धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

मानस बचन

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रघु कुल शिरोमणि श्रीराम की बंशावली~
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1 – ब्रह्मा जी से मरीचि हुए,
2 – मरीचि के पुत्र कश्यप हुए,
3 – कश्यप के पुत्र विवस्वान थे,
4 – विवस्वान के वैवस्वत मनु हुए.वैवस्वत मनु के समय जल प्रलय हुआ था,
5 – वैवस्वतमनु के दस पुत्रों में से एक का नाम इक्ष्वाकु था, इक्ष्वाकु ने अयोध्या को अपनी राजधानी बनाया और इस प्रकार इक्ष्वाकु कुलकी स्थापना की |
6 – इक्ष्वाकु के पुत्र कुक्षि हुए,
7 – कुक्षि के पुत्र का नाम विकुक्षि था,
8 – विकुक्षि के पुत्र बाण हुए,
9 – बाण के पुत्र अनरण्य हुए,
10- अनरण्य से पृथु हुए,
11- पृथु से त्रिशंकु का जन्म हुआ,
12- त्रिशंकु के पुत्र धुंधुमार हुए,
13- धुन्धुमार के पुत्र का नाम युवनाश्व था,
14- युवनाश्व के पुत्र मान्धाता हुए,
15- मान्धाता से सुसन्धि का जन्म हुआ,
16- सुसन्धि के दो पुत्र हुए- ध्रुवसन्धि एवं प्रसेनजित,
17- ध्रुवसन्धि के पुत्र भरत हुए,
18- भरत के पुत्र असित हुए,
19- असित के पुत्र सगर हुए,
20- सगर के पुत्र का नाम असमंज था,
21- असमंज के पुत्र अंशुमान हुए,
22- अंशुमान के पुत्र दिलीप हुए,
23- दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए, भागीरथ ने ही गंगा को पृथ्वी पर उतारा था.भागीरथ के पुत्र ककुत्स्थ थे |
24- ककुत्स्थ के पुत्र रघु हुए, रघु के अत्यंत तेजस्वी और पराक्रमी नरेश होने के कारण उनके बाद इस वंश का नाम रघुवंश हो गया, तब से श्री राम के कुल को रघु कुल भी कहा जाता है |
25- रघु के पुत्र प्रवृद्ध हुए,
26- प्रवृद्ध के पुत्र शंखण थे,
27- शंखण के पुत्र सुदर्शन हुए,
28- सुदर्शन के पुत्र का नाम अग्निवर्ण था,
29- अग्निवर्ण के पुत्र शीघ्रग हुए,
30- शीघ्रग के पुत्र मरु हुए,
31- मरु के पुत्र प्रशुश्रुक थे,
32- प्रशुश्रुक के पुत्र अम्बरीष हुए,
33- अम्बरीष के पुत्र का नाम नहुष था,
34- नहुष के पुत्र ययाति हुए,
35- ययाति के पुत्र नाभाग हुए,
36- नाभाग के पुत्र का नाम अज था,
37- अज के पुत्र दशरथ हुए,
*38- दशरथ के चार पुत्र राम, भरत, लक्ष्मण तथा शत्रुघ्न हुए | इस प्रकार ब्रह्मा की उन्चालिसवी (39) पीढ़ी में श्रीराम का जन्म हुआ | शेयर करे ताकि हर हिंदू इस जानकारी को जाने..!!*

*?रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य ?*

1:~मानस में राम शब्द = 1443 बार आया है।
2:~मानस में सीता शब्द = 147 बार आया है।
3:~मानस में जानकी शब्द = 69 बार आया है।
4:~मानस में बैदेही शब्द = 51 बार आया है।
5:~मानस में बड़भागी शब्द = 58 बार आया है।
6:~मानस में कोटि शब्द = 125 बार आया है।
7:~मानस में एक बार शब्द = 18 बार आया है।
8:~मानस में मन्दिर शब्द = 35 बार आया है।
9:~मानस में मरम शब्द = 40 बार आया है।

10:~लंका में राम जी = 111 दिन रहे।
11:~लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं।
12:~मानस में श्लोक संख्या = 27 है।
13:~मानस में चोपाई संख्या = 4608 है।
14:~मानस में दोहा संख्या = 1074 है।
15:~मानस में सोरठा संख्या = 207 है।
16:~मानस में छन्द संख्या = 86 है।

17:~सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का।
18:~सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में।
19:~मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी।
20:~पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी।
21:~रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला।
22:~राम रावण युद्ध = 32 दिन चला।
23:~सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ।

24:~नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं।
25:~त्रिजटा के पिता = विभीषण हैं।

26:~विश्वामित्र राम को ले गए =10 दिन के लिए।
27:~राम ने रावण को सबसे पहले मारा था = 6 वर्ष की उम्र में।
28:~रावण को जिन्दा किया = सुखेन बेद ने नाभि में अमृत रखकर
***जय श्री राम**

सत्संग जीवन में परम आवश्यक है । सत्संगरूपी ढाल ही मानव की मायारूपी तलवार से रक्षा कर सकती है। सत्संग के बिना विवेक जागृत नहीं होता।

बिनु सत्संग विवेक न होई।
रामकृपा बिनु सुलभ न सोई।। (श्रीरामचरितमानस – बालकाण्ड)

Satsanga or being one with absolute truth is of prime importance. The shield of satsanga will protect you from the sword of Maya. Without satsanga, the power of discretion will not awaken.

Binu satsang vivek na hoye!
Ram kripa binu sulabh na soye!! (ShriRamcharitmanas – Balkand)।।।।।।।।। उड़ते हुए पक्षी भी उड़ना छोड़, वृक्षोंपर बैठ एकटक रामके सौन्दर्यको निहारने लगे । बटोही राम देखते-देखते उनके चित्तको चुराकर चलते बने और वे ठगे-से बैठे रहे।
जलचरोंकी अवस्था तो और भी विलक्षण हो रही है । समुद्रपर पुल बँध चुका, पर सेनाकी बहुलताके सामने पुलकी विशालता नगण्य थी । चतुर-चूडामणिने इसका बड़ा विलक्षण उपाय निकाला । वे जाकर पुलके एक किनारे खड़े हो गये । समुद्रकी शोभा देखनेके लिये । क्षणभरमें सारा समुद्र कूर्मोंसे आवृत हो गया । इस रूप-सुधाके पानमें वे इतने तल्लीन हो गये कि उनके शरीरकी सुध-बुध जाती रही । उनका आपसी सहज वैर भूल गये । वे हटानेपर भी नहीं हटते ।
देखन कहुँ प्रभु करुना कंदा । प्रगट भए सब जलचर बृंदा ।।
प्रभुहि बिलोकत टरहिं न टारे । मन हरषित सब भए सुखारे ।।
तिन्हकी ओट न देखिअ बारी । मगन भए हरि रूप निहारी ।। (मानस ६/३/२,४)
भगवान्ने वानरोंको आज्ञा दी, ‘आपलोग इन जलचरोंके ऊपरसे पार हों ।‘ बड़े-बड़े विशालकाय वानर उनके शरीरपरसे होते हुए पार हो गये । पर उन्हें इस रूप दर्शनमें इतना आनन्द आ रहा था कि उन्हें पता भी न चला कि कोई हमपरसे पार हुआ –
सेतुबंध भइ भीर अति कपि नभ पंथ उड़ाहिं ।
अपर जलचरन्हि ऊपर चढ़ि चढ़ि पारहिं जाहिं ।। (मानस ६/४)
यह है सौन्दर्यका जादू ।
अब आइये कुछ मानवोंकी दशा देखिये ….
जो लोग सौन्दर्यको सत्य मानते हैं, उन साधारण मानवोंकी बात हम नहीं करते; हम तो उनकी चर्चा करते हैं, जो इस नाम-रूपात्मक सम्पूर्ण विश्वको मिथ्या मानते हैं बड़ा-से-बड़ा लोभ या भय भी उन्हें अपनी निष्ठासे विचलित करनेमें समर्थ नहीं होता । पर रामके सौन्दर्यने इस असम्भव कार्यको सम्भव कर दिखाया।श्रीरामचरितमानस – बालकाण्ड

नृप सब नखत करहिं उजिआरी । टारि न सकहिं चाप तम भारी ॥
कमल कोक मधुकर खग नाना । हरषे सकल निसा अवसाना ॥
ऐसेहिं प्रभु सब भगत तुम्हारे । होइहहिं टूटें धनुष सुखारे ॥
उयउ भानु बिनु श्रम तम नासा । दुरे नखत जग तेजु प्रकासा ॥
रबि निज उदय ब्याज रघुराया । प्रभु प्रतापु सब नृपन्ह दिखाया ॥
तव भुज बल महिमा उदघाटी । प्रगटी धनु बिघटन परिपाटी ।
बंधु बचन सुनि प्रभु मुसुकाने । होइ सुचि सहज पुनीत नहाने ॥
नित्यक्रिया करि गरु पहिं आए । चरन सरोज सुभग सिर नाए ॥
सतानंदु तब जनक बोलाए । कौसिक मुनि पहिं तुरत पठाए ॥
जनक बिनय तिन्ह आइ सुनाई । हरषे बोलि लिए दोउ भाई ॥

भावार्थ:-सब राजा रूपी तारे उजाला (मंद प्रकाश) करते हैं, पर वे धनुष रूपी महान अंधकार को हटा नहीं सकते । रात्रि का अंत होने से जैसे कमल, चकवे, भौंरे और नाना प्रकार के पक्षी हर्षित हो रहे हैं ॥ वैसे ही हे प्रभो ! आपके सब भक्त धनुष टूटने पर सुखी होंगे । सूर्य उदय हुआ, बिना ही परिश्रम अंधकार नष्ट हो गया । तारे छिप गए, संसार में तेज का प्रकाश हो गया ॥ हे रघुनाथजी ! सूर्य ने अपने उदय के बहाने सब राजाओं को प्रभु (आप) का प्रताप दिखलाया है । आपकी भुजाओं के बल की महिमा को उद्घाटित करने (खोलकर दिखाने) के लिए ही धनुष तोड़ने की यह पद्धति प्रकट हुई है ॥ भाई के वचन सुनकर प्रभु मुस्कुराए । फिर स्वभाव से ही पवित्र श्री रामजी ने शौच से निवृत्त होकर स्नान किया और नित्यकर्म करके वे गुरुजी के पास आए । आकर उन्होंने गुरुजी के सुंदर चरण कमलों में सिर नवाया ॥ तब जनकजी ने शतानंदजी को बुलाया और उन्हें तुरंत ही विश्वामित्र मुनि के पास भेजा । उन्होंने आकर जनकजी की विनती सुनाई । विश्वामित्रजी ने हर्षित होकर दोनों भाइयों को बुलाया ॥

दोहा :

सतानंद पद बंदि प्रभु बैठे गुर पहिं जाइ ।
चलहु तात मुनि कहेउ तब पठवा जनक बोलाइ ॥239॥

भावार्थ:- शतानन्दजी के चरणों की वंदना करके प्रभु श्री रामचन्द्रजी गुरुजी के पास जा बैठे । तब मुनि ने कहा – हे तात ! चलो, जनकजी ने बुला भेजा है ॥239सठ सुधरहिं सत संगति पाई।पारस परस कुधात सुहाई।।
बिधि बस सुजन कुसंगत परहीं।फनि मनि सम निज गुन अनुसरहीं।।।।
दुष्ट भी सत्संगति पाकर सुधर जाते हैं,जैसे पारस के स्पर्श से लोहा सुहावना हो जाता है,सुंदर सोना बन जाता है।किन्तु दैवयोग से कभी सज्जन कुसंगति में पड़ जाते हैं।तो वे वहाँ भी साँप की मणि के समान अपने गुणों का ही अनुसरण करते है।जिस प्रकार मणि उसके विष को गृहण नहीं करती तथा अपने सहज गुण प्रकाश को नहीं छोड़ती,उसी प्रकार साधु पुरूष दुष्टों के संग मे रहकर भी दूसरों को प्रकाश ही देते हैं।दुष्टो का उन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।÷÷÷
श्री रामचरित मानस मनुष्य के लिए औषधि भाँति उपयोगी है उसका अर्थ लगाना अथवा टिप्पणी करना बेवकूफी है साफ शब्दों मे लिखा गया है की छहो शास्त्र सब ग्रंथन को रस मुनि जनधन सन्तन को सरबस सार अंश सम्मत सबकी की।यदि इतना ज्ञान नही है तो अर्थ लगाने पर अर्थ का अनर्थ हो सकता है।क्योकि ये कई त्रेता युगों का वर्णन है जैसे भगवान भोले नाथ माँ पार्वती से कहते हैं की “कहहु एक दुइ कथा बखानी सावधान हो सुनौ भवानी।।तहाँ जालंधर रावण भयऊ

डॉ. जय प्रकाश शुक्ल

एम ए (हिन्दी) शिक्षा विशारद आयुर्वेद रत्न यू एल सी जन्मतिथि 06 /10/1969 अध्यक्ष:- हवज्ञाम जनकल्याण संस्थान उत्तर प्रदेश भारत "रोजगार सृजन प्रशिक्षण" वेरोजगारी उन्मूलन सदस्यता अभियान सेमरहा,पोस्ट उधौली ,बाराबंकी उप्र पिन 225412 mob.no.9984540372