“कुंडलिया”
गर्मी त्रण सौ पैसठी, वर्ष एक उपहार
कुछ नर्मी कुछ सर्दियाँ, कुछ चुनाव का भार
कुछ चुनाव का भार, उठाती शोषित जनता
होते सब गुमराह, जाति धर्म संग चलता
गौतम मेरी मान, गलत यह स्वार्थी धर्मी
देश बहुत महान, दरिंदों के मन गर्मी॥
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी