नदी को मनुष्य का दर्जा
नैनीताल हाइकोर्ट ने गंगा और यमुना को मनुष्य का दर्जा दिया है । क्या कोई ऐसी अदालत है जहां मनुष्य को नदी का दर्जा दिया जा सके । आप सोचेंगे ये क्या पागलपन है । हाँ मैं ऐसी मनुष्य नहीं बनना चाहती जहाँ कोण कोण पर बनावटी पन और दोगलेपन के पैमाने से मनुष्यता नापी जाती हो ।
नदी के नदीपन को नापने के लिए कोई पैमाना नहीं निर्धारित है क्योंकि वो नदी है इसीलिए निर्मल है लेकिन मनुष्यता के लिए हर जगह पैमाने हैं दिखावटी !
इसीलिये मनुष्य में नदी सी निर्मलता कहाँ ?
नदी को जबसे ये फरमान सुनाया गया है तभी से वो बड़ा चिंतित है ये सोच सोच कर की अब उसे कैसे और कितना कहाँ कहाँ बहना होगा क्योंकि वो मनुष्य है अब नदी नहीं।
जब तक नदी थी तब तक वो आडंवर शब्द से वाकिफ नही थी लेकिन एकाएक जबसे वो मनुष्य हो गयी है उसे सबसे ज्यादा चिंता तो ये सता रही है कि अब उसे वो दिखना होगा जो वो नहीं है और जो वो है वो उसे छुपाना होगा ।
मनुष्यों की दुनियां का पहला उसूल। बचपन से ही जिसे हर घर में बच्चों को सिखाया जाता है कि बेटा झूठ मत बोलो झूठ बोलना पाप है।बेटा सोचता है हाँ पाप बिलकुल सही झूठ बोलना पाप है और प्रण करता है कि वो झूठ नहीं बोलेगा। लेकिन दूसरे ही दिन गेट पर कोई अंकल उसके पापा को आवाज़ लगाते है और पापा उसका हाथ पकड़ कर समझाते हैं,बेटा अंकल को बोलो पाप घर पर नहीं है ।और बेटा कश्मकश में की झूठ बोलना सच में पाप है ये सोचते सोचते अंकल को पहली बार बोल देता है कि पापा घर पर नहीं है ।
धीरे धीरे येही जेनेरेशन इसी तरह सच बोलने की प्रैक्टिस करती हुई बड़ी होती है और बड़े होने पर बड़े आराम से पापा को घर का कोना दिखाते हुए घर पर पूरा कब्ज़ा कर लेती है ये ही जेनेरेशन होती है जो माँ से बायीं का काम लेती है और बड़े प्यार से बोलती है अंकल को की मां की खाली बैठने की आदत नहीं है वो कुछ न कुछ करती रहती हैंऔर इधर मां अपनी दर्दीली कलाई के साथ रोटियां सेकती रहती है आंसू पोछ के।
तो नदी के दिमाग में ये सब भी है कि अब उसे मनुष्यता की प्रामाणिकता के साथ साथ क्या क्या प्रमाणित करना होगा।
अब नदी के पास अधिकार है कि कोई उसे प्रदूषित करे तो वो सीधे कोर्ट जा सकती है मुकदमा कर सकती है मैं सोच रही हूँ की क्या मनुष्यों के पास ये अधिकार है कि कोई उनकी सोच को जबरदस्ती प्रभावित करे तो क्या अदालत संज्ञान लेगी ।लेती तो जन्मभूमि मुद्दा क्या इतना लटकता और फिर जिनके ऊपर केस बन रहे हैं कोर्ट आखिर उनके खिलाफ कार्यवाही कैसे कर सकती है ।
हाँ इस को टाल सकती है हाथ खड़े कर सकती है कि भाई अपने अपने घर में निबटा लो झगड़ा हमारे पास वक़्त नहीं है। लेकिन नदी के पास हक़ है अब वो चाहे जैसे बह सकती है अगर कोई उसके रास्ते में आएगा कोई भी माइनिंग या कंस्ट्रक्शन होगा तो सीधे अदालत में जाके शिकायत कर सकती है।
वैसे लोगों की संपत्ति पर जब अनाधिकृत रूप से लोग जबरन कब्ज़ा कर लेते हैं तब के लिए पता नहीं लोगों के पास अदालत जाने का अधिकार है या नहीं…!लेकिन चलो नदी के पास तो है न की अब उसकी जमीन उसकी ही है वो जैसे चाहे रहे मेरा मतलब बहे ।
चलो नदी तो खुश है मनुष्यों का दर्जा पाकर । अब उसे क़ानूनी अधिकार जो मिल गए हैं न !! लेकिन अधिकार तो मनुष्यों के पास भी हैं वे खुश हैं या नहीं……….
अरे कोई पता लगाओ तो फिर मंदिर कहाँ बनेगा……..