लघुकथा

लघुकथा – मनहूस

बताईये डाक्टर साहब संजय कैसै हैं? भराई हुई आवाज़ में नीता ने पूछा।
“हमने अपनी कोशिश कर ली, आगे जो भगवान की मर्जी ” कह डाक्टर चला गया।
नीता और संजय की शादी को कुछ दिन ही हुए थे, संजय अपनी बाइक से जा रहा था ,तभी अचानक पीछे तेज रफ्तार से आती हुई कार ने टक्कर मारी, कई फुट ऊपर उछलकर गिरे वो। कार वाला तो भाग गया मगर वहां भीड़ में से किसी ने उसे अस्पताल पहुंचाया ।
   रिश्तेदारों का आना जाना शुरू हो गया, वो माँ से तो सांत्वना जताते, मगर नीता को गुनहगार की दृष्टि से देखते , कई लोगों ने ये भी कहा नीता मनहूस निकली संजय के लिए। यह सब सुन टूट सी गयी नीता ।
उसने मन ही मन निश्चय किया और सास के पास गयी, “माँजी मैं आपसे कुछ कहना चाहती हूं ”
नीता के गले से शब्द अटक -अटक कर निकल रहे थे ” माँजी संजय की इस हालत के लिये मैं जिम्मेदार हूं , शायद मैं उनके लिये मनहूस हूं इसलिए आज संजय की यह हालत है , मगर माँजी एक बार संजय ठीक हो जाए मैं खुद उनकी जिंदगी से दूर चली जाऊंगी, बस उनके ठीक होने तक मुझे उनके साथ रहने दें।” नीता के हाथ विनती की मुद्रा में जुड़े हुए थे व आँखों से अविरल अश्क बहे जा रहे थे।
“यह क्या कह रही हो बहू?” माँजी ने कहा “क्यूं ऐसा सोच रही हो ?
“अरे पगली, लोगों को मौका चाहिये बोलने का, मगर यह हम पर निर्भर करता है कि हम कितनी उनकी सुनते हैं! मेरी सोच इतनी छोटी नहीं कि बेटे के साथ घटी दुर्घटना का दोष बहू को दूं।”
नीता के आँसू पोचते हुए बोली ” फिक्र ना करो बहू संजय जल्द ठीक हो जायेगा मुझे भगवान पर पूरा भरोसा है, जब हमने किसी का बुरा नहीं किया तो हमारे साथ क्यूं बुरा होगा ?”
नीता सास के गले लगते हुए बोली ”आज आपके रूप में मुझे मेरी माँ वापस मिल गयी।”
नीता जी जान लगाकर संजय की सेवा करने लगी, तब भगवान को भी उनके  प्यार और सेवा के सामने झुकना पडा ।

*प्रिया वच्छानी

नाम - प्रिया वच्छानी पता - उल्हासनगर , मुंबई सम्प्रति - स्वतंत्र लेखन प्रकाशित पुस्तकें - अपनी-अपनी धरती , अपना-अपना आसमान , अपने-अपने सपने E mail - [email protected]