गीतिका/ग़ज़ल

“गीतिका”

समान्त- अना, पदांत- नहीं चाहता

“गीतिका”

छाप कर किताब को बाँधना नहीं चाहता
जीत कर खुद आप से हारना नहीं चाहता
रोक कर आँसू विकल पलकों के भीतर
जानकर गुमनाम को पालना नहीं चाहता।।

भाव को लिखता रहा द्वंद से लड़ता रहा
छंद के विधिमान को बाँटना नहीं चाहता।।

मुक्त हो जाना कहाँ मंजिलों को छोड़ पाना
लौटकर संताप को छाँटना नहीं चाहता।।

सृजन के मैदान में कलम बेसुमार हैं
ज्ञान से इंसान को मारना नहीं चाहता।।

तौल कर शब्दों को बेवजन करता नहीं
तर्क से इंसाफ़ को काटना नहीं चाहता।।

सोचना, गौतम बापू गांधी के विचार को
जिल्द से ईमान को ढांकना नहीं चाहता।।

महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी

*महातम मिश्र

शीर्षक- महातम मिश्रा के मन की आवाज जन्म तारीख- नौ दिसंबर उन्नीस सौ अट्ठावन जन्म भूमी- ग्राम- भरसी, गोरखपुर, उ.प्र. हाल- अहमदाबाद में भारत सरकार में सेवारत हूँ