कहानी

आॅफिसर

विशाल समाहरणालय भवन की सीढियों पर एक किनारे पिछले कई घंटों से मैली-कुचैली अवस्था में राहुल के इन्तजार में बैठी बुढ़िया लगभग थक ही चुकी थी। प्रतीत होता था, मानो आधी नींद में ही वह अपनी पूरी थकान मिटा देना चाहती हो। राहुल से तकलीफों को बयां कर वह निश्चिंत हो जाना चाहती थी, बाकि उपर वाले की जैसी मर्जी। सीढ़ियों पर चढ़ते-उतरते चप्पल-जूतों की आहट से कभी-कभार अपनी आँखें खोलकर आश्वस्त हो लेती कि उसकी वजह से किसी को कोई दिक्कत तो नहीं आ रही। इधर-उधर देख लेने के बाद पुनः पूर्व अवस्था में आ जाती। कई घंटों से लगातार खामोश बैठी बुढ़िया पर अचानक एक समाहरणालय कर्मी की नजर पड़ी।

क्या बात है माँ जी, किससे मिलना है ? खाखी वर्दी वाले पिउन ने बुढ़िया से सवाल किया। बुढ़िया निरुत्तर। तभी एक दूसरे व्यक्ति ने कहा, हटाओ जल्दी इसे नही तो खामखाह साहब गुस्से में आ जाऐगे। पिउन फिर भी धैर्यवान था, कुछ देर यूँ ही रुका रहा।
माता जी किससे मिलना चाहती हैं आप और क्यूँ ? बुढ़िया को सहारा देकर उठाते हुए पिउन ने कहा।
राहुल………।
कौन राहुल…. ?
जिसके कदम पड़ने से मेरा घर पवित्र हो गया, मेरे दुःख, दर्द को जो अपना समझता है।
किसकी बात कर रही हैं आप……? यहाँ कोई राहुल…..वाहुल नहीं रहता। चलिये उठिए, और जाईये यहाँ से, झल्लाते हुए पिउन ने कहा। यहाँ किसी राहुल का आॅफिस नहीं। जिला के बड़े साहब बैठते हैं, अब आप समझीं ? कहाँ….कहाँ से कैसे लोग माथा खाने के लिये पहुँच जाते हैं, सर खुजाता हुआ पिउन आगे बढ़ चला।

अरे जाओ, साहब के पास इसे ले जाओ। पता नहीं किस राहुल को पिछले कई घंटों से खोज रही है, बड़ा बाबू ने पिउन को निर्देश देते हुए कहा। पिउन ने साहब के चेम्बर में फाईल के नीचे एक छोटा सा स्लिप छोड़़ दिया और चला गया।आॅफिस के सीसीटीवी कैमरे से साहब यह दृश्य देख रहे थे।
ट्रिन….ट्रिन….ट्रिन।
साहब को सेल्युट देते हुए पिउन झट खड़ा हो गया। क्या बात है जी, कौन मिलना चाहता है मुझसे ….?
हुजूर कई घंटों से नीचे सीढ़ियों पर बैठी एक बुढ़िया किसी राहुल से मिलना चाहती है। बारः-बार समझाने के बाद भी हटने का नाम नहीं ले रही।
क्या बकवास कर रहे हो, कौन है वह…..?
लगता है बुढ़िया आप से ही मिलना चाहती है।
मुझसे…..बुलाओ उसे।
हाँ बोलिये माता जी….., कैसे आना हुआ इधर।
आँखें तरेरते हुए साहब ने बुढ़िया से सवाल किया, मानों जीवन में सबसे गए-गुजरे व्यक्ति से मिल रहे हों वे।
बेटा राहुल को खोज रही हूँ।
राहुल और आपका बेटा……. ?
बेटा नहीं, किन्तु बेटा ही समझो।
यहाँ कोई राहुल-वाहुल नहीं रहता, आपको शायद भ्रम हो गया है।
कोई भ्रम नहीं बेटा, भली-भाँति उसे जानती हूँ।
काम तो बतलाईये कृप्या ?

बिछिया पहाडी की रहने वाली, आदिम जनजाति पहाड़िया समुदाय की एक पीड़ित महिला हूँ। माँ-बाप, भाई-बधु, अपना-पराया कोई नहीं है मेरा इस जहाँ में। समझ लो, दुनिया में अकेली ऐसी महिला हूँ जिसे देखने वाला कोई नहीं।
माँ-बाप की इकलौती बेटी थी, दोनों की मृत्यु के बाद मैं तन्हा रह गयी। शादी हुई तो तन्हाई मिट गई, किन्तु शराब पीने वाले पति की मृत्यु भी अल्पकाल में ही हो गई। एक पुत्र था जन्म के कुछ वर्षों बाद वह भी कालाजार से पीड़ित रहने लगा। महीनों तक दूसरों के घरों में चूल्हा-चैकी कर उसका इलाज करवाती रही। वह भी नहीं रहा। माँ…..माँ कहते हुए उसने भी अपने प्राण त्याग दिए। पहाड़ ही गिर पड़ा  । किसी ने साथ नहीं दिया। उसका दाह संस्कार भी खुद ही करना पड़ा मुझे। पुरखों की छोड़ी जमीन के छोटे से टुकड़े मात्र बचे रह गए थे मेरे लिये। कुलथी, घंघरा, मड़ुआ, बरबट्टी, जोनरा उपजा-उपजा कर जीवन की बैलगाड़ी खींच रही थी। वही थोड़ी सी जमीन एकमात्र मेरी पूँजी थी।

पिछले कुछ वर्षों से महाजन के बहकावे में गोतिया भाईयों ने मेरी जमीन हड़पने की खूब गंदी चाल चली। डायन बताकर पहले तो लोगों ने काफी जलिल किया। बेटे को खा गई आरोप मढ़कर निःवस्त्र घुमाया। मल-मूत्र तक खिलाने पर मजबूर किया। किसी बच्चे की तबीयत बिगडने पर मुझे ही दोषी ठहराया जाता, बदले में लाठी-डंडों से मेरा स्वागत किया जाता। लात-घूँसे खाना प्रतिदिन का रुटिन बन गया था। मै तड़प कर रह जाती। महाजन की नजर जमीन पर थी। मेरी हत्या करवा कर वह जमीन हड़पना चाहता। अनपढ़ ग्रामीण उसी की भाषा में बात करते। गाँव छोड़कर अन्यत्र भागने पर विवश करने के कई प्रयास किये गए। सहती रही उनके जूल्म। खाती रही लाठियाँ। मर जाउँगी पर एक रत्ती जमीन नहीं दूँगी, मैनें भी प्रण कर लिया था। अकेली बुढ़िया उनके जुल्मों से अंततः तंग आ गई।

गाँव में एक दिन एक बडे साहब का आगमन हुआ। गाँव वालों ने अपनी-अपनी समस्याएँ रखीं। मेरी हालत पर किसी ने रहम नहीं खाया। साहब की निगाह मुझपर पड़ी। बड़े प्यार से देखा। क्या आपको नहीं चाहिए कोई बिरसा आवास…. ? अंत्योदय राशन कार्ड अथवा वृद्धावस्था पेंशन….. ? इतनी मर्मस्पर्शी आवाज जीवन में पहली मर्तबा सुनने को मिली। कुछ पल उनकी बातों को सुनती रही। मालूम था, मुँह खोलने के बाद मेरी इहलीला समाप्त कर दी जाएगी। डरी, सहमी चुप ही रही। बोलिये न माँ जी, क्या बात है ? सहमी-सहमी सी क्यूँ हैं ? किसी से डरने की कोई बात नहीं, मैं हूँ न। साहब के बार-बार आग्रह से मैं कुछ बोल पाती इससे पहले ही मेरी आँखों से आँसु ढरकने लगे। लम्बे दिनों के बाद सूखी आँखों से अश्रुओं की गंगा बहने लगी। माँ शब्द सुने अर्से बीत गए थे। बाबू………..!, बाबू…..! हाँ….हाँ….. बोलिये माँ जी। कुछ कहना चाह रही हैं। बोलिये न, खुलकर बोलिये। क्या किसी ने आपको टार्चर किया है ? आपके साथ कोई बदतमीजी हुई है ?

साहब की इन बातों ने मुझे धैर्य प्रदान किया। भय व उदास भरी जिन्दगी की पोटली ही मैने खोलकर रख दी। मेरी रामकहानी सुनकर साहब की आँखों में भी आँसु आ गए। गाँव वालों को चेतावनी देते हुए उसी क्षण उन्होंने कह दिया ’’आज के बाद कोई बद्तमीजी हुई तो उसकी खैर नहीं’’, साहब ने मेरी पीड़ा को समझा। बिरसा आवास व वृद्धावस्था पेंशन की स्वीकृति प्रदान दी। कुछ ही दिनों बाद मेरी दुनिया फिर से बसने लगी। ईश्वर को लाख-लाख धन्यवाद दिया। अंत्योदय कार्ड तक बनवा दिया। कब्र पर एक पांव पड़ी बुढ़िया के लिये इससे बड़ी बात और क्या हो सकती हैं। सुन रखा था भगवान होते हैं, साहब के रुप में भगवान प्रकट हो जाऐेंगे पहली बार देखा था। मेरे दिन बहुरने लगे। कभी-कभार गाँव वाले परेशान करते थे, साहब की चेतावनी का ख्याल आते ही वे खिसक लेते। काफी दिनों तक चैन की नींद सोई। संघर्ष में ही समाधान है समझ चुकी थी।

काफी दिन बीत गए। साहब का दर्शन करना चाहती थी। किसी को पता नहीं कि साहब कहाँ रहते हैं। गाँव में पूछती तो लोग बैर करने लगते। अनपढ़, गवार लोग भला क्या जाने साहब के बारे में। जानवरों का सेंदरा (शिकार) कर उन्हें खाना व दारु-ताड़ी पीना ही एकमात्र दिनचर्या थी उनकी। मैं ढूढ़ती रही, फिर भी साहब तक नहीं पहुँच पायी। कुछ महीनों से गाँव वालों ने फिर से मेरे साथ अत्याचार करना शुरु कर दिया है। मेरा घर लूट लिया। मेरे पेंशन के रुपये छिन लिये। मेरी हांडी फोड़ डाली। मेरा सामाजिक बहिष्कार (बिठलाहा) कर डाला। बची-खुची जमीन अपने हल चला डाले। इस दुश्मनी का रहस्य आज तक जान नहीं पायी। बेटा पिछले आठ दिनों से भूखी-प्यासी अनाज के एक-एक दाने को तरस रही हूँ। मैं उसी राहुल को खोजने निकली हूँ। उससे मिलना चाहती हूँ। कोख से जन्म नहीं दिया, पर बेटा से बढ़कर है। एक बार फिर जरुर इस अबला की लाज बचाएगा। वह फरिश्ता है। हजारों माँओं की दुआएँ उसके साथ हैं।

साहब ने पता करवाया, बुढ़िया की जमीन काफी कीमती थी। उसकी जमीन के नीचेे बहुमूल्य खनिजों के भंडार मौजूद थे। महाजन सबकुछ जानता था। गाँव वालों को आगे कर अपने नाम वह जमीन करवा लेना चाहता था। साहब के मन में भी चोर बैठ गया। मोटी रकम का हिसाब-किताब था। बुढ़िया की हाथों से जमीन फिसली कि भू-माफिया उसे छोड़ेंगे नहीं। ठीक है, अब आप जाएँ। देखता हूँ, क्या हो सकता है। साहब अपने चैम्बर से निकल पड़े। दो-चार दिन नहीं, एक महीना बीत गया। फिर भी कोई रिजल्ट नहीं आया। गिरते-पड़ते कई-कई दिनों की यात्रा के बाद बुढ़िया फिर से समाहरणालय की सीढ़ियों पर आकर टिक गई।

आज भी घंटों बीत गए। बड़े साहब से उसकी मुलाकात नहीं हो सकी। साहब अपने चैम्बर में लगातार बैठे रहे। अरे यार.. बार-बार इस बुढ़िया को यहाँ पहुँचने की सलाह कौन देता है ? मेरा ही सर क्यों खाना चाहती है यह ? साहब ने कर्मचारियों से कहा, भगाओ इसे। लम्बे समय के बाद भी जब कोई बुढ़िया के नजदीक नहीं पहुँचा तो थकी-हारी बुढ़िया आॅंचल से आँसुओं को पोंछती हुई वापस जाने लगी।

— अमरेन्द्र सुमन

अमरेन्द्र सुमन

बाॅयोडाटा अमरेन्द्र सुमन ‘‘मणि बिला’’, केवट पाड़ा (मोरटंगा रोड), दुमका, झारखण्ड जनमुद्दों / जन समस्याओं पर तकरीबन ढाई दशक से मुख्य धारा मीडिया की पत्रकारिता, हिन्दी साहित्य की विभिन्न विद्याओं में गम्भीर लेखन व स्वतंत्र पत्रकारिता। जन्म : 15 जनवरी, 1971 (एक मध्यमवर्गीय परिवार में) चकाई, जमुई (बिहार) शिक्षा : एम0 ए0 (अर्थशास्त्र), एम0 ए0 इन जर्नलिज्म एण्ड मास कम्यूनिकेशन्स, एल0एल0बी0 रूचि : मुख्य धारा मीडिया की पत्रकारिता, साहित्य लेखन व स्वतंत्र पत्रकारिता प्रकाशन: देश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं, जैसे-साक्ष्य, समझ, मुक्ति पर्व, अक्षर पर्व, समकालीन भारतीय साहित्य, जनपथ, परिकथा, अविराम, हायकु, अनुभूति-अभिव्यक्ति, स्वर्गविभा, सृजनगाथा, रचनाकार, (अन्तरजाल पत्रिकाऐं) सहित अन्य साहित्यिक/राजनीतिक व भारत सरकार की पत्रिकाएँ योजना, सृष्टिचक्र, माइंड, समकालीन तापमान, सोशल आॅडिट, न्यू निर्वाण टुडे, इंडियन गार्ड, (सभी मासिक पत्रिकाऐ) व अन्य में प्रमुखता से सैकड़ों आलेख, रचनाएँ प्रकाशित साथ ही साथ कई राष्ट्रीय दैनिक अखबारों व साप्ताहिक समाचार पत्रों-दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान, चौथी दुनिया, ,(हिन्दी व उर्दू संस्करण) देशबन्धु, (दिल्ली संस्करण) राष्टीªय सहारा, ,(दिल्ली संस्करण) दि पायनियर , दि हिन्दू, माँर्निंग इंडिया (अंग्रेजी दैनिक पत्र) प्रभात खबर, राँची एक्सप्रेस, झारखण्ड जागरण, बिहार आॅबजर्वर, सन्मार्ग, सेवन डेज, सम्वाद सूत्र, गणादेश, बिहार आॅबजर्वर, कश्मीर टाइम्स इत्यादि में जनमुद्दों, जन-समस्याओं पर आधारित मुख्य धारा की पत्रकारिता, शोध व स्वतंत्र पत्रकारिता। चरखा (दिल्ली) मंथन (राँची) व जनमत शोध संस्थान (दुमका) सभी फीचर एजेन्यिों से फीचर प्रकाशित। सैकड़ों कविताएँ, कहानियाँ, संस्मरण, रिपोर्टाज, फीचर व शोध आलेखों का राष्ट्रीय स्तर की पत्र-पत्रिकाआंे में लगातार प्रकाशन। पुरस्कार एवं सम्मान : शोध पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अन्तराष्ट्रीय प्रेस दिवस (16 नवम्बर, 2009) के अवसर पर जनमत शोध संस्थान, दुमका (झारखण्ड) द्वारा स्व0 नितिश कुमार दास उर्फ ‘‘दानू दा‘‘ स्मृति सम्मान से सम्मानित। 30 नवम्बर 2011 को अखिल भारतीय पहाड़िया आदिम जनजाति उत्थान समिति की महाराष्ट्र राज्य इकाई द्वारा दो दशक से भी अधिक समय से सफल पत्रकारिता के लिये सम्मानित। नेशनल बुक ट्रस्ट आॅफ इंडिया (न्यू दिल्ली) के तत्वावधान में झारखण्ड के पाकुड़ में आयोजित क्षेत्रीय कवि सम्मेलन में सफल कविता वाचन के लिये सम्मानित। नेपाल की राजधानी काठमाण्डू में 19 व 20 दिसम्बर (दो दिवसीय) 2012 को अन्तरराष्ट्रीय परिपेक्ष्य में अनुवाद विषय की महत्ता पर आयोजित संगोष्ठी में महत्वपूर्ण भागीदारी तथा सम्मानित। नेपाल की साहित्यिक संस्था नेपाल साहित्य परिषद की ओर से लाईव आॅफ गाॅडेज स्मृति चिन्ह से सम्मानित । सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर पर मीडिया वर्कशाॅप में वतौर रिसोर्स पर्सन व्याख्यान। हरियाणा से प्रकाशित अन्तर्जाल पत्रिका अनहद कृति की ओर से अनहद कृतिः वार्षिक हिंदी साहित्यिक उर्जायानः काव्य-उन्मेष-उत्सव विशेष मान्यता सम्मान-2014-15 से सम्मानित। साहित्यिक-सांस्कृतिक व सामाजिक गतिविधियों में उत्कृष्ट योगदान व मीडिया एडवोकेसी से सम्बद्ध अलग-अलग संस्थाओं /संस्थानों की ओर से अलग-अलग मुद्दों से संबंधित विषयों पर मंथन युवा संस्थान, राँची व अन्य क्षेत्रों से कई फेलोशिप प्राप्त। सहभागिता के लिए कई मर्तबा सम्मानित। कार्यानुभव: मीडिया एडवोकेसी पर कार्य करने वाली अलग-अलग प्रतिष्ठित संस्थाओं द्वारा आयोजित कार्यशालाओं में बतौर रिसोर्स पर्सन कार्यो का लम्बा अनुभव। विज्ञान पत्रकारिता से संबंधित मंथन युवा संस्थान, राॅची के तत्वावधान में आयोजित कई महत्वपूर्ण कार्यशालाओं में पूर्ण सहभागिता एवं अनुभव प्रमाण पत्र प्राप्त। कई अलग-अलग राजनीतिक व सामाजिक संगठनों के लिए विधि व प्रेस सलाहकार के रूप में कार्यरत। सम्प्रति: अधिवक्ता सह व्यूरो प्रमुख ‘‘सन्मार्ग‘‘ दैनिक पत्र व ‘‘न्यू निर्वाण टुडे ‘‘ संताल परगना प्रमण्डल ( कार्यक्षेत्र में दुमका, देवघर, गोड्डा, पाकुड़, साहेबगंज व जामताड़ा जिले शामिल ) दुमका, झारखण्ड । सम्पर्क: ‘‘मणि बिला’’ द्वारा:- डाॅ0 अमर कुमार वर्मा केवट पाड़ा (मोरटंगा रोड) दुमका, झारखण्ड। मो0ः - 9431779546 एवं 9934521554 email:-- [email protected] [email protected]