लघुकथा

लघुकथा- भगवान की मर्ज़ी 

लता ऑपरेशन थिएटर में भर्ती थी। किसी भी वक्त खुश-ख़बरी आने ही वाली थी। लता के ससुर रामलाल व पूरे परिवार को आस थी, अब की बार तो लता को बेटा ही होगा! ऑपरेशन थिएटर से बाहर आये डॉक्टर से रामलाल ने पूछा तो पता चला कि उनकी इकलौती बहू लता को इस बार भी बेटी ही हुई है। यह सुनते ही रामलाल के चेहरे पर उदासी छा गई और आंखों से झरते अश्रुवेग ने उनकी उम्मीदों पर पानी फेर दिया। बेटी की ख़बर सुनकर पूरे परिवार में मानो निराशा की ऐसी लहर फैल गई कि जैसे लता ने कोई बड़ा गुनाह कर डाला हो। लेकिन लता ने बेटी होने पर जरा भी संताप नहीं किया। इसे भगवान की मर्ज़ी मानकर खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया। चूँकि लता पहले ही यह निर्णय ले चुकी थी कि इसके बाद वह किसी भी संतान को जन्म नहीं देगी। इस बात से रामलाल की वंश वृद्धि की चिंता ओर भी बढ़ चुकी थी। तीन बेटियों की मां लता को ससुर और पूरे परिवार के कोपभाजन का शिकार होना पड़ा। लेकिन लता ने इसकी परवाह नहीं करते हुए अपनी तीनों बेटियों की अच्छी परिवेश करने के साथ ही उन्हें सुशिक्षित भी किया। इसमें पति रमेश ने लता का बेखूबी से साथ दिया। आज लता की बड़ी बेटी जानकी का आईएएस की प्रवेश परीक्षा में चयन होने की ख़बर सुनकर पूरा परिवार झूम उठा। ससुर रामलाल के मोबाइल पर बधाई के फोन रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। अब रामलाल के दुःख के आंसू पश्चाताप के बाद खुशी के आंसू में बदल चुके थे।

देवेन्द्रराज सुथार

देवेन्द्रराज सुथार , अध्ययन -कला संकाय में द्वितीय वर्ष, रचनाएं - विभिन्न हिन्दी पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित। पता - गांधी चौक, आतमणावास, बागरा, जिला-जालोर, राजस्थान। पिन कोड - 343025 मोबाईल नंबर - 8101777196 ईमेल - devendrakavi1@gmail.com