रोहिंग्या मुसलमान
भारत में आज सबसे ज्यादा चर्चा रोहिंग्या मुसलमानों को शरण देने को लेकर हो रही है। आये दिन उनको लेकर धरने प्रदर्शन हो रहे है। रोहिंग्या मुसलमान जो स्वयं के देश से विद्रोह करने व सेना पर हमले करने के जुर्म में वहां से भागने को मजबूर हुए उनको बसाने के लिए भारत में वकालत की जा रही है। जबकि सबको पता है रोहिंग्या मुसलमानों का आतंकी संगठनों से संबंध है, इसीलिये म्यामार की सरकार को यह फैसला लेना पड़ा कि उन्हें देश से बाहर कर दिया जाये। रोहिंग्या समुदाय की हिमायत करने वालों को सोचना चाहिए कि उन्हें अपने देश नहीं से क्यों निकाला जा रहा है ? जबकि म्यामांर बौद्ध धर्म की अधिकता वाला देश है जो कि शांति प्रिय धर्म है। जिस धर्म ने हमेशा शान्ति, सौहार्द व समरसता का संदेश दिया है। उसी देश से यह भीषण समस्या उभर कर सामने आयी है कि खुद के देशवासियों को वहां से खदेड़ा जा रहा है। हमें उसकी मूल समस्या में जाने की जरूरत है। जब तक हम सही प्रकार से जानकारी प्राप्त नही करेगें कि रोहिंग्या समस्या कहाँ से और क्यों पैदा हुई तब तक हम सही निर्णय नही ले सकते। हम भावनाओं में बहकर उन देशद्रोहियों का समर्थन करते रहेगें जो स्वयं देश के लिये खतरा है।
रोहिंग्या समस्या आज की नहीं बहुत पुरानी है। म्यामांर में बौद्ध धर्म को मानने वाले लोग है जो हमेशा शान्ति व सौहार्द की बात करते है। बौद्ध धर्म स्थापना काल से ही शान्ति प्रिय रहा है। जानकारी के अनुसार 16वी शताब्दी में म्यामांर मे बकरीद पर रोक लगा दी गयी थी जो 18वीं शताब्दी में राजा अलोग यापा के बाद भी जारी रही। उस समय भी कुंर्बानी को लेकर संघर्ष होते रहे। लेकिन मुस्लिमों की संख्या कम होने के कारण यह संघर्ष उग्र रूप नहीं ले सका जो वर्तमान में है। उसके बाद अफगानिस्तान में एक प्रांत है बालयान यह कई शताब्दियों तक बौद्ध धर्म की आस्था का केन्द्र था यहां पर बौद्ध मठ-मन्दिर थे। यह स्थान मौहम्मद साहब के जन्म से पहले तक बौद्ध तीर्थ स्थान था। उसके बाद औरंगजेब ने इन बौद्ध स्थलों को तोड़ने का प्रयास किया परन्तु ये इतने मजबूत थे कि इनको तोड़ पाना मुश्किल था। अपनी वैमनस्य के कारण वह उनको जो नुकसान पहुंचा सकता था पहुँचाया मगर वह उनको समूल नष्ट नही कर सका, जिसके अंश आज भी प्राप्त होते हैं।
उसके बाद सन् 2001 में मुल्ला उमर ने इन स्थलों को फिर से तोड़ने का प्रयास किया वह काफी सफल भी हुआ और उसने बौद्ध स्थानों को बहुत नुकसान पहुंचाया। उसने म्यामांर में अपने संगठन का प्रचार-प्रसार किया। रोहिंग्या मुसलमानों को अपना मोहरा बनाकर बौद्धों के खिलाफ हिंसा फैला दी और यह क्रम कई दशकों से म्यामार में जारी है। जिसमें आतंकवादी संगठन भाग लेकर म्यामांर को अशान्त करने व बौद्धों को खत्म करने का प्रयास कर रहे हैं। अब जब म्यांमार में मुस्लिमों की संख्या लगातार बढ़ रही है तो उन्होने म्यामांर की सेना पर हमला किया और बौद्धों के धर्म स्थलों को तोड़ना शुरू किया तब जाकर म्यामांर की सेना को यह ठोस कदम उठाना पड़ा कि रोहिग्या मुसलमानों को देश से बाहर कर दिया जाये। रोहिग्या मुस्लिम देश के खिलाफ षडयन्त्र रचने के जुर्म में लगातार पकड़े जाते रहे हैं। वो जहां भी बहुसंख्यक है उन्होने बौद्धो को वहां से खदेड़ दिया है। उन्ही रोहिग्या मुसलमानों को भारत में बसाने की मांग की जा रही है।
मैं पूछना चाहता हूं कि 56, 57 इस्लामिक राष्ट्र है उन्होने अपने देश में इनको क्यों शरण नहीं दी। जबकि सऊदी अरब की टैंट सिटी मीना 50 स्क्वायर कि0मी0 जमीन पर 5 लाख एयर कंडीशन टैंट खाली है जो 50 लाख लोगों को बसेरा दे सकते हैं। लेकिन किसी भी देश ने मदद का हाथ नहीं बढ़ाया। यह बहुत ही चिंतन का विषय है। आखिर म्यामांर से चीन लगभग 1000 कि0मी0 दूरी पर है जबकि भारत वहां से 4-5 गुना दूरी पर है फिर वे चीन जाने के स्थान पर यहां आने को क्यों आतुर हैं। उन्हें पता है कि भारत में ही हमारे सहयोगी आसानी से मिल सकते हैं। जो खाते भारत की है ओर गाते दूसरे देशों की है। शरणार्थियों के नाम पर पागल कुत्तो को नहीं बसाया जा सकता। जो देश के लिये घातक हों।
मैं उन लोगों से पूछना चाहता हूँ कि जो रोहिंग्य लोगों को शरण देने की बात करते हैं। उन्हें अपने ही देश में विस्थापितों का जीवन जीने के लिये मजबूर लाखों कश्मिरी पण्डित क्यों नही दिखाई देते। वे अपने ही देश में बेगानों की तरह जीवन यापन कर रहे हैं। उनके बच्चों एवं महिलाओं पर अत्याचार किये गये उनके लिये किसी ने सोचा है ? किसी ने नहीं। भारत में प्रतिवर्ष तीन करोड़ लोग बाढ़ से प्रभावित होते हैं उनकी सुध किसी ने नहीं ली हजारों लोग भूखे पेंट रात को सो जाते हैं। पाकिस्तान में 1 करोड़ 25 लाख हिन्दु थे जो अब मात्र 10 लाख रह गये हैं उनके बारे में किसी ने नहीं सोचा। बंग्लादेश में 1947 में हिन्दु 28 प्रतिशत थे जो 1981 में 12 प्रतिशत तथा 2011 में 9 प्रतिशत रह गये उनकी घटती जनसंख्या एवं पलायन के बारे में किसी भी व्यक्ति ने उनके अधिकारों की बात नहीं की। हिन्दुओं पर लगातार अत्याचार किया जा रहा है और पलायन के लिये मजबूर किया जा रहा है उसके लिये कोई आवाज क्यों नहीं उठाता। जो आवाज उठायेगा वह साम्प्रदायिक कहलायेगा।
भारत में सैक्युलरिज्म के नाम पर जो नंगा नाच किया जा रहा है उसके बहुत ही गम्भीर परिणाम होगें यदि यह सिलसिला नहीं रूका तो देश गर्त में चला जायेगा। देश में कौन रहेगा या नहीं, यह भारत की सरकार तय करेगी, न कि सड़कों पर भीड़ इकट्ठी करके देश को तोड़ने की बात करने वाले चंद जयचंद एवं विदेशी आक्रन्ताओं के वंशज। भारत में शरणार्थियों को लेकर संयुक्त राष्ट्र के 1951 के कन्वेंशन पर दस्तखत नहीं किये गये है जो हर प्रकार के शरणार्थियों को जगह दी जाये। सरकार को बहुत ही सोच समझकर निर्णय लेने की जरूरत है देश की एकता के लिये खतरा बनने वालों को इस देश में कोई स्थान नहीं है भारत के अस्मिता और सुरक्षा सबसे पहले है। भारतीय मानवाधिकार कार्यकर्ताओं एवं रोहिग्या के समर्थकों को भावनाओं में बहकर नहीं सोच समझकर एवं देशहित में समर्थन करना चाहिये। भारत प्राचीनकाल से सहिष्णुता-प्रेम, भाईचारे, आपसी सौहार्द की भावना के लिए जाना जाता है। भारत ने विभिन्न संस्कृतियों को अंगीकार किया है जो उसकी महत्ता को प्रदर्शित करता है। परन्तु देश की सुरक्षा के साथ किसी भी कीमत पर समझौता नहीं किया जा सकता। जो देशहित में होगा वही सर्वमान्य निर्णय होगा।
— सोमेन्द्र सिंह