सड़कों पर नमाज तो मस्जिदों में क्या?
हाल ही में साइबर सिटी गुड़गांव में नमाज की जगह को लेकर विवाद ने काफी रफ्तार पकड़ी थी जिसके बाद शुक्रवार की नमाज को लेकर जिला प्रशासन ने 23 सरकारी स्थान खुले में नमाज के लिए तय किए हैं। जबकि पहले सिर्फ नौ स्थान दिए जा रहे थे।
इसी बीच मुस्लिमों की तरफ से पार्कों में योग, सड़कों पर कांवड़ यात्रा, रात्रि जागरण पर भी सवाल उठाये गए। यह सवाल इसी तरह के थे जैसे पिछले वर्ष कई थानों में मनाई गई जन्माष्टमी के बाद उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि यदि वे ईद के दौरान सड़कों पर अदा की जाने वाली नमाज को नहीं रोक सकते हैं तो उन्हें थानों में मनाई जाने वाली जन्माष्टमी को भी रोकने का अधिकार नहीं है।
पर क्या इससे सवाल और तर्क खत्म हो गए? शायद नहीं, बल्कि इस घटना ने एक साथ कई सवालों को जन्म दिया है। पिछले साल मुंबई इंटरनैशनल एयरपोर्ट पर देर रात नमाज अदा करने को लेकर तब विवाद हो गया था जब कुछ मुस्लिम यात्री एयरपोर्ट पर गैंगवे में बीच रास्ते पर ही नमाज पढ़ने बैठ गए थे। इससे बाधा उत्पन्न होने के चलते कुछ यात्रियों ने विरोध किया क्योंकि एयरपोर्ट पर नमाज के लिए विशेष रूम की व्यवस्था भी है। इसके बाद विनीत गोयनका नाम के यात्री ने इस पर आपत्ति उठाई थी कि जब नमाज अदा करने के लिए अलग से रूम की व्यवस्था है तो किसी को बीच रास्ते में नमाज अदा करने क्यों दे रहे हो? अगर इन्हें अनुमति दे रहे हो तो मुझे भी पूजा की अनुमति दो?
इसके बाद सोशल मीडिया पर भी तीन तस्वीरें वायरल हुईं थीं, जिनके जरिए दावा किया गया था कि नमाज पढ़ने के लिए दिल्ली के एक रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म पर ही कब्जा कर लिया गया है। रस्सी से उस जगह को घेरने के बाद मोटे-मोटे अक्षरों में लिख दिया गया था कि ‘प्लैटफ़ॉर्म के इस हिस्से में यात्रियों की नो एंट्री है।’ यहां के कुली और यात्रियों को मिलाकर लगभग 10-12 लोग यहां नमाज पढ़ने आते थे।
दरअसल यह दिक्कत सिर्फ भारत में ही नहीं है। भारत से लेकर यूरोप और अमेरिका तक आये दिन लोगों को सड़क और सार्वजनिक स्थानों पर इबादत के तरीके पर शिकायत खड़ी होती रहती है। हाल के वर्षों में, पश्चिमी यूरोप में सार्वजनिक स्थानों पर इस्लाम की बढ़ती परछाई पर सामाजिक बहस शुरू हुई हैं। कुछ समय पहले फ्रांस की सरकार ने पेरिस उपनगर में सार्वजिनक स्थानों पर प्रार्थना करने से उस समय मुसलमानों को रोक दिया था जब शुक्रवार की प्रार्थनाओं में सार्वजनिक रूप से प्रार्थना करने वाले मुस्लिमों के विरोध में लगभग 100 फ्रांसीसी राजनेता पेरिस उपनगर में एक सड़क पर उतर आये थे।
एक तरफ आज इस्लाम को मानने वाले अपने लिए समान अवसर मांगते है दूसरी तरफ पहनने के लिए अपना धार्मिक परिधान, कार्यालयों पर अलग से प्रार्थना आवास मांगते हैं, दैनिक प्रार्थना के लिए अपने समय या स्थान को अलग करते हैं मगर दूसरों से अपनी पहचान और व्यवहार में धर्मनिर्पेक्षता चाहते हैं पर फिर भी अपनी मजहबी पहचान को दर्शाना शान समझते हैं।
इस मामलें में भी नमाज से योग और कांवड की बार-बार तुलना कर यही साबित करने कि कोशिश की जा रही थी कि हम सही हैं। हालांकि कांवड वर्ष में एक बार लायी जाती है जिसके लिए भी आम लोगों को परेशानी न हो इस बात का ध्यान सरकार रखती है। कांवड दिन में पांच बार नहीं लायी जाती और न ही हर सप्ताह। योग को धर्म से जोड़कर देखा जाना ही गलत है। जो लोग योग को बहुसंख्यक लोगों से जोड़कर देख रहे हैं यह उनकी बौद्धिक क्षमता पर सवाल खड़े करता है।
इस्लाम में आम हालात में लोगों का सड़कों पर बैठना पसंद नहीं फरमाया गया है और लोगों को तिजारत वगैरह की जायज जरूरतों की वजह से वहां बैठने की इजाजत दी भी है तो कुछ शर्तों के साथ कि वे रास्ते पर चलने वालों का हक न मारें, उनके लिए परेशानी खड़ी न करें। अब जहां सवाल यह होना था कि क्या सरकारी सड़क पर कब्जा करना एक गैर-इस्लामी और हराम काम नहीं है? क्या नाजायज कब्जे वाली जमीन पर नमाज पढ़ना भी नाजायज नहीं है? इसके उलट दूसरों के धार्मिक उत्सवों पर ही सवाल खड़े किये जा रहे हैं।
मैं यह नहीं कहता कि सड़क पर जागरण या बारात लेकर नाचना कूदना सही है. वह भी गलत है, क्योंकि अपने मनोरंजन सुख और आनंद के लिए किसी दूसरे को परेशानी हो, यह गलत है।
मेरा हमेशा से विश्वास है कि हमें एक-दूसरे की मान्यताओं और भावनाओं के प्रति संवेदनशील होना चाहिए न कि तुलनात्मक। रमजान के महीने में विभिन्न दीनी संस्थाएं लोगों को रोजे के कायदे-कानून समझाने और उनसे चन्दे की अपील करने के लिए कैलेंडर आदि छापते-बांटते हैं। इन संस्थाओं को रमजान के महीने में ‘सड़क पर नमाज की अदायगी‘ जैसे सामाजिक मुद्दों पर भी दीनी हुक्म प्रकाशित और प्रचारित करना चाहिये।
मस्जिदों के इमामों को भी लोगों को सही जानकारी देनी चाहिये। इबादत शांति चाहती है न कि दिखावा। इबादत भीड़ में नहीं बल्कि अकेले में हो तो और भी अच्छा होगा। शायद इसी वजह से अब लोग सवाल उठा रहे हैं कि जब नमाज रेलवे स्टेशनों, एयरपोर्ट, पार्कों, सार्वजनिक स्थानों, कार्य स्थलों और स्कूलों में अदा कर ली जाती है तो मस्जिदों में आखिर क्या होता है?
राजीव चौधरी