गीत/नवगीत

गीत

 

हर इंसान मिलेगा सच्चा, कहना यह बेमानी है।
सँभल सँभल कर गोते लेना, जीवन बहता पानी है।।
हर इंसान…
ध्यान भंग होने पर पथ में, मिलता न्योता ठोकर को,
कोई नहीं उठाने आता, गिरे हुए इक जोकर को,
देख गिरे को लोग हँसेंगे, जग की रीति पुरानी है।
सँभल…
लोग खड़े तैयार लगाने, नमक ह्रदय की चोटों पर,
अंधकार में डूब गया सच, झूठ सजा है होठों पर,
इसीलिए तो विधि के घर में, दुष्टों की अगवानी है।
सँभल…
रंग बदलती दुनिया की इस, चकाचौंध में मत खोना,
बिना प्रीति के जीना मुश्किल, विष के बीज नहीं बोना,
सदा प्रेम करने वालों की, होती अमर कहानी है।
सँभल…

— उत्तम सिंह ‘व्यग्र’