“ग़ज़ल”
वक्त ने ही हमें सताया है।
वक्त ने ही हमें सम्हाला है।
दास्ताँ और से कहें क्या क्या
जिन्दगी में सबने रुलाया है।
काफिला साथ है मेरे फिर भी;
जिन्दगी का बसर ये’ तनहा है।
फिक्र करता वही जमाने की
कद्र जो वक्त की न करता है
सब्र करते रहे हमेशा ही
हाथ खाली हमको मिला क्या है
ऐ! खुदा तू बता इबादत के;
इस जुनूँ में अब रक्खा क्या है ।
छोड़ कर पैर के निशां जाओ
याद जग को कुछ भी न रहता है।
पुष्प का जो मिटा सके जीवन
दौर ऐसा अभी न आया है
पुष्प लता शर्मा