“स्वर-व्यंजन” की मिश्रित भाषा ये “काव्या”
पर्याय जहाँ..
भाव-भावना हो ।
विलोम जहाँ..
स्वर-स्वरशाला न हो ।
सुगंध यहाँ..
संवाद-संवेदना की हो ।
वैचारिकताओं में यहाँ..
चहक-महक की खनकार हो ।
गहराई जहाँ..
सागर-नदियों सी लहर हो ।
उतार-चढ़ाव..
ज्वार-भाटा का कलराव हो ।
साकार यहाँ..
ऑसमा तक निराकार धरा हो ।
विशाल वट बन जहाँ..
तटिनी बन धरणी कहती हो ।
गौरव गाथा में यहाँ..
श्वेत-श्यामला वर्णित हो ।।
— उमा मेहता त्रिवेदी