ग़ज़ल
अब दुवाओं के लिए हाथ उठाया जाए
तेरे दर पे न् कभी जुल्म का साया जाए ।।
हुस्न मगरूर हुआ है ये सही है यारों ।
आइना उसको न् अब और दिखाया जाए ।।
होश खोना भी जरूरी है मुहब्बत के लिए ।
सुर्ख होठों पे कोई जाम सजाया जाए ।।
पूछ मत दर्द से रिश्तों की कहानी मेरी ।
ज़ह्र देना है तो बेख़ौफ़ पिलाया जाए ।।
एक हसरत के लिए जिद भी कहाँ है वाजिब ।
गैर चेहरों को चलो दिल में बसाया जाए ।।
बिक गई आज निशानी भी जो तुमने दी थी।
आखिरी रात है क्या दांव लगाया जाए ।।
इस से पहले वो बदल जाए न् वादा करके ।
कोई चर्चा न् सरेआम चलाया जाए ।।
वह उतारा है नया चाँद ज़मी पर देखो ।
ख़ास इल्ज़ाम मुकद्दर से हटाया जाए ।।
इक ज़माने से अना की है नुमाइश काफ़ी ।
नाज़नीनों का ये पर्दा भी उठाया जाए ।।
–नवीन मणि त्रिपाठी