कविता

बरखा रानी जरा जम के बरसो

चमकते कल के लिए
आज झरो न बरखा
मेरे जीवन में मेघ
उड़ते हुए घिरे आ रहे हैं
इनमे  न बरखा का भार है
न तूफान का।
ये केवल मेरे गोधूलिमय
आकाश को,
रँगना चाहते हैं
बरखा घरती पर
झुका आसमान है,
इसके बिना जीवन
कहा सम्भव है।।
इस देश में मेरा
गमन मघुमय हो
और मेरा पुरागमन भी।।
हेमा पाण्डेय