कविता

कविता : करघा व्यर्थ  हुआ

करघा व्यर्थ  हुआ  
कबीर ने  बुनना छोड़  दिया ।  
काशी में  
नंगों   का  बहुमत ,
अब चादर  की 
किसे  जरूरत ,
सिर   धुन  रहे  कबीर 
रूई का 
धुनना छोड़  दिया ।
धुंध भरे  दिन  
काली  रातें ,
पहले  जैसी 
रहीं  न  बातें ,
लोग  काँच पर  मोहित 
मोती 
चुनना छोड़ दिया ।
तन मन  थका 
गाँव घर  जाकर ,
किसे  सुनायें 
ढाई आखर ,
लोग बुत हुए 
सच्ची बातें 
सुनना छोड़ दिया ।  
 
—  त्रिलोक सिंह ठकुरेला

त्रिलोक सिंह ठकुरेला

जन्म-तिथि ---- 01 - 10 - 1966 जन्म-स्थान ----- नगला मिश्रिया ( हाथरस ) पिता ----- श्री खमानी सिंह माता ---- श्रीमती देवी प्रकाशित कृतियाँ --- 1. नया सवेरा ( बाल साहित्य ) 2. काव्यगंधा ( कुण्डलिया संग्रह ) सम्पादन --- 1. आधुनिक हिंदी लघुकथाएँ 2. कुण्डलिया छंद के सात हस्ताक्षर 3. कुण्डलिया कानन 4. कुण्डलिया संचयन 5.समसामयिक हिंदी लघुकथाएं 6.कुण्डलिया छंद के नये शिखर सम्मान / पुरस्कार --- 1. राजस्थान साहित्य अकादमी द्वारा 'शम्भूदयाल सक्सेना बाल साहित्य पुरस्कार ' 2. पंजाब कला , साहित्य अकादमी ,जालंधर ( पंजाब ) द्वारा ' विशेष अकादमी सम्मान ' 3. विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ , गांधीनगर ( बिहार ) द्वारा 'विद्या- वाचस्पति' 4. हिंदी साहित्य सम्मलेन प्रयाग द्वारा 'वाग्विदाम्वर सम्मान ' 5. राष्ट्रभाषा स्वाभिमान ट्रस्ट ( भारत ) गाज़ियाबाद द्वारा ' बाल साहित्य भूषण ' 6. निराला साहित्य एवं संस्कृति संस्थान , बस्ती ( उ. प्र. ) द्वारा 'राष्ट्रीय साहित्य गौरव सम्मान' 7. हिंदी साहित्य परिषद , खगड़िया ( बिहार ) द्वारा स्वर्ण सम्मान ' प्रसारण - आकाशवाणी और रेडियो मधुवन से रचनाओं का प्रसारण विशिष्टता --- कुण्डलिया छंद के उन्नयन , विकास और पुनर्स्थापना हेतु कृतसंकल्प एवं समर्पित सम्प्रति --- उत्तर पश्चिम रेलवे में इंजीनियर संपर्क ---- बंगला संख्या- 99 , रेलवे चिकित्सालय के सामने, आबू रोड -307026 ( राजस्थान ) चल-वार्ता -- 09460714267 / 07891857409 ई-मेल --- [email protected]