कहानी

कहानी : तू प्यार का सागर है

प्रिय दिलीप अंकल,

नमस्ते।

मैं? तमलाव गांव से ललिता। आप हमारे गांव के स्कूल में परमाणु ऊर्जा के सदुपयोग पर बिजली घर से वार्ता देने आए थे। कई बार आते रहे। सेवानिवृत्ति के पश्चात् आपने अपने परिचय में स्वयं को भूतपूर्व वैज्ञानिक अधिकारी बतलाया। पर हम स्कूल की भोली मासूम गरीब बेटियों को जो प्यार आपने दिया वह तो कोई भूतपूर्व अधिकारी नहीं, अभूतपूर्व व्यक्ति ही दे सकता है। अनुशासन, समय, संस्कार, चरित्र, करियर, आत्मनिर्भरता के पाठ हमें आपने पढ़ाए। गर्मी-सर्दी में हमारे जलते-गलते पैरों में आपने चप्पलें जूते पहनाए। सर्दी में कांपती हम बेटियों को आपने स्वेटर जर्सी कार्डिगन पहनाए। पोषाहार बनाने वाली आंटियों को आपने नवरात्रों में साड़ियां दीं। आंटी की स्मृति में आपने हमारे स्कूल के हर कमरे में पंखे लगवा दिए। हम जंगली फूलों का गुलदस्ता आपको देते, उसे भी आप घर पर कई दिनों तक पानी भरे गिलास में रखते थे। हमारे गांव की गुमटी की चाय नमकीन भी आप पे्रम से पीते खाते थे। हर वर्ष आपकी दी गई नोटबुक में ही हम स्कूल का होमवर्क करती रहीं। कक्षा आठ-दस की सभी छात्राओं की बोर्ड परीक्षा की फीस भी आपने भरी थी।

पूरे गांव में आप घूमते थे। गर्मी में भी तेरहवीं पर प्रसाद भी आपने पत्तल दोने में खाया। गांव की हर बेटी की शादी में कन्यादान का लिफाफा आपसे लिए बिना कोई बेटी विदा नहीं होती थी। हर आने वाली भाभी की मुंहदिखाई का शगुन भी आप देते थे। प्लांट वाले पानी या दवाइयों की एम्बुलेंस बंद कर देते थे, तो हमारे गांव वाले आपको ही समस्या के समाधान हेतु फोन करते थे। आपके पास हमारे स्कूल व गांव की हर समस्या का समाधान होता था। हमारे स्कूल एवं गांव से आपको बहुत लगाव था। अपना स्वयं का जन्मदिन भी आप हम सबके साथ मनाते थे। बिस्कुट, लड्डू लेकर आते थे, पोषाहार बनाने वाली बहन की खीर आपको काजू कतली से भी अधिक स्वादिष्ट लगती थी। भाटिया सर से आप दिलीप अंकल बन गए। प्यार का सागर हैं आप तो। आपके रिटायरमेंट पर गांव वालांे ने आपके विभाग के प्रमुख को प्रार्थना पत्र भी लिख दिया था। पर हम गरीबों की पुकार बड़े लोगों ने नहीं सुनी। लेकिन, रिटायरमेंट के पश्चात् भी आप स्कूल एवं गांव निरन्तर आते रहे।

हां, प्लांट की समस्या पर आपकी आंखों में आंसू आ जाते थे कि अब मैं रिटायर हो गया हूं। कैसे तुम्हारी मदद करूं? उगते सूर्य को सब नमस्कार करते हैं, डूबते सूरज को कौन अघ्र्य देता है? रावतभाटा के काॅलेज में भी हम बेटियों की फीस आप भरते रहे। हममें से कुछ बेटियों को तो आपने बी.एड. भी करवा दिया। आपकी संजीवनी बूटी से आज मैं उसी स्कूल में शिक्षिका बन गई हूं। आत्मनिर्भर बनकर ही शादी करने वाला आपका मंत्र मुझे अभी भी याद है। शहर में पले पढ़े बड़े व्यक्ति गांव के प्रति इतना स्नेह रख सकते हैं, यह आपने कथनी से नहीं करनी से सिद्ध कर दिया है। क्या भूलूं, क्या याद करूं? एक अंकल को सांप ने काट लिया था, आपने झाड़ फूंक के अंधविश्वास के लिए मना कर दिया। प्लांट के अस्पताल में उसका इलाज करवाया। स्वयं एक यूनिट खून भी देकर उसके प्राण बचाए। आज उन आंटी के हाथों में बची सुहाग की चूड़ियां आपके कारण ही हैं। हमारे गांव पर आपके इतने अधिक उपकार हैं, जिन्हें इस छोटे से पत्र में लिखना संभव नहीं है।

हां, गांव में कई मोर्चों पर आपको विरोध का भी सामना करना पड़ रहा है। शराब, तम्बाकू, गुटखे का सेवन, बाह्य पदार्थों का उपयोग, बाल विवाह, मृत्यु भोज, हर घर में शौचालय, लड़कियों की उच्च शिक्षा, दहेज इत्यादि मोर्चों पर आपके प्रयासों को जब सफलता नहीं मिलती है तो आपकी आंखें भर जाती हैं। पर आप अपने प्रयास बंद नहीं करते। आपकी सहनशक्ति अपार है। गांव में दूषित राजनीति के कारण एक गुट आपको धमकियां भी देता है। पर आप चुप रहते हैं। आपका कहना है कि ‘सत्य परेशान हो सकता है, पराजित नहीं।’ स्कूल के टीचर्स को आप मार्गदर्शन देते हैं। पर, अधिकांशतः आप ‘एकला चलो रे’ की तर्ज पर चलते रहते हैं। अंकल, स्वस्थ परम्पराओं हेतु आपके द्वारा प्रज्ज्वलित दीपक को हम सभी टीचर्स चिराग बनाए रखेंगे।

परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा विकरणित बीज दाल, चावल के आपने हमें लाकर दिए। जिससे कम समय में अधिक मात्रा में फसलें होने लगी हैं। मूंगफली की पैदावार तो दुगुनी हो गई है। गांव के सभी किसान आपके ड्डतज्ञ हैं। नए बच्चों को आपने प्रोत्साहित कर फिटर, कारपेंटर, इलेक्ट्रिशियन के कोर्स करवाए एवं अपने प्लांट में दैनिक भत्ते पर ही सही, रोजगार भी दिलवाया। नई पीढ़ी तो आपकी पूजा करती है। हमारे मिडल स्कूल को क्रमोन्नत करवाकर माध्यमिक स्कूल बनवा दिया, पोषाहार रखने के लिए ड्रम दिए। पीने के पानी के लिए टंकी दी, आधुनिक स्वार्थी युग में इतना परोपकार कौन करता है।

स्नेह की गागर, प्यार के सागर हैं आप। कुछ गांव वालों ने आपके सीधेपन, भोलेपन का अनुचित लाभ भी लिया है, झूठी कहानी गढ़कर आपको बेवकूफ भी बनाया है। पर, फिर भी, आप अपना सीधापन नहीं छोड़ना चाहते। मन में तो बहुत कुछ है, आज मैं उच्च शिक्षा प्राप्त कर आत्मनिर्भर हूं। मनपसंद का जीवन साथी मोहन पाकर आत्मसंतुष्ट भी हूं। मुझे एक गुणवत्तापूर्ण जीवन देने के लिए मेरे पास के धन्यवाद, ड्डतज्ञता, आभार, शुक्रिया, थैंक्स के औपचारिक शब्द आप जैसे महान व्यक्तित्व के समक्ष बहुत छोटे हैं।

वाट्सएप, मैसेंजर, ई-मेल से यह पत्र मैं आपको मात्र अग्रिम सूचना भर देने के लिए भेज रही हूं। आप अपनी व्यक्तिगत परेशानी किसी को नहीं बतलाते। पर आपका उदास चेहरा बहुत कुछ बतला देता है। आगामी रविवार को मोहन आपको लेने आ रहे हैं। ललिता बेटी को भी आप की सेवा करने का अधिकार है। निर्णय हम कर चुके हैं आपको साथ रखने का। ललिता बेटी आपके आने की प्रतीक्षा करेगी एवं स्वागत भी। शेष मिलने पर –

आपकी बेटी

ललिता

*दिलीप भाटिया

जन्म 26 दिसम्बर 1947 इंजीनियरिंग में डिप्लोमा और डिग्री, 38 वर्ष परमाणु ऊर्जा विभाग में सेवा, अवकाश प्राप्त वैज्ञानिक अधिकारी