इश्क इश्क में ख़ुद को मिटाना पड़ता है
इश्क में ख़ुद को मिटाना पड़ता है
सोच सोच के कदम बढाना पड़ता है
मोहब्बत का मकां बनाने के लिए
समझदारी का सामान जुटाना पड़ता है
जल्दबाजी कभी होती नहीं अच्छी
कोयले को धीरे-धीरे सुलगाना पड़ता है
उलझनें बड़ी हैं इश्क की डगर में
कुछ समझना कुछ समझाना पड़ता है
ये खेल नहीं जिसमें जीतना जरूरी हो
जीतकर भी खु़द को हराना पड़ता है
फ़कत फूलों से सजी कोई सेज तो नहीं
आग का दरिया है ये डूब जाना पड़ता है
इश्क के दरिया में डूबने का है अदब
सनम के आगे सर को झुकाना पड़ता है