लघुकथा

मालिक

 

भूतपूर्व मंत्री रामप्रसाद जी से एक घोटाले को लेकर पूछताछ चल रही थी । जांच टीम के मुख्य अधिकारी शर्मा जी ने उन्हें चेताया ,” सर ! आपके खिलाफ हमारे पास पुख्ता सबूत हैं कि घोटाले आप ने ही किये हैं । बस आप हमसे सहयोग करते हुए बता दीजिये कि घोटाले की रकम आपने कहाँ कहाँ लगा रखी है ? ”
रामप्रसाद जी खा जानेवाली निगाहों से शर्मा जी को घूरते हुए बोले ,” हैं ! पुख्ता सबूत हैं ! कैसे ? जब उ घोटाला हो रहा था तब तो तुम ही न हमरे खास सचिव थे । का कहे थे कि बिंदास घोटाला करो । कउनो सबूत नाहीं रहेगा । ”
” वो तो हम अपनी ड्यूटी किये सर ! ” शर्मा जी मुस्कुराए !
” तो ई आज का कर रहे हो ? ”
” सर् ! मैं आज भी अपनी ड्यूटी कर रहा हूँ । बस फर्क इतना है कि मेरा मालिक बदल गया है । “

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।

3 thoughts on “मालिक

  • जवाहर लाल सिंह

    क्या बात है ! आदरणीय राजकुमार कांदु साहब! आईना कभी कभी झकझोर देता है… सादर!

  • राजकुमार कांदु

    बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय भाईसाहब ! आपने बिल्कुल सही कहा । ये भूखे नंगे नेता कुर्सी पाते ही बदल जाते हैं लेकिन जनता यानी हम इनकी मक्कारियों को पहचानने की कोशिश भी नहीं करते ।

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राजकुमार भाई , लघु कथा बहुत अछि लगी .बस ऐसे ही ऊँट पहाड़ के नीचे आने लगें तो बहुत घुटाले रुक सकते हैं . वैसे वोह मंत्री ही किया जो घुटाले न करे . जब यह मंत्री बनते हैं तो बिलकुल नंग होते हैं और कुछ ही सालों में बड़ी बड़ी कोठीआं बना लेते हैं .

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