कहानी

कहानी – हादसा

छमाही की परीक्षा समाप्त हो चुकी थी.सभी को पढाई से कुछ दिन का छुटकारा मिल गया था . क्योकि विश्वविद्यालय की तरफ से फाइनल वष॔ की कक्षाओं को मैसूर पिकनिक पर जाने का अवसर जो प्राप्त हुआ था.दो बसे जा रही थी.एम ए और एम काम के लगभग सभी विद्यार्थी जा रहे थे.यूॅ तो दो महीने पहले ही जाने वालों के नामों की लिस्ट बन गई थी परन्तु अब दो दिन ही बचे थे तो एक बार फिर सबको बता दिया गया.पूरा माहौल खुशनुमा था.सभी जाने वाले बहुत एक्साइटेड थे.रुपाली ने हाॅ तो कर दिया था जाने के लिये परन्तु उसके चेहरे पर चिंता के भाव साफ दिखाई दे रहे थे.
चिंता हो भी क्यो न.आखिर माॅ रूपा और एक भाई आशीष के अलावा उसका था ही कौन.?पिता बचपन में हो गुजर गये थे उनकी एक दुकान थी जिसको पिता के बाद माॅ ने सम्भाला था.बच्चे छोटे होने की बजह से वो दुकान भी ज्यादा देर खोल नही पाती थी अतः कमाई भी कम होती थी.घर पर भी रूपा पङोसियों के कपङे सिलती थी.परन्तु दोनो बच्चों की पढाई में उसने कभी कमी नही होने दी.पैसे की ज्यादा कमी होती तो जेवर बेच देती.अपने रूपाली को वो एहसास नही होने देती थी कभी किसी बात का.परन्तु रूपाली अनभिज्ञ नही थी उनकी परेशानियों से.कल माॅ को उसने परेशान देखा था बहुत पूछने पर भी कुछ जान न सकी थी.पर उसके हाथ ठेकेदार का भेजा वो नोटिस लग गया था.जो किराया न जमा होने पर उसकी माॅ के नाम भेजा था
अपने विचारों में खोई थी वह कि तभी पीछे से आवाज आई
“रूपाली क्या हुआ घर नही चलना है कबसे ढूढ रही हूॅ–“लीना की आवाज थी
“हाॅ चल–“विचारों को झटक कर उठी वह और दोनो घर चली गई
रूपाली का जैसा नाम था
वैसी ही वो वला की खूबसूरत थी.किसी आसमान से उतरी परी से कम न थी उसकी सुन्दरता.एक-एक अंग तराशा हुआ.ईश्वर ने न जाने उसे कितना रूप योवन दे दिया था .निकलता हुआ कद,इकहरा बदन,तीखे नाक नक्श,पतली कमर लम्बी ग्रीवा सीप सी पलके,होंठ गुलाब की पंखुङी की तरह.हॅसती तो ढेरों मोती बिखर जाते.ओडिसी वाला थी वो.रूप सौंदय॔ से लदी हुई.इठलाकर जब वो यूनीवर्सिटी के क्लास रूम में जाती तो नवयुवकों का दिल मचल जाता.तरह-तरह के नामों से पुकारी जाती वो.सबकुछ जानते हुये वो सारी बाते दरकिनार रख कर अनभिज्ञता दिखाती थी.
क्योकि ऐसे शोहदों के मुॅह लगना मतलब अपना समय बर्बाद करना और न ही अभी तक कोई लङका उसका दोस्त बना था.फिलहाल वह र्सिफ अपनी पढाई पूरी करने नौकरी करना चाहती थी.जो अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा सके.माॅ को जल्दी से जल्दी काम से छुटकारा देना चाहती थी.यूॅ तो रूपाली सीधी साधी लङकी थी परन्तु माॅ को व्यस्तता के कारण घर के फैसले सदैव उसी ने लिये है.अतः वह कोई भी फैसला वक्त पर नही छोङती.
आज जब वह घर पहुॅची तो माॅ को फिर परेशान देखा.
-“क्या बात है माॅ..तवियत तो ठीक है आपकी–“प्यार से पास बैठते हुये पूछा रूपाली ने.
-“नही कुछ भी तो नही–“हकलाते हुये रूपा खुद को सम्भालने की कोशिश कर रही थी.परन्तु रूपाली की जिद के आगे आज उसकी एक भी नही चली और उसे बताना ही पङा.
-“आज कृपाल ठेकेदार धमकी देकर गया है कि चार महीने के अन्दर अगर किराया न जमा किया तो वह दुकान से सामान निकाल कर फेक देगा—“चिंतित स्वर में बोली रूपा
जबकि वो ये बात छुपा गई कि ठेकेदार की शुरू से ही उस पर बुरी नजर थी.कई बार वह रूपा के साथ जबरजस्ती करने की कोशिश कर चुका था परन्तु उसके सख्त व्यवहार के कारण वह सफल नही हो पाया था और अब उसकी नजर रूपाली पर थी.जिसकी वजह से रूपा और अधिक भयभीत थी.खुद को बचा लिया क्या बेटी को उस राक्षस से बचा पायेगी.ये चिंता उसे दिन रात खाये जा रही थी.रूपाली को बताकर वह उसकी पढाई में बिध्न नहि डालना चाहती थी अतः चुप ही रही.घंटो रोती रहती थी वह अपनी विवशता पर.
-धैय॔ रखिये माॅ बस कुछ महीने ही तो बचे है.परीक्षा खत्म होते ही मै नौकरी तलाश लूॅगी.फिर सब ठीक हो जायेगा.फिर चार महीने का समय भी है हमारे पास–“धैय॔ता से समझाया माॅ को रूपाली ने
तभी रूपाली का फोन बजा
-“हेल्लो –“कौन लीना..?हाॅ बोल,,-”
-“हेल्लो–रूपाली तुमने पैकिंग कर ली पिकनिक की–“लीना की आवाज आई
-“अभी नही-“कल कर लूॅगी-“अनमनी सी बोली रूपाली
-“अरे यार तू हमेशा लेट ही रहती है-“लीना की आवाज आई.
दोनो सहेली काफी देर तक बात करती रही.रूपाली भी सबकुछ भूल गई और बहुत खुश थी.माॅ ने रूपाली को खुश देखा तो वो सबकुछ भूल कर बेटी के पिकनिक की तैयारी में लग गई.वैसे भी वो तो चाहती ही थी कि रूपाली इस शहर से दूर हो जाये पर कहा भेज देती कोई तो नही था उसका.
दूसरा दिन पूरा तैयारी में ही गुजर गया.लीना भी आ गई थी.दोनों सहेलियों ने तैयारी में एक दूसरे की मदद की.रात हो चुकी थी लीना घर जा चुकी थी रूपाली को सावधानी की डेरों हिदायतें देकर माॅ भी सो गई थी और रूपाली भी.
सुबह लीना के घर होकर जाना था तो रूपाली जल्दी उठ कर तैयार हो गई उर माॅ से विदा लेकर निकल गई.
रूपाली और लीना जैसे ही यूनीवर्सिटी के गेट से दाखिल हुई कि वहाॅ रोज से ज्यादा लङकों की भीङ थी.आने जाने वाली लङकियों पर अभद्र टिप्पणी करना ही उनका काम होता था
-“अरे””””आज तो विजली गिरेगी—“वो दोनों जैसे ही आगे बढी कि पीछे से आवाज आई.वो पहचानती थी उस आवाज को.केशव नाम था. वो दूसरी कक्षा का लङका था.यूनीवर्सिटी का सबसे ज्यादा बिगङा शोहदा.वो अमीर बाप की बिगङी औलाद था.लङकियों के साथ ज्यादती करना उसका पेशा था.रूपाली पर रोज ही वो कुछ न कुछ कहता रहता था पर रूपाली ध्यान नही देती थी न ही कुछ जवाब देती थी
क्योकि जिन लङकियों ने कुछ कहने की कोशिश की उन पर वह हाॅवी हो जाता.बाप की आजादी जो प्राप्त थी उसको.
-“अरे इतनी भी जल्दी क्या है रूक भी जाओ जानेमन–“एकाएक वह रास्ता रोक कर खङा हो गया.
-“हटो हमारे रास्ते से और आइन्दा बत्तमीजी की तो प्रिसिपल से शिकायत कर दूॅगी–“डर तो बहुत गई थी दोनों पर हिम्मत करके रूपाली गुर्राई
-“ओह क्या तेबर है-“शरारत से बोला वो
तब तक दोनों लम्बे कदमें से आगे निकल चुकी थी.जहाॅ पर बसें खङी थी सभी अपनी अपनी बसों में बैठ चुके थे.रूपाली थोङी चिन्तित लग रही थी
मैसूर से गोआ का टूर था बसे रवाना हो चुकी थी.उदयपुर से बंगलौर पहुॅच चुके थे और बंगलौर से मैसूर के बीच ढाई घंटे का सफर तय करना था.चारों बसे एक ही जगह जलपान आदि के लिये रोक दी गई
सभी उतर कर कुछ न कुछ खाने में लगे व्यस्त थे.कोई किसी की सुन नही रहा था लङके ज्यादातर लङकियों के साथ मस्त थे.अचानक ढाबे के अन्दर से लपटे उठने लगी.कोई कुछ समझ पाता इससे पहले ही ढाबे में भगदङ मच गई.सारे लङके लङकियाॅ बसों की तरफ लपके.देखते ही देखते ढाबे में लपटे दिखाई देने लगी.ढाबे में आग लग गई थी.जो जिस बस में चढ पाया चढ गया.गाङिया हटाई जाने लगी फायर ब्रिगेड वाले आ चुके थे.बसे निकल चुकी थी.जब वहाॅ से बसे हटी तब देखा कि आधे लोगो की बस बदल चुकी थी.रूपाली भी दूसरी बस में आ गई थी.घबरा तब गई जब केशव उसकी ही सीट पर आ बैठा.
-“जानेमन आ ही गई पहलूॅ में–“वहशियत भरी नजरों से देखकर बुदबुदाया वो
खा जाने वाली नजरों से केशव को घूरा उसने पर बोली कुछ भी नही.डर की बजह से बस में सन्नाटा फैला था.एक घंटे का सफर औय करने के बाद एकाएक बस रूक गई.एक दो लोग नीचे उतरे तो पता चला डस खराब हो गई है.एक के बाद एक मुसीबत.कहाॅ से उसने आने के लिये हाॅ कह दिया था.अपने आपको कोस रही थी वह लीना भी साथ नही थी.पिकनिक का सारा मजा किरकिरा हो चुका था.वह घर लौट जाना चाहती थी.घुटन होने लगी थी अब उसे.केशव लगातार कुछ न कुछ अभद्र टिप्पणी करने से बाज नही आ रहा था.रूपाली बेबस सी हो गई थी.किसी अनहोनी की आशंका से रूपाली भयभीत सी लगने लगी थी.मन ही मन अपनी माॅ को याद कर रही थी खुद को कोश रही थी आखिर क्यों चली आई थी वह.तभी पता चला कि बस अब सुबह ही निकल पायेगी इंजन गरम हो गया है.जब उसकी हीट कम होगी तभी स्टाट॔ होगी.मुसीबत पर मुसीबत आ रही थी.परेशान तो सभी थे पर चुप रहने के अलावा किसी के पास कोई चारा नही था.
पास ही एक घम॔शाला था जिसमें सबको रात गुजारने के लिये ले जाया गया.क्योंकि लङकियाॅ अनजान जगह में बस में सुरक्षित नही थी.घम॔शाला में दो कमरे ही खाली थे एक में लङकों और अध्यापक हो गये और दूसरे में लङकियाॅ.साधारण सा घम॔शाला था जमीन पर गद्दे पङे हुये थे.ऐसा लग रहा था जैसे कई महीनों से घुले न गये हो.सभी थक तो गये थे.ज्यादातर सब जाते ही कुछ देर में सो गये.कुछ एक ही थे जिनको नींद नही थी.रूपाली की ऑखों में नींद दूर-दूर तक नहीं थी.नेटवक़ की बजह से फोन भी नही लग रहा था.कितनी बार वो माॅ और लीना को फोन लगा चुकी थी.
रूपाली कमरे से बाहर आ गई और बाथरूम ढूडने लगी.चारों तरफ नजर दौङाई पर उसे कही दिखाई नही दिया.दूसरे कमरा बगल में ही था शायद सब सो चुके थे उसमे भी.बाथरूम की तलाश में वो थोङा कमरों के दूसरी तरफ निकल गई.कुछ ही दूर जा पाई थी कि उसे अपने पीछे किसी के होने की आहट सी लगी.घूमकर देखा उसने पर कोई नही था.दस कदम ही और बढी होगी कि फिर उसे लगा कि पीछे कोई है.आशंका से भयभीत होकर अचानक घूमी तो चौक गई.चींख निकल गई.दिमाग चकरा गया
-“कौन हो तुम-“घबराहट में मुश्किल से बोल पाई वो
-“अरे जानेमन,घबराओ नही,और कितना तङफाओगी अब तो बाहों में आ जाओ–”
-“केशव तुम-“एकदम से दहाङ सी पङी वो परन्तु उसकी आवाज उसके गले में ही घुट कर रह गई थी तब तक केशव उस पर झपट पङा था.
-“बहुत तङफाया है तुमने आज तो प्यास बुझानी ही पङेगी तुम्हे–“उसके मुॅह को अपने एक हाथ से बन्द कर लिया अब उसके मुॅह से आवाज भी नहीं निकल रही थी
केशव ने उसे एक शब्द भी बोलने का मौका नही दिया और उसको घसीटते हुये कमरों से दूर दूसरी ओर ले गया.अब वह घम॔शाला के दूसरे कोने में थी जो कमरों से काफी दूर था.उसके चिल्लाने की आवाज भी अब कही नही जा सकती थी.क्योंकि बराम्दे के ठीक भीतर की तरफ एक कमरा था वह रूपाली को वही छोङ दिया.पकङ ढीली होते ही रूपाली ने भागने की कोशिश की तभी केशव ने लपक कर अपनी बाहों में जकङ लिया.
-“घबराओं नही अभी सबकुछ ठीक हो जायेगा-“रूपाली में अब विरोध करने की क्षमता नहीं रही थी.उसका मस्तिष्क अंधकार की खाॅइयों में डूबता जा रहा था.अपनी जिन्दगी अंधेरे में साफ नजर आ रही थी उसे.शरीर बिलकुल शिथिल होता जा पङ गया था.उसके नाजुक बदन को उठाकर केशव एक कोने में ले गया और निढाल सा डाल दिया.
-“प्लीज केशव मुझे जाने दो,मैने क्या बिगाङा है तुम्हारा,भगवान के लिये जाने दो मूझे—-“गिङगिङाई पङी रूपाली
-“पहली नजर का शिकार है तू रूपाली,तेरे योवन का तो मै कबसे दीवाना हूॅ-“आज तुझे देखकर बेकाबू हो गया हूॅ.बुझा दे मेरे तन मन की आग को–“उसके कन्धे पर दोनो हाथ टेककर वह बोला
-“केशव प्लीज जाने दो मुझे-“बदहबास सी फिर गिङगिङाई वो.तक तक केशव का हाथ कन्धे से फिसलता हुआ रूपाली की गद॔न तक पहुॅच गया
रूपाली छटपटाई मगर केशव की पकङ बहुत मजबूत थी और रूपाली की शक्ति उसकी पकङ के सामने क्षीण होती चली गई.
छटपटाहट की अवस्था में केशव के हाथ का कसाव बढा और उसने एक झटके से रूपाली को आलिंगन बद्द कर लिया.केशव के रंग-रंग में लावा सा पिघलने लगा.रंगों में खिचाव और उत्तेजना बढ गई.रूपाली तङफ उठी थी.
मगर वासना का भूखा भेङिया भला हाथ आये शिकार को निकलने का अवसर क्यों देता.
-“छोङ दो मुझे,मै तुम्हारे पाॅव पकङती हूॅ–“थोङी सी पकङ ढीली होते ही पुनः गिङगिङाई
-“जानेमन मेरे बाप ठेकेदार कैलाश ने भी कभी हाथ आये शिकार को नही छोङा तो भला मै कैसे छोङ दूॅ.
ठेकेदार का नाम सुनकर उसका शरीर एकदम ढीला पङ गया मतलब यह उस हैवान का बेटा था.अपनी माॅ से सुन चुकी थी वह ठेकेदार के भद्दे कारनामों के बारे में.
रूपाली खुद को छुङाने का भरपूर प्रयास करती रही परन्तु फिर केशव की पकङ ढीली नही हुई.वह उसके शरीर से खेलता रहा कई बार उसने मुच्त होने का प्रयास किया था परन्तु वह फिर दवोच ले रहा था.इसबार केशव ने कोई गलती नहीं की,सीधा घसीट कर जमीन पर लिटाया और अपनी वासना का गंदे खेल में लग गया.रूपाली विरोध करने की पूरी शक्ति लगा चुकी थी उसकी ऑखों से ऑसू बहने लगे थे.हाथ पाॅव ढीले पङ गये थे.वह अचेत नही हुई थी परन्तु उसके सोचने की शक्ति मर चुकी थी.
-“मै मर जाऊॅगी छोङ दे मुझे–“सिरहकर बुदबुदाई वह
चीखने की कोशिश भी की तो उसकी आवाश हलक में घुटकर रह गई थी.रूपाली दद॔ से कराह उठी.काली रात की वासनाई ऑधी में रूपाली अब अचेत हो गई थी.
मासूम रूपाली केशव की हवश का शिकार हो चुकी थी.केशव उसको अचेत छोङ कर वहाॅ से भाग गया.उसने ये जानने की भी कोशिश नही की कि रूपाली मरी है या जिन्दा है.
हवश की ऑधी का जबरजस्त थपेङा खाकर लगभग चार बजे रूपाली को होश आया तब वह उसी जगह पङी थी.उसने उठने की कोशिश की तो दद॔ से चींख निकल गई.वह हिम्मत करके उठी और फफक-फफक कर रो पङी.वह बर्बाद हो चुकी थी.अब क्या करेगी वो.अब सिर्फ एक ही रास्ता है.आत्महत्या–“हाॅ मौत-“एक झटके से उठ खङी हुई.उसके बदन पर एक कपङा भी नही था अगल-बगल ही सब बिखरे पङे थे.खुद की आत्मा को बेबसी से ढककर उसने कपङे पहने.लुट जाने के बाद अब उसके चेहरे पर कोई खौफ नही था.एकदम शांत थी वह.शरीर दद॔ से बेहाल था वह ठीक से चल भी नही पा रही थी.धीरे-धीरे वह शयनकक्ष की ओर चल दी बीच में पानी दिखा तो उसने मुॅह धोया और आकर निढाल सी अपने रूम के बाहर बैठ गई.अभी सभी सो रहे थे.एक घंटे तक वह विचारों में खुद से जूझती रही.
आत्महत्या का खयाल आते ही उसे अपनी माॅ और भाई का चेहरा ऑखों के सामने आ गया.रूपाली की मौत मतलब माॅ की मौत..भाई इस दुनियाॅ में अकेला जी पायेगा क्या—?
-“नही –नही—वो अपने भाई को अनाथ नही कर सकती..”गालों पर लुढके ऑसुओं को झटके से वह पोछ कर बुदबुदाई.अचानक उसका चेहरा सख्त होता गया.वह क्रोध से तमतमा उठी थी.भूल गई थी सारा दद॔.वह एक बहुत कठोर फैसला ले चुकी थी.
-“रूपाली चलों बस ठीक हो चुकी है–“उसके कक्षा की लङकी थी
वह उठी और चुपचाप जाकर अपनी सीट पर बैठ गई.बस में चारों तरफ नजर दौङाई उसने केशव उसे कही नहीं दिखाई दिया.आखिर कहाॅ गया होगा. दो घंटे में मैसूर पहुॅच गई.जिस होटल में रुकना था एक बस तो पहले से ही वहाॅ पहुॅच चुकी थी.फोन न मिल पाने के कारण पहली बस वाले होटल स्टाफ में मैसेज छोङ गये थे.दो घंटे एक घंटे में खाना खाकर सबको निकलना था.सभी खा पीकर निकलने के लिये तैयार थे.रूपाली ने कुछ भी नही खाया था.आते ही सबसे पहले उसने नहाया था अब वह जल्द से जल्द लीना से मिलना चाहती थी.उसे बताकर अपने दुःख को हल्का करना चाहती थी.डस निकल चुकी थी चामुंडी हिल पहुॅचने में दोपहर हो गई थी
शहर से 13 किलोमीटर की दूरी थी यह पहाङी.जमीन से पहाङी की ऊॅचाई तीनसौपैतीस मीटर थी .बहुत खूबसूरत जगह थी.कहा जाता है कि सत्रहवी शताब्दी में मैसूर के राजा ने चमुंडी हिल पर पहुॅचने के लिये एक हजार सीढियाॅ बनवाई थी.
मैसूर के भव्य राजमहल…शहर के हरे भरे पाक॔ पहाङी से साफ नजर आ रहे थे.मनमुग्ध करने वाला नजारा था.सभी इन नजारों का लुफ्त उठा रहे थे.दूसरी बस के लोग भी मिल गये थे.रूपाली की नजरें लीना को ढूॅढ रही थी.तभी पीछे से लीना की आवाज सुनाई दी
-“रूपाली कैसी है तू–“बहुत मिस किया तुझे पूरे सफर में–“अफसोस में बोली
रूपाली बिना कुछ बोले गले लग गई और फूटफूट कर रोने लगी
-“”रूपाली सब ठीक तो है न–क्या हो गया बोल न–“घबराकर पूछा लीना ने
-“सबकुछ खत्म हो गया लीना…मै बर्बाद हो गई–“और उसने कशव को दर्रिन्दगी की पूरी कहानी बता दी.लीना सुनकर अवाक रह गई.भय से काॅप गई.कोई इतनी दरिन्दगी कैसे कर सकता है..? सन्त्वना देने के अलावा कर भी क्या सकती थी वह.क्रोध से चेहरा लाल हो गया था उसका.काश ! वह अपनी सहेली को बचा सकती.अब उन दोनों का मन नही लग रहा था जल्द से जल्द वह वापस आना चाहती थी.
तीन दिन बाद सभी वापस आ गये थे.लीना ने पहले रूपाली को घर छोङा फिर वह अपने घर के लिये रवाना हो गई.रूपाली अंधेरा साथ लेकर आई थी.रास्ते में ही उसने निर्णय कर लिया था कि माॅ को वह इस घटना की भनक भी नहीं लगने देगी.इस लिये उसने खुद को सामान्य रखा और लीना को भी मना कर दिया था.लीना ने ढाढस बधाया कि वह हर तरह से उसके साथ है.
वह जल्दी खाना खाकर सोने चली गई माॅ को लगा थकी है इसलिये उसने कुछ नहीं कहा.थके होने के बावजूद भी रूपाली को नींद नहीं आ रही थी.अब जीवन को किस तरह चलाना है…?कब क्या करना है..?बहुत तेजी से दिमाग में हजारों सवाल आ जा रहे थे.अपने आपने घंटों लङने के बाद मन हो मन वह बहुत बङा फैसला ले चुकी थी.वह उठी पेन और कापी उठाकर कुछ लिखा.अब बस वो सुबह होने का इंतजार करने लगी थी.फैसला लेने के बाद उसको कुछ राहत मिली थी और फिर वह सो सकी थी.
सुबह उठते ही सबसे पहले उसने लीना को फोन करके घर आने को कहा.और खुद भी नहाकर तैयार हो गई.
-“क्या बात है रूपाली–“सब ठीक तो है–”
-“हाॅ सब ठीक है–“और लीना के साथ कमरे की ओर बढ गई और रात का लिखा हुआ कागज बढा दिया उसकी तरफ.
-“क्या है ये–“अप्लीकेशन–वो भी दो महीने का–पर क्यों-?तुझे पता है फाइनल परीक्षा होने वाली है–”
-“हा पता है–“पहले एक बात बता मै कुछ भी करू क्या तू मेरा साथ देगी–“रूपाली ने शांत मन से पूछा
-“कैसा साथ–? पहेलियाॅ मत बुझा,साफ-साफ बता–“लीना बोली
-“मै केशव से बदला लेना चाहती हूॅ–“क्या तू साथ देगी–“कहते कहते चेहरा सख्त और लाल हो गया उसका
-“बदला केशव से–“तू जानती है क्या कह रही है–“वो ताकतवर इंसान है तू क्या कर लेगी उसका–“उछल ही पङी थी लीना
-“तू र्सिफ इतना बता साथ देगी या नही–“बदला तो मुझे लेना ही है–” तू साथ दे या न दे–“अपने सख्त इरादों के साथ बोली.उसका ये भयानक रूप देखकर सहम सी गई वह.कैसे बदला लेगी–?क्या कर पायेगी उस नीच पापी का.परन्तु उसने हाॅकह दिया
-“तो सुन आजसे तुझे केशव को अपने प्रेमजाल में फसाना है–“बोल कर पायेगी–“रूपाली ऑखो में झाकती हुई बोली
-“यार तू जानती है क्या कह रही है–“अब क्या तू मुझे–“घबराकर लीना बोली
-“वो अब इतनी जल्दी कुछ और नही करेगा–“जबतक वो कुछ सोचेगा-मै उसे अंजाम तक पहुॅचा चुकी हूॅगी–“रूपाली को ऑखो में खून उतर रहा था.कबतक हम लङकियाॅ अपनी अस्मत को इन पापियों को सौपते रहेंगे.अब वक्त आ गया है कि ऐसे नीच पापियों को उनकी ही भाषा में समझाया जाये..मै केशव के द्वारा दूसरी रूपाली बर्बाद नही होने दूॅगी–“गुस्से से तमतमा गया उसका चेहरा.उसका हौसला और पक्के इरादे देख कर लीना ने उससे वायदा किया कि वहहर तरह से उसका साथ देगी.रूपाली ने लीना को बताया कि अब वह जूडो कराटे सीखेगी.काॅलेज के समय वह सीखने जायेगी क्योकि वह माॅ को बताकर उनकी तकलीफे बढाना नही चाहती थी.
दूसरे दिन सुबह दोनों सहेलियाॅ हमेशा की तरह यूनीवर्सिटी के लिये साथ निकली…परन्तु यूनीवर्सिटी सिर्फ लीना गई रूपाली अपने इलाके से दूर एक जूडो कराटे के बारे में पता कर चुकी थी वहाॅ चली गई.लीना पर उसको पूरा भरोसा था.एक वही तो थी जिससे वो अपने मन की हर बात निसंकोच कह लेती थी.
लीना ने अपना काम शुरू कर दिया था.वह ज्यादा से ज्यादा केशव के इद॔ र्गिद मरङाने लगी थी. वह मौका मिलते ही केशव की ऑखों झाकने की कोशिश करती.
इधर रूपाली बहुत लगन से कराटे सीख रही थी.कोई भी दाॅव वह बहुत जल्दी सीख जाती थी उसका सीखने की लगन और जुनून देखकर जूडो मास्टर ने उसे दो घंटे ज्यादा सीखने की अनुमति दे दी थी.और भविष्य में अगर वह करना चाहेगी तो नौकरी भी देने का मन बना लिया था.उन्हे ऐसा ही जूनूनी मास्टर की जरूरत थी.
एक महीना गुजरते देर नहीं लगी.लीना बहुत सफाई से अपने काम को अंजाम दे रही थी.अब केशव लगभग उसकी गिरफ्त में था.वह भी केशव से प्यार का इजहार कर चुकी थी.रूपाली को तो उसने कभी पूॅछा तक नही था.वो केशव के साथ कई बार पाक॔ में घूमने जा चुकी थी.केशव भी अपनी शराफत का पूरा परिचय दे रहा था.बैसे तो केशव के दो दोस्त शिवा और विक्की हर काम में उसके भागीदार होते थे पर रूपाली में उसने किसी को भनक भी नही लगने दी.जिक्र तक नही किया दोनों से.लीना के लिये उसने फिर उन दोनों से शत॔ लगाई कि वह अपनी हवश के बाद उन्हे सौप देगा.ये बात लीना ने सुन ली थी.उसने रूपाली को बताई.और रूपाली ने इस बात का पूरा-पूरा फायदा उठाया.
दो महीने बीतने में मात्र 5 दिन बाकी थे.रूपाली कराटे में खुद को मुकाबले के लिये तैयार कर चुकी थी.वह लगभग सारे दाॅव पेच सीख चुकी थी.अपराध कहानियाॅ पढ-पढ कर उसने एक प्लान भी बना लिया था.अब बस उस प्लान का अंजाम देने की देर थी.इसलिये उसने आज लीना को घर बुलाया था.वह बेसब्री से लीना का इंतजार कर रही थी.माॅ सुबह ही दुकान चली गई थी.भाई स्कूल गया था.घर पर वह अकेली थी.तभी दरवाजा खटका.लीना आ गुई थी शायद.
-“आ बैठ–“दोनों के इरादें काफी खतरनाक लग रहे थे
-“कहाॅ तक पहुॅचा केशव-“वक्त गॅवाये बिना रूपाली ने सीधा सवाल किया
-“बहुत प्यार दिखाने का बहुत सफल नाटक कर रहा है ताकि मौका मिलते ही मुझे डस सके–!लीना बोलो
-“अब तुम जल्दी करो जो भी करना है–“लीना आगे बोली
-“अब सुनो….तीन जनवरी को एनुअल फंक्शन है उस दिन पूरी यूनीवर्सिटी फंक्शन में व्यस्त होगी.सारे क्लासरूम खाली रहेंगे.क्योकि फंक्शन एडीटोरियम में होगा.उस समय तुम ये कहकर उसे क्लासरूम में बुलाना कि कुछ लङके तुम्हारे साथ जबरजस्ती कर रहे है.हम दोनो यूनीवर्सिटी में मौजूद होंगे पर सामने नही होगे.मै जैसे ही वह क्लारूम की तरफ जाये तुम सबके साथ एडोटोरियम में पहुॅच जाना.क्लासरूम में मै पहले से मौजूद रहूॅगी.–“रहस्मयी ढंग से समझाया लीना को रूपाली ने,लीना ने सारी बात ध्यानपूव॔क सुनी.पूरा प्लान समझाने के बाद वह खाना लाई दोनो ने साथ खाया और फिर लीना अपने घर चली गई.
जबसे रूपाली पिकनिक से वापस आई थी बहुत खामोश रहने लगी थी माॅ ने कई बार पूॅछा परन्तु वह हमेशा टाल गई.उधर ठेकेदार की ज्यादतियाॅ बढती जा रही थी.जिनका जिक्र तक वह रूपाली से नहीं करती थी.परीक्षाये सिर पर थी वह अपने बच्चों का भविष्य बरबाद नही होने देना चाहती थी.अतः वह देर रात तक दुकान में रहने लगी.रूपाली को बाहर के सारे काम करने पङते थे इसलिये माॅ ने एक सस्ता सा फोन खरीद दिया था रूपाली को जो आज उसके काम आ रहा था.लीना को उसने एक नया बिना आई डी सिम दे दिया था जो उसने कराटे मास्टर से कहकर मॅगवाया था.और लीना को हिदायत दी थी कि केशव को बुलाने के बाद वह सिम को तुरन्त निकाल कर तोङ दे.रूपाली का परिवार इस समय बहुत परेशानियों से गुजर रहा था पर दोनो माॅ बेटी एक दूसरे से कुछ कहकर परेशान नही करना चाहती थी.कराटे की फीस के लिये उसने होम ट्यूशन कर रखा था.जिससे उसको पैसों की परेशानी नही हुई.
बहुत जल्दी दिन गुजर गये आखिर तीन जनवरी आ ही गई.रूपाली हैवानियत का एक-एक पल याद करके अपनी बदले की आग को और अधिक भङका रही थी.उधर केशव भी केशव भी आज लीना को अपनी हवश का शिकार बनाना चाहता था.और दोनो दोस्तों को भी दावत दे चुका था.आज केशव और दोनो दोस्त रोज से जल्दी आ गये थे पहले तीनो ने विश्की पी फिर तीनो एडोटोरियम के पांगङ में पहुंच गये.उनका प्लान था लीना को किसी होटल में बहाने से ले जाने का.
वैसे तो पूरी यूनीवर्सिटी सजी थी पर एडोटोरियम एकदम दुल्हन की औरह जगमगा रहा था….अन्य कालेजों से भी विद्यार्थियों की टीमे पार्टीसिपेट के लिये आई हुई थी.आज काफी भीङ थी.अभी प्रोग्राम सुरू होने में वक्त था तो सभी एडोटोरियम के बाहर ही खङे थे.
केशव भी अपने दोस्तों के साथ खङा लीना का बेसब्री से इंतजार कर रहा था.उन तीनों की निगाहें बार-बार मुख्य द्वार की तरफ उठ रही थी.जबकि लीना दूसरे पाक॔ में फूलदार पेङ के नीचे से उन तीनों के आने से पहले से मौजूद थी
-“यार अभी तक तो चिङियाॅ आई नही–“लगता है तू झूठ बोल रहा है–“विक्की ने हॅसी उङाने वाले अंदाज में कहा
-” शायद तू सही कह रहा है,अब इसमें दम नही रह गया है–“शिवा ने भी हाॅ में हाॅ मिला दी
-“चुप बे सालो–“आ रही होगी–“केशव गुर्राया
पाॅच मिनट सन्नाटा फैला रहा कि अचानक केशव का मोवाइल बजा.वह घूमकर बात करने लगा.शायद लीना का फोन था.एकदम खुश होकल कैलाश घूमा तो देखा दोनो दोस्त गायब थे.केशव ने चारों तरफ नजर दौङाई पर वो दोंनो कही नजर नही आये.-“जाने दो सालों को–“मै हाथ आये शिकार को नही छोङूॅगा–“अपनी मक्कारी पर खुश होकर वह मुख्य द्वार की ओर चल दिया.लीना को बाहर से किसी बहाने होटल में ले जाने का उसका प्लान था.लीना जो कि उस पर लगातार नजर रखे हुये थी.रूपाली को फोन पर कहा कि वो मुख्य द्वार की ओर आ रहा है.और एक मिनट गॅवाये बिना रूपाली का दिया सिम डाल लिया
यूनीवर्सिटी का मुख्य द्वार एडीटोरियम से एक किलोमीटर सीधा अंदर की ओर था और लीना का क्लासरूम बाॅई तरफ सौ कदम की दूरी पर था.
केशव मुख्य द्वार से कुछ ही दूरी पर था उसका मोवाइल की घंटी बजी.
-“हैलो कौन–“? नया नम्बर देखकर उसने पूछा
-“केशव…केशव…..मुझे बचाओ प्लीज…कुछ लङके मेरे क्लासरूम में जबरजस्ती कर रहे है–“लीना की घबराई हुई आवाज सुनकर वह बिना सोचे समझे क्लासरूम की ओर दौङ पङा.
-“साले मेरे शिकार को पहले मै रौदूॅगा–“वह बङबङाते हुये भागा
-“”हैलो–लीना…लीना–“फोन स्विचऑफ….उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया.उसकी भागने की स्पीड और बढ गई.
उधर लीना फोन करने के तुरन्त बाद एडीटोरियम में पहुॅच गई.रूपाली पहले से ही अपने खतरनाक इरादों के साथ क्लासरूम में मौजूद थी.ये तो उसने लीना तक को नही बताया था कि वह केशव के साथ क्या करेगी.क्या करके बदला लेगी इसलिये लीना इस समय बहुॅत चिंतित थी
रूपाली ने क्लासरूम में पहुॅचते ही सूट के ऊपर लम्बा काला गाउन पहन लिया था.
वह बिलकुल तैयार थी किसी भी हमले से निपटने के लिये.
इतने में केशव तमतमाता हुआ आया और एक जोरदार लात दरवाजे पर मारी चूॅकि दरवाजा रूपाली के प्लान के मुताबिक पहले से ही खुला था.केशव को दरवाजा खुले होने की उम्मीद न थी अतः वह लङखङाता हुआ अन्दर की ओर गिरने लगा.तभी एक पल भी गॅवाये बिना रूपाली ने खींच कर उसका बाॅया हाथ पकङा और जब तक केशव कुछ समझ पाता उसने दूसरे हाथ में पकङे तेज धारदार चापङ उसके हाथ पर दे मारा
-“”आहहहह–“रूपाली तुम—-“इतना ही निकल सका उसके मुॅह से और वह अचेत हो गया
रूपाली ने जल्दी से अपना गाउन उतारा और चापङ को उसमें लपेट कर बैग में डाला और कमरे पीछे दरवाजे से निकल गई.
आज काय॔क्रम एडोटोरियम में होने के कारण सुबह से इधर कोई आया ही नही था चपरासी भी गेट पर ही मौजूद थे.यूनीवर्सिटी से बाहर निकलने के दो गेट थे रूपाली दूसरे गेट से आई और गई था अतः उसको किसी ने भी आते जाते नही देखा था.रूपाली बाहर आकर टेक्सी पकङ कर सीधा अपने घर आ गई.चूॅकि घर में कोई नही था इस लिये उसने चापङ को साफ करके छुपा कबाङ में डाल दिया था
इधर करीब एक घंटे बाद जब केशव को होश आया तो वह दद॔ से कराह रहा था.उसने उठने की कोशिश की पर उठ नही सका.घिसलता हुआ किसी तरह दरवाजे के वाहर आया तभी वहाॅ से दो पुलिस वाले गुजरे.उनपर नजर पङते ही पूरी दम लगाकर चीखा केशव.आवाज सुनकर पुलिस वाले पास आये और देखते ही देखते पूरी यूनीवर्सिटी में ये खबर आग की तरह फैल चुकी थी
केशव को अस्पताल में भर्ती करवा दिया गया था और उसके पिता कैलाश को घटना की जानकारी दे दी गई थी.
पुलिस यूनीवर्सिटी को छावनो बना दिया गया था परन्तु अपराधी का अभी तक कही कोई सुराख नही था.केशव के सभी साथियों से पूॅछताछ की जा चुकी थी पर किसी को कुछ भी मालूम नही था.लीना वाली बात केशव के दोस्तों ने पुलिस को नही बताई थी क्योकि लिना तो लगातार एडोटोरियम में घटना के वक्त उन दोनों के सामने थी.
अब र्सिफ केशव के बयान पर कुछ पता लग सकता था.
केशव बहुत डरा हुआ था ऐसलिये डाक्टर ने मना कर दिया था बयान लेने से.केशव का बाप जल्द से जल्द अपराधी को फाॅसी पर लटकवाना चाहता था
-“अब आप बयान ले सकते है–“डाक्टर ने पुलिस की तरफ मुखातिब होकर कहा
-“ओके डाक्टर–“कहकर पुलिस केशव के पास गई
-“अब कैसे हो केशव–“सहजता से पूछा
-“जी मै—-आगे कुछ बोल नही सका वह
-“क्या आप बता सकते है कि आपकी ये हालत किसने की–“पुलिस वाले ने पूछा
–“जी—-“केशव की ऑखों के सामने रूपाली का चेहरा किसी स्क्रीन की तरह आ जा रहा था.उसकी आवाज हलक में अटक गई.अपनी दरिन्दगी का एक एक सीन ऑखों के सामने चल रहा था.
एक पल में ऊनगिनत विचार कौध रहे थे उसके मस्तिष्क में—क्या करें–? रूपाली का नाम बताये या न बताये.अगर बता दिया तो उसकी करतूत जो ऊभी तक किसी सामने आई नही थी. अगर रूपाली ने मुॅह खोल दिया तो वह उम्रभर के लिये जेल जायेगा
-“नही–नही–वह कुछ नही बतायेगा. उसने मन ही मन फैसला कर लिया कि वह रूपाली का नाम भी अपनी जुवान पर नही लायेगा. परन्तु पुलिस पीछा नहीं छोङेगी, कई सबाल उठायेगी
मै वहाॅ क्यों गया था..?क्या काम था.. अपने कुकर्मो को देखकर केशव काॅप गया.
-“बोलिये कैसे हुआ–? किसने की तुम्हारी ये हालत–“झकझोरा पुलिस वाले ने
-“मुझे–मुझे कुछ भी याद नहीं–मै नही देख पाया कि कौन था-“इतना कहकर वह रो पङा
एक हफ्त तक कोई पुलिस के लाख कोशिशों के बाद भी कोई सुराख नही मिला अतः केस को दुघ॔टना का नाम देकर बन्द कर गया.
इधर दूसरे दिन लीना कराटे जाते समय गाउन को कचरे के साथ बहुत दूर फेक आई थी. कराटे मास्टर से उसने कुछ दिन की छुट्टी माॅगी तो उन्होने जाॅब आॅफर कर दी. परीक्षा खत्म होने के बाद का कहकर वह घर चली आई. रूपाली के र्निदेशानुसार दो दिन बाद उससे मिलने आई थी.
-“लीना अगर तुम न होती तो शायद मै बदला न ले पाती–“लीना के गले लजकर रो पङी रूपाली.
-“चुप हो जा, मै तो बदला के नाम से ही घबरा गई थी…तेरा हौसला देख कर ही तो मुझमें हिम्मत आई थी–“और केशव जैसे पापियों का नास करने की तो हर लङकी में ताकत और हौसला होना चाहिये. बरना यूॅही कैशव नाम के भेङियों हर गली नुक्कङ पर असहाय समझ कर लङकियों को डसते रहेंगे.–“लीना भावविभोर हो बोलती जा रही थी. दोनो सहेलियाॅ अपनी विजय पर खुस थी. रूपाली वापस अपनी पढाई में लग गई थी. केशव पढाई छोङ चुका था. माॅ से पता चला कि कैलाश ठेकेदार अपने बेटे के अपाहिज होने से पागल सा हो गया था.

नीरू श्रीवास्तव

नीरू श्रीवास्तव

शिक्षा-एम.ए.हिन्दी साहित्य,माॅस कम्यूनिकेशन डिप्लोमा साहित्यिक परिचय-स्वतन्त्र टिप्पणीकार,राज एक्सप्रेस समाचार पत्र भोपाल में प्रकाशित सम्पादकीय पृष्ट में प्रकाशित लेख,अग्रज्ञान समाचार पत्र,ज्ञान सबेरा समाचार पत्र शाॅहजहाॅपुर,इडियाॅ फास्ट न्यूज,हिनदुस्तान दैनिक समाचार पत्र में प्रकाशित कविताये एवं लेख। 9ए/8 विजय नगर कानपुर - 208005