“दोहा”
आया मनवा झूमते, अपने अपने धाम
गंगा जल यमुना जहाँ, वहीं सत्य श्रीराम॥-1
कोई उड़ता ही रहा, ले विमान आकाश
कोई कहे उचित नहीं, बादल बदले प्रकाश॥-2
अपनी अपनी व्यथा है, अपने अपने राग
कहीं प्रेम परिहास है, कहीं पथ्य अनुराग॥-3
मंशा कौशल मानकी, नेकी नियती त्याग
कर्म फलित होता सदा, जाग कलंदर जाग॥-4
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी