दहेज़ हत्या की खबरें देखना सुनना आम है वहीँ महाराष्ट्र के बिड जिले के कुम्भेरपाल गाँव के नाई अशोक का कन्या जन्मदर बढ़ाने का सन्देश देने का प्रयास कम सराहनीय नहीं है । अशोक इस गाँव में जेंट्स सलून चलाते हैं और वह अपनी दुकान पर नई जन्मी बच्चियों के पिता को छह महीने तक फ्री में शेविंग व हेयर कटाई की सेवा दे रहे हैं । इस योजना की जानकारी देते हुए उन्होंने अपने दुकान पर एक बोर्ड टांग रखा है । विभिन्नता को दर्शाता हमारे देश का एक रंग यह भी है । क्यों न हो ? आखिर विभिन्नता में एकता ही हमारा मूलमंत्र जो है ।

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।