गीतिका/ग़ज़ल

कमतर ना समझना

विवाह बंधन तोड़ दूँ क्या
अकेला तुझे छोड़ दूँ क्या?

हर महीने रख पगार हाथ
मायके ओर दौड़ दूँ क्या?

स्नेह-मोहब्बत का है रिश्ता
टकराहट में मोड़ दूँ क्या?

रमेश जी खूब कमाते हैं
तुझको भी यह होड़ दूँ क्या?

दिल बहुत दुखाता है मेरा,
तेरे नाम के व्रत तोड़ दूँ क्या?

मान लो सर्वोपरी हूँ मैं ही
समाज में तुझे गोड़ दूँ क्या?

दर्ज करा दी है तेरी रिपोर्ट
सास-ननद को जोड़ दूँ क्या?

क्रोध में बेलन हाथ लगा,
तेरा सिर फोड़ दूँ क्या?

कमतर ना समझना सविता
कहीं-कभी भी ठौड़ दूँ क्या ?

..सविता मिश्रा
(ठौड़ मतलब ठौर)

..सविता मिश्रा ‘अक्षजा’

 

*सविता मिश्रा

श्रीमती हीरा देवी और पिता श्री शेषमणि तिवारी की चार बेटो में अकेली बिटिया हैं हम | पिता की पुलिस की नौकरी के कारन बंजारों की तरह भटकना पड़ा | अंत में इलाहाबाद में स्थायी निवास बना | अब वर्तमान में आगरा में अपना पड़ाव हैं क्योकि पति देवेन्द्र नाथ मिश्र भी उसी विभाग से सम्बध्द हैं | हम साधारण गृहणी हैं जो मन में भाव घुमड़ते है उन्हें कलम बद्द्ध कर लेते है| क्योकि वह विचार जब तक बोले, लिखे ना दिमाग में उथलपुथल मचाते रहते हैं | बस कह लीजिये लिखना हमारा शौक है| जहाँ तक याद है कक्षा ६-७ से लिखना आरम्भ हुआ ...पर शादी के बाद पति के कहने पर सारे ढूढ कर एक डायरी में लिखे | बीच में दस साल लगभग लिखना छोड़ भी दिए थे क्योकि बच्चे और पति में ही समय खो सा गया था | पहली कविता पति जहाँ नौकरी करते थे वहीं की पत्रिका में छपी| छपने पर लगा सच में कलम चलती है तो थोड़ा और लिखने के प्रति सचेत हो गये थे| दूबारा लेखनी पकड़ने में सबसे बड़ा योगदान फेसबुक का हैं| फिर यहाँ कई पत्रिका -बेब पत्रिका अंजुम, करुणावती, युवा सुघोष, इण्डिया हेल्पलाइन, मनमीत, रचनाकार और अवधि समाचार में छपा....|