ग़ज़ल
जिंदगी है खफा, कई दिन से ।
तू कहाँ है बता, कई दिन से ?
किसी के ख्वाब सुलगते होंगे,
हर तरफ है धुआँ, कई दिन से।
रात को नीँद नही आती है,
दिल नही लग रहा कई दिन से।
तेरे सीने में धड़कता होगा ,
दिल मेरा लापता, कई दिन से।
मेरी गलियों में दिख रहा फिर से,
वो सनम बेवफा ,कई दिन से ।
सोचता हूँ कि, इसे सुलझा लूँ,
दिल का ये मामला,कई दिन से।
तेरी आँखों से मयकशी की थी,
अब मुझे है नशा, कई दिन से।
— डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी