कविता

मुहब्बत….

जितना समेटता है दिल
मुहब्बत के एहसासों को;
उतना ही बिखरता जाता !
तोड़के सारे हदों का किला
तेरी ओर खीचा चला जाता;

ये कैसा ! प्रेम गुरुत्वाकर्षण
जिस्म तो स्थिर है पर रूह !
बेगाना होता जा रहा;

इतना सुकून मेरी मुहब्बत को !
तुम्हारे एहसासों की सुगंध से
शर्म हया सब भूलके एक तुम्हारे
आगोश में आ जाना चाहता;

अजीब कशमकश है मुहब्बत की !
लम्हा कटता नहीं सब्र होता नहीं
बस एक तुम्हारी चाहत का समां;
दिल में जलाए रोज जल-बुझ रहा।

*बबली सिन्हा

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