गीत/नवगीत

दुनिया

दुनिया के सृजनहार
बनाया क्यूँ तूने संसार
यहाँ सब गम के मारे हैं  –2

कोई दाने को तरसे
कोई हाथ तोंद पर फेरे
यहाँ घाट घाट पर झूठों और
मक्कारों के हैं डेरे
सौ के सौ हैं बेजार
यहाँ दुःख कितने सारे हैं
यहाँ सब गम के मारे हैं –2

       है कोई यहाँ दबंग
तो कोई फक्कड़ बना मलंग
इस उंच नीच के भेद से अब तो
हर कोई आया तंग
सौ में अस्सी बेकार
काम यहाँ इतने सारे हैं
यहाँ सब गम के मारे हैं  –2

   नफ़रत की गंगा बहे कहीं
कहीं कोई अस्मत लुटे
जात पांत के झगड़े में
जाने कितने दिल टूटे
यहाँ जीना हुआ बेकार
करम के फेर ये सारे हैं
यहाँ सब गम के मारे हैं –2

  कहीं धन धन धन है बरसे
कोई पाई को है तरसे
कोई बूंद बूंद को तरसे
बादल बाढ़ जहाँ वहीँ बरसे
अब तो दूषित हुआ विचार
जंग बिन लड़े ही हारे हैं
यहाँ सब गम के मारे हैं  — 2

   मानव मानव को ठगने में
कोई कोर कसर ना छोड़े
छोटे से मतलब की खातिर
जाने कितने दिल तोड़े
प्रेम का ढोंग करे बेकार
मैल मन में ही सारे हैं
यहाँ सब गम के मारे हैं –2

     दुनिया के सृजनहार
बनाया क्यूँ तूने संसार
यहाँ सब गम के मारे हैं  –2

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।