उपन्यास अंश

आजादी भाग –३६

टेम्पो के करीब पहुंचा रामसहाय  उस के करीब किसी को न पाकर टेम्पो के पीछे की तरफ एक डंडा फटकारते हुए ऊँची आवाज में चिल्लाया ” अरे कौन है भाई इस गाड़ी का ड्राईवर ? जल्दी से सामने आ जाओ नहीं तो हमको यह गाड़ी थाने लेकर जाना पड़ेगा । ”

थोड़ी देर  के इंतजार के बाद रामसहाय ने वही चेतावनी फिर दुहरायी । लेकिन फिर वही नतीजा । कोई जवाब नहीं । जबकि कमाल और मुनीर उसकी बोली स्पष्ट सुन रहे थे । मुनीर रामसहाय की चेतावनी से चिंतित तुरंत ही उसके पास जाना चाहता था लेकिन कमाल ने उसका हाथ पकड़कर उसके मंसूबे पर पानी फेर दिया था  । कमाल की बात मानते हुए भी मुनीर को उसकी ख़ामोशी नागवार गुजर रही थी सो फुसफुसाते हुए कमाल से बोला ” अरे कमाल भाई ! तुम जवाब क्यों नहीं दे रहे हो ? तुम्हारी ख़ामोशी  पुलिस के मन में संदेह को जन्म देगी और फिर क्या होगा ? पुलिस गाड़ी को ले जाकर थाने में जमा करा देगी । तब मुश्किल जरुर बढ़ जाएगी । अभी तो हम अनजान बन कर कम से कम खुद को फंसने से बचा सकते हैं । ”
कमाल ने कुछ सोचते हुए जवाब दिया ” मुनीर भाई ! कभी खामोश भी रहा करो । मैं कुछ सोच रहा हूँ । थोडा शांति रखो । मुझे पुलिस की कोई चिंता नहीं है । उनसे निबटना कोई मुश्किल काम नहीं है । मैं तो सोच रहा हूँ कि छोकरे सब इधर उधर हो गए हैं । जो दो तीन दिख भी रहे हैं वो भी उस साहब के साथ बैठ गए हैं । अब ये पता नहीं है कि उन लड़कों ने इन पुलिसवालों को क्या बताया है । हो सकता है कि लड़कों ने पुलिस से सब सच बता दिया हो या यह भी हो सकता है कि उन लोगों ने कालू भाई से डर कर उन लोगों से कुछ भी नहीं बताया हो । ”
मुनीर की हंसी छुट गयी । बोला ” तुम भी कमाल करते हो कमाल भाई ! अरे बच्चे पुलिसवालों को देखते ही उनसे सच ही बोलेंगे न ? झूठ क्यों बोलेंगे ? ”
कमाल ने भी हलकी मुस्कान के साथ उसकी बात का जवाब दिया ” मैं इस लाइन में तुमसे ज्यादा दिनों से हूँ इस नाते मेरा तजुर्बा तुमसे कहीं ज्यादा है । तुम मेरी बात को समझे नहीं । मैं तुम्हारी बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि छोकरे पुलिस से झूठ क्यूँ बोलेंगे ? उनके झूठ बोलने की कोई वजह नहीं है । लेकिन तुमने एक बात का गौर नहीं किया है और वो ये कि अगर बच्चों ने सही बता दिया होता तो अभी तक पुलिस वाले पागल कुत्ते की तरह से हमें चारों तरफ सूंघ रहे होते । इसीलिए मैं कंफ्यूज हूँ कि उन लड़कों ने पुलिस वालों को सही बताया भी है कि नहीं । और यही जानना हमारे लिए जरुरी है ताकि हम उसी के मुताबिक अपनी योजना बनाकर पुलिस के सवालों के जवाब दे सकें । ”
” लेकिन कमाल भाई ! अभी तुमने देखा नहीं ! वो जो साहब है न उसने कितने प्रेम से उन बच्चों को नाश्ता कराया है । ” मुनीर ने भी आखिर अपनी शंका जता ही दी थी ।
अब कमाल ने हथियार डालने के अंदाज में बोला ” तुम शायद ठीक कह रहे हो । शायद ऐसा ही हो । चलो लेकिन उनके सामने थोडा खामोश ही रहना । उनको जो बताना है मैं ही बताऊंगा । समझ गए ? चलो ! ”
सड़क के दूसरी तरफ के खेतों में से बाहर आते हुए कमाल ने वहीँ सड़क किनारे फेंकी हुई प्लास्टिक की एक बोतल हाथ में उठा ली । उसने मुनीर को भी एक बोतल उठाने के लिए कह दिया और उसे समझा दिया कि पुलिस वाले को क्या बताना है ।
अगले ही मिनट दोनों अपने टेम्पो के पास पहुँच चुके थे । उनका इंतजार कर और कई दफा चिल्लाने के बाद रामसहाय भी ढाबे की तरफ चल दिया था । अभी वह ढाबे के अन्दर घुसा भी नहीं था कि टेम्पो का  दरवाजा खुलने की आवाज सुनकर वह पीछे मुड़ा । कमाल टेम्पो का दरवाजा खोलकर उसके डैश बोर्ड की सफाई कर रहा था । वह जानबूझ कर पुलिस वालों की तरफ से अनजान बना हुआ था ।
रामसहाय की नजर उनपर पड़ते ही वह घूम कर फिर से टेम्पो के करीब पहुंचा और गाड़ी पर डंडा फटकारते हुए पूरे पुुुलिसिया रौब से बोला ” कहाँ गए थे तुम दोनों ? मैं यहाँ कब से तुम लोगों को ढूंढ रहा था । ”
चौंकने का शानदार अभिनय करते हुए कमाल बोला ” क्या हुआ साहब ? क्यों खोज रहे थे हम लोगों को ? हमने किया क्या है ? ”
” चल अब ज्यादा होशियार मत बन !  वहां साहब बैठे हैं । बुला रहे हैं । ” सिपाही ने कमाल को धौंस दिया ।  लेकिन कमाल को तो इन सब चीजों का खासा अनुभव था   जबकि अनुभवहीन मुनीर के ह्रदय की धड़कनें बढ़ गयी थी ।
लापरवाही से दोनों कंधे उचकाते कमाल रामसहाय के पीछे पीछे चल दिया । मुनीर को उसने वहीँ रुकने का इशारा कर दिया था ।
ढाबे में प्रवेश करते ही उसे राहुल और मनोज तथा बंटी बिस्किट खाते हुए दिख गए थे । उन्हें देख कर भी अनदेखा करते हुए कमाल आगे दरोगा दयाल की तरफ बढ़ गया
एक मेज के पीछे बेंच पर बैठा दयाल उन्हीं की तरफ देख रहा था । नजदीक पहुँच कर कमाल ने एक हाथ उठाया और उसे अभिवादन करता हुआ बोला ” सलाम साब ! क्या हुआ है ? ये साब बोल रहे हैं कि आपने मुझे बुलाया है । ”
दयाल ने अपने चेहरे पर भरसक कठोरता लाते हुए कमाल को घूरते हुए पूछा ” ये गाडी किसकी है ? क्या लदा है इसमें ? ”
दयाल के रौब को नजरअंदाज करते हुए कमाल ने संयत स्वर में जवाब दिया ” गाडी तो मेरे शेठ की है  । कुछ कार्टून है जिसमें कोई खुदरा सामान भरा है । क्यों कोई बात है क्या ? ”
इससे पहले कि दयाल कुछ कहता रामसहाय ने पुलिसिया अंदाज में कमाल को हड़काया ” साहब तुझसे जितना पूछ रहे हैं उतना ही जवाब दे । ज्यादा होशियार बनने की कोशिश मत कर ।  समझा ? ”
कमाल क्या जवाब देता । खामोश रहना ही उसके लिए बेहतर था यह वह अच्छी तरह जानता था । पुलिस वाले बाल की खाल कैसे निकालते हैं इससे कमाल भलीभांति परिचित था ।
अब दयाल बेंच से उठते हुए बोला ” चलो ! तुम्हारी गाड़ी के पास चलते हैं । क्या नाम है तुम्हारा ? ”
दयाल के पीछे पीछे चलते हुए कमाल ने जवाब दिया ” कमाल ! ”
दयाल ने चलते चलते ही उसकी तरफ हाथ बढ़ाते हुए बोला ” अच्छा ! अपना लाइसेंस दिखाओ ! ”
कमाल ने जेब में हाथ डालते हुए जवाब दिया ” लाइसेंस तो है साहब लेकिन आप बता नहीं रहे हैं बात क्या है ? ”
चलते चलते ही कमाल के कंधे पर अपने हाथ रखते हुए दयाल ने सर्द स्वर में उसे समझाया ” कमाल भाई ! तुम भी न कमाल करते हो । अभी सिपाही रामसहाय ने तुम्हें इतने प्रेम से समझाया कि तुमसे जितना पूछा जाये उतना ही बोलो । लेकिन लगता है कि तुम्हें रामसहाय की प्रेम की भाषा समझ में नहीं आती । लाओ लाइसेंस दो । ”
कमाल पर अब मनोवैज्ञानिक दबाव पड़ने लगा था । ख़ामोशी से बिना कुछ बोले उसने जेब से पर्स निकाला और उसमें से लाइसेंस निकाल कर दयाल के हाथों पर रख दिया ।

 

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।