रंग
सृष्टि में रंगों से ही बहार हैं. प्रत्येक रंग का अपना महत्व तथा प्रकृति है जो कि विभिन्न रोगों को दूर करने में सहायक होती है. रंगों के बिना जीवन की कलप्ना उसी प्रकार व्यर्थ है, जिस प्रकार प्राणों के बिना शरीर की.
प्रकाश को जब हम परावर्तित करते है तो उसका विभाजन 7 रंगों में हो जाता है तथा भौतिक विज्ञान अनुसार VIBGYOR के नाम से भी जाना जाता है जिसमें 7 रंगों के नाम वर्णित हैं, जैसे….
V- (Violet) बैंगनी
I-Indigo ( नील जैसा नीला)
B- Blue ( नीला)
G- Green (हरा)
Y- Yellow ( पीला)
O- Orange ( नारंगी या संतरी)
R- Red ( लाल)
मानवीय शरीर का संरचना अत्यधिक जटिल व विचित्र है. अतः समय समय पर परिवर्तित जलवायु, दोषपूर्ण आहार- विहार तथा अन्य कई कारणों से इसमें कई रोग उत्पन्न हो जाते हैं, जिसके निवारण हेतु हम कई प्रकार की चिकित्सा पद्धतियों का सहारा लेते है परंतु आज हम प्रकृति पर आधारित एक ऐसी चिकित्सा प्रणाली की चर्चा करेंगें जो कि न केवल सरल और प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है बल्कि उसका दुष्प्रभाव भी कोई नही है. इस पद्धति में केवल विभिन्न प्रकार के रंगों की सहायता से रोग निवारण किया जाता है और इस पद्धति को अंग्रेजी में “ क्रोमोथैरेपी” के नाम से भी जानते हैं.
सिर्फ यही नही देवताओं को भी रंग अति प्रिय है. किसी को लाल, तो किसी कि पीला, तो किसी को हरा. प्रत्येक देवी –देवता एक विशेष प्रकार के रंग से पहचाने व जाने व पूजे जाते है. यहाँ तक कि देवी- देवताओं के प्रिय रंग के अनुसार ही उन्हें वास्त्रादि अर्पित किए जाते है. उनके धर्म स्थानों पर ध्वज़ भी उनके प्रिय रंग के ही फहराये जाते हैं.
आईये जानते है किस प्रकार किस रंग से किन रोगों का निवारण हो सकता है और कौन सा रंग किस देवता को प्रिय है.
लाल रंग – लाल रंग प्रकृति के तीन मूल रंगों में से एक है जो प्यार और भाव का प्रतीक है. लाल रंग आगे बढ़ने की प्रेरणा देता हैं. यह रंग पृथ्वी तत्व का प्रतिनिधित्व करता है. अन्य रंगों की तुलना में लाल रंग की तरंग दैर्ध्य सर्वाधिक होती है जिससे हर परिस्थिति में यह लाल ही देखाई देता है.
‘ अबीरं च गुलालं च हरिद्रदिसमंवितम. नाना परिमलं द्रव्य गृहाण परमेश्वर..’
भगवान की पूजा में गुलाल का महत्व उतना ही है, जितना हल्दी, कुमकुम, कपूरऔर चंदन का.यूँ तो गुलाल कई रंगों का होता है, परंतु पूजन में लाल रंग का गुलाल ही उपयोग किया जाता है.चौका पूजन हो या भगवान का अभिषेक, गुलाल सबसे पहले उपयोग में आता है. भगवान को लाल गुलाल लगाकर हम अपने भाव और संवेदना को व्यक्त करते है आत्मविश्वास और मजबूत इरादों से ही लक्ष्मी की प्राप्ती होती है. मां का स्वभाव करूणामयी है . यह रंग सौभाग्य का प्रतीक है. मां लक्ष्मी के वस्त्र लाल है तथा लाल रंग के कमल पर ही शुशोभित रहती है.राम भक्त हनुमान को भी लाल रंग प्रिय है इसलिए उन्हें सिंदुर चढ़ाया जाताहै.
लाल रंग गर्मी, आग व क्रोध का प्रतीक होता है अतः इसका प्रयोग कम रक्त दबाव, लकवा, रक्त की कमी, धुटनों में दर्द, गठिया, तपेदिक आदि रोगों में भी लाभकारी है इस रंग के फल और सब्जियाँ जैसे टमाटर, गाजर,सेब, स्ट्राबेरी आदि के सेवन से करे.
कुछ सावधानियाँ – लाल रंग का उपयोग भोजन- कक्ष, बच्चों के शयन कक्ष, रसोई, दफ्तर में नहीं करना चाहिए क्योंकि यह तनाव और बेचैनी उत्पन करता है.
पीला रंग- पीला रंग सात्विकता का प्रतीक है.इसमें सादापन और निर्मलता का भाव निहित है. पीला रंग सकारात्मक सोच व सृजन का कारक है. यह रंग खुशी व आनंद का प्रतीक है. यह पर्मार्थ पर चलने की प्रेरणा देता है. सृष्टि के पालन कर्ता भगवान विष्णु को पीला रंग प्रिय है और भगवान श्रीकृष्ण को पीताम्बर भी कहते है क्योंकि पीला रंग उनका भी प्रिय हैं. वह हमेशा पीले रंगों के वस्त्रों से सुशोभित रहते है.
यह रंग जिगर के रोगों, मधुमेह, कब्ज,कुष्ट रोग, हाज़मे की अव्यव्स्था, बोन मैरो की समस्या, तिल्ली, सिफलिस,नपुंसकता आदि रोगों में कारगर हैं.
यह रंग रसोई के लिए बेहतर है. यह ठंड व रेशा की स्थिति के लिए बेहतर है परंतु यह बाथरूम तथा ध्यान योग वाले कक्ष के लिए उपयुक्त नहीं है.
हरा रंग – हरा रंग प्रगति का प्रतीक है. हरे रंग की शीतलता हमें शांत रहने का भाव सीखाती है. यह रंग नीले व पीले रंग को मिलाकर बनताहै. पीरों पर सदा हरे रंग की चादर चढ़ाई जाती है. उनका ध्वज भी हरे रंग का होताहै.
इस रंग का प्रयोग मौसमी बुखार, अल्सर, कुछ दिल के रोग तथा सिफलिस आदि रोगों में भी लाभकारी है.
जोडों के दर्द से पीडित रोगियों को अपने कमरे या घर में हरे रंग का प्रयोग करना चाहिए. यह रंग बाथरुम,अस्पताल आदि के लिए प्रयुक्त किया जाता है क्योंकि यह ताज़गी का अहसास दिलाता है. हरे जल से घाव धोने पर वो जल्दी ठीक होते हैं. कब्ज़, बुखार, मधुमेह व उच्चरक्तचाप आदि रोगों में हरे रंग के चार्जड किया गया जल की 1-2 कप मात्रा सुबह खाली पेट लेनी चाहिए.
संतरी रंग ( भगवा) – संतरी रंग सम्मान और खुशहाली का प्रतीक हैं. यह रंग लाल और पीले का मिश्रण है. लाल रंग से दृढ़ निश्चय, आत्मविश्वास और पीले से सात्विकता का पालन करते हुए ईश्वर को पाने की प्रेरणा मिलती हैं.
समस्त सन्यासी संसार का त्याग तो करते है, परंतु भगवे रंग का मोह उन्हें भी रहता है.
इस रंग की चीज़ों का सेवन मिर्गी, दमा, गुर्दें के रोगों, हर्निया,अपेंदेसाइटिस, पित्ते की पथरी आदि रोगों में आराम पहुँचाता है.यह रंग विभिन्न नाड़ियों तक रक्त की आपूर्ति करता है. शिशु के जन्म के समय माता में दूध की वृद्धि भी करता है. यह रंग बुखारऔर गठिया के रोग में भी लाभकारी है.
इसा रंग का फल जैसे पका हुआ पपीता, संतरा आदि का सेवन स्वास्थ के लिए लाभकारी सिद्ध होता है.
हल्का जामुनी या वायलिट और गहरा जामुनी या नीला – बैंगन और जामुनी रंग के सब्जियों और फलों के सेवन से यह रंग मानसिक और भावानात्मक रोगों को दूर करने में सहायक होता है. चमड़ी के रोगों, जोड़ों का दर्द और नींद न आने के रोग को भी इस रंग की वस्तुओं के खान पान से आराम मिलता है.
हरे रंग की तरह ही नीला रंग भी प्रकृति का मनपसंद रंग है. आसमान का नीला होना, शुद्ध बहते हुए जल की निलिमा…..
आसमानी रंग का प्रयोग आँख, नाक, गले के रोग, फेफड़े के रोग, तपेदिक,पागलपन, बेहोशी के दौरे,नाड़ी तंत्र के दोष, मोतियाबिंद, कब्ज़, गर्भाशय या पेट के रोग, त्वचा के रोग जैसे लकवा जो चेहरे पर आ गया हो, बदहज़्मी, मूत्राशय के रोग, ल्यूकोरिया, हाइड्रोसील, इन सभी रोगों को दूर करने के लिए किया जाता है इसीलिए नीला या आसमानी रंग का प्रयोग शयन कक्ष, ध्यान योग वाले कक्ष, दफ्तर आदि में प्रयोग करने से लाभ मिलता है, परंतु भोजन कक्ष में इस रंग का इस्तेमाल न करना ही उचित है. अगर आप तनाव,मानसिक अपवाद आदि से ग्रस्त है तो हल्के रंगों का इस्तेमाल करे जिसमे आसमानी रंग अति उत्तम है. नीला, आसमानी, जामुनी रंग़ ठंडे रंग होते है इसलिए इनका प्रयोगखाली पेट ही करें. यह न अम्लीय है न ही क्षारीय. यह रक्त को साफ करताहै.
काला रंग- काला रंग तमस का कारक है. शनि प्राणी के मन की तमस व मैल को हरण करके उसके भीतर ज्ञान का उजाला करते हैं. काला रंग सभी रंगो को अपने मे समेट लेता है और इस रंग पर कोई और रंग नहीं चढ़्ता अतः तमस का शमन अनिवार्य है. शनिदेव को काला रंग बहुत प्रिय है इसलिए शनिवार को उन पर काले तिल का भोग लगाना लाभलकारी माना जाता है.काला रंग महाकाली का भी प्रिय है.काले रंग के वस्त्र पहनने वाली माँ असुरों ( दुर्गुणों ) का नाश करनेवाली शक्ति है. कई समुदाय के लोग काले रंग के वस्त्रों का प्रयोग करना गलत नहीं समझते परंतु काले रंग का प्रयोग छतों, बच्चों के कमरे,शयन कक्ष, मेहमान कक्ष में ना करे.
सफेद रंग- सफेद रंग शांति, सौभाग्य, पारदर्शिता व कोमलता का प्रतीक है. यह प्रेरणादायक और उत्साह बढ़ाने वाला है और पवित्रता का भाव उत्पन्न करने वाला है. सृष्टि के रचयिता ब्रह्मा जी सफेद रंग के वस्त्र को ही धारण करते है,जो इस बात का घ्योतक है कि बह्म यानि ईश्वर प्रत्येक के साथ समान भाव रखते है. किसी के साथ पक्षपात नही करते अतार्थ ऐसा रंग जिसमे हर रंग को आपने आप में समा लेने की क्षमता है और जो हर रंग के साथ घुल कर उसे एक नया रूपरंग दे सकता है. तनाव, मानसिक परेशानी की स्तिथि में इस रंग का प्रयोग लाभकारी माना जाता है.
इसी तरह जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण में वृद्धि रखने वाले गहरे हरे, लाल, व जामुनी रंग के कपड़े पहन सकते हैं.
व्यायाम करते समय लाल, पीले, संतरी या सफेद रंग के कपड़े पहने.
रंगदार या रंगहीन पारदर्शी बोतलों में सूर्य की रोशनी से चार्जड किया गया जल वृद्धों के लिए टाँनिक और बच्चों में कैल्शियम की कमी को दूर करता है.
रंगों का संसार अति विस्मृत और विचित्र है. सूर्य नमस्कार, सूर्य स्नान, रंगों को सूघँना, उनका ध्यान करना, अलग-अलग रंगों के नगों के प्रयोग व जड़ी बूटियों, फलों तथा सब्जियों के सेवन से कोई भी लाभांवित हो सकता है अतार्थ हम उनके प्रयोग से अपना स्वास्थय सुधार सकते है परंतु सिर्फ रंगों के भरोसे गम्भीर रोगों का इलाज़ न करे.
सर्व प्राणी आरोग्य भवः
सर्वे भवंतु सुखिनः..
— नसरीन अली “निधि”