” बदली सी फिजाएं ” !!
बदला हुआ मौसम ,
बदली सी फिजाएं !!
मंदिरों में घंटियां
बजने लगी है !
नेताओं की थाल भी
सजने लगी है !
है मुरादें कुर्सियों की
चाह सत्ता की !
बेदखली हो रही है ,
आज जनता की !!
राजनीति है चतरी ,
हम कहाँ जाएं !!
भूले हुए भगवन ,
हैं तारणहार !
डूबी हुई नैया ,
लग जाये पार !
तुष्टिकरण की नीतियां ,
परिणाम देखे !
धर्म से अब जोड़ने के ,
चित्र हैं रेखे !
राजनेता हैं शातिर ,
सत्ता को चाहें !!
डिग्रियां हासिल करी ,
नौकरी चाहें !
अवसरों की चाहतें ,
हैं खुली बाहें !
दूर तक राह दिखें ना ,
सोच है उलझी !
मार मंदी की अभी है ,
उम्मीदें सजी !
बदलता परिवेश है ,
बदलें निगाहें !!