ग़ज़ल : सोच हो गई ऐसी !!
यहां विदेशी शरण पा रहे इनके कई हितैषी !
देश की चिंता यहां किसे है , मन भाये परदेसी !!
कहीं धर्म आगे आता है , अपनेपन का कोना !
संविधान का लिए हवाला , ममता उमड़ी कैसी !!
कानूनों को रखा ताक है , तीन तलाक न छूटे !
यहां धज्जियां उड़ा रहे है , संविधान की ऐसी !!
दलगत राजनीति सुर साधे, अवसर हाथ न जाये !
नीयत लगे बदलना मुश्किल , सच वैसी की वैसी !!
नहीं नियंत्रण जनसंख्या पर , उसका भान कहाँ है !
आतंक जहां भाईचारा , सोच हो गई कैसी !!
पाकिस्तानी मंसूबे है , सबके सामने जाहिर !
आंख मूंद कर बैठे हैं हम , अपनी करनी कैसी !!
अपना देश नहीं स्वीकारे , दुनिया जिन्हें नकारे !
उनके लिये सहानुभूति की , दरिया बहती ऐसी !!
राजनीति है बड़ी विषैली, कौन दंत अब तोड़े!
न्याय प्रक्रिया हमें चाहिये , मृत्युजंय के जैसी !!
बृज व्यास