गीत/नवगीत

मेरी चाह

दूर अंधेरा कर देने को दीपक सा जल पाऊँ मैं
चाह यही है काल से पहले ऐसा कुछ रच जाऊँ मैं
निर्धन की कुटिया का थोड़ा , उजियाला बन छाऊँ मैं
चाह यही है काल से पहले ऐसा कुछ रच जाऊँ मैं

घोर निराशा में हो जो भी उनको कुछ विश्वास मिले
शायद मेरी कविताओं से उनको कुछ उल्लास मिले
दुखी दुखी से जो जीते उनको सुख का आभास मिले
या नितांत अकेले पन में मेरी कविता पास मिले
विरह वेदना विस्मरण हेतु ,गीत मिलन के गाऊँ मैं
चाह यही है काल से पहले ऐसा कुछ रच जाऊँ मैं

कविता के जल से सींचूँगा, राष्ट्र प्रेम की शाखों को
कविता से बल देना चाहता ,उम्मीदों के पाखो को
वही लिखूँ जो मन मे आता , जो दिखता है आँखो को
व्यक्त करूँ मैं सच निर्भय बन, तोड़ूँ झूठ सलाखों को
आये रोड़े राहों में पर ,सच की धार बहाऊँ मैं
चाह यही है काल से पहले , ऐसा कुछ रच जाऊँ मैं

राम कृष्ण नरसिंह को पूजूँ , रामदेव से पीरो को
याद करूँगा भीम गदा औ अर्जुन के उन तीरों को
याद करूँगा तुलसी को और याद करूँ कबीरो को
माँ का वंदन लिखा करूँगा , नमन लिखूँगा वीरो को
ऐसा भारत फिर बन जाये ,स्वर्ग यहीं पर पाऊँ मैं
चाह यही है काल से पहले , ऐसा कुछ रच जाऊँ मै

हर कोई जब याद करे वो, हर दिन औ हर रात करे
वाद विवाद भुला कर केवल कविता की ही बात करे
कुख्यात करें ,विख्यात करें , बूढ़े युवक नवजात करे
मैं जीवित तब करा करे सब ,और मेरे पश्चात करें
लिखूँ अलग कुछ , जो गायें सब ऐसा गीत सुनाऊँ मैं
चाह यही है काल से पहले, ऐसा कुछ रच जाऊँ मैं

मनोज डागा

निवासी इंदिरापुरम ,गाजियाबाद ,उ प्र, मूल निवासी , बीकानेर, राजस्थान , दिल्ली मे व्यवसाय करता हु ,व संयुक्त परिवार मे रहते हुए , दिल्ली भाजपा के संवाद प्रकोष्ठ ,का सदस्य हूँ। लिखना एक शौक के तौर पर शुरू किया है , व हिन्दुत्व व भारतीयता की अलख जगाने हेतु प्रयासरत हूँ.

One thought on “मेरी चाह

  • मनोज डागा

    आज 23 अप्रैल अपने 48वे जन्मदिन पर त्वरित लिखी एक रचना

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