नारियाँ
ममतामयी है रूप ,मातृशक्ति का स्वरूप,
प्रेम नीर से जगत ,पखारती है नारियाँ ।
पीढ़ियाँ चला रही हैं, दीप नव जला रही हैं,
मनुसृष्टि अंक ले दुलारती हैं नारियाँ ।
मातु कहीं ,नारि कहीं, भगिनी का रुप कहीं,
दुहिता हैं, रुप कई धारती हैं नारियाँ ।
दनुज बने जो नर, सृष्टि को सताने लगे ,
बनके कपाली, काली मारती हैं नारियाँ ।