धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

आत्मबल से मोक्ष तक

हर व्यक्ति सफल होना चाहता है, शिखर चाहता है, परन्तु विवेक का प्रयोग नहीं करता . जीवन को सफल बनाने की तमाम परिस्थितियों के बावजूद विवेक न होने पर व्यक्ति रोशनी के बीच भी अंधेरों से घिरा रहता है. निराशा और हताशा प्राप्त करता है जो हमारे मनोबल को कमजोर कर देती है.
आप अपनी रूचि के अनुरूप अपना लक्ष्य निर्धारित करके, अपनी पूरी शक्ति लक्ष्य को पूरा करने में लगा देंगे और आलस्य का त्याग करके जीवन के प्रति खुद को और अधिक समर्पित करेंगे तो वह “आनंद” दूर नही है
विश्व का सबसे बड़ा आकर्षण “आनंद” है. प्रत्येक व्यक्ति के जीवन का लक्ष्य आनंद की प्राप्ति है . जिसको जिस क्षेत्र में आनंद मिलने लगता है उसे किसी दूसरी वस्तु में मन नहीं लगता.
साधक को “शाश्वत आनंद” की प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करना चाहिए .एक बार जो उस परम आनंद में डूब गया फिर वह बाहर नहीं निकलना चाहता .
आत्म बल उसे आध्यात्मिक ऊंचाइयों की ओर ले जाने में सहायक होता है . कर्म के अभाव में मनुष्य निष्क्रिय बन जाता है. सर्वदा कर्मशील बने रहना अनिवार्य है . कर्म से शारीरिक और मानसिक श्रम का योग होता है.यह योग हमारी आंतरिक शक्ति को सदैव जाग्रत रखता है. प्रभु में विश्वास रखिए. अलौकिक शक्तियां अपने अंदर ही विद्यमान है यह तो ईश्वरभक्ति द्वारा मन में स्वत: प्रकट होती हैं .
धर्म कोई भी हो परमात्मा तो एक ही हैं और भक्त जिस भाव से उनको याद करता है, भगवान उनको भी वैसा ही अनुभव देने लगते है.
भगवान सभी रूपों में सबके भीतर मौजूद हैं. सृष्टि में ऐसा कुछ भी नहीं, जिसमें भगवान न हो इसलिए जो सच्चे ह्रदय से याद करते हैं, वे मोक्ष पाकर हमेशा के लिए उनके पास चले जाते हैं.

प्रतिभा देशमुख

श्रीमती प्रतिभा देशमुख W / O स्वर्गीय डॉ. पी. आर. देशमुख . (वैज्ञानिक सीरी पिलानी ,राजस्थान.) जन्म दिनांक : 12-07-1953 पेंशनर हूँ. दो बेटे दो बहुए तथा पोती है . अध्यात्म , ज्योतिष तथा वास्तु परामर्श का कार्य घर से ही करती हूँ . वडोदरा गुज. मे स्थायी निवास है .