उपन्यास अंश

ममता की परीक्षा ( भाग – 8 )

 

सुधीर की इस अप्रत्याशित हरकत से अनजान रजनी हड़बड़ाकर पीछे सरक गई थी और फिर स्थिति का भान होते ही अपने कदमों में झुके हुए सुधीर को दोनों कंधों से पकड़कर उसे सांत्वना देने का प्रयास करने लगी ।
” मुझे माफ़ कर दो बहना ! मैं भटक गया था । बिरजू की बहन बसंती हमारी सगी बहन से भी बढ़कर थी । कुएं से निकालने के बाद उसकी अवस्था देखकर समस्त शहरी लड़कों से घृणा सी हो गई थी । उन शहरी दरिंदों ने बड़ी बुरी तरह उसे नोंचा खसोटा था । सिर्फ़ सोलह साल की वह मासूम कितना रोई होगी , तड़पी होगी , गिड़गिड़ाई होगी उन दरिंदों के सामने लेकिन उन शैतानों का दिल नहीं पिघला होगा । उसे देखने के बाद खून सवार हो गया था हमारे सिर पर लेकिन वो दरिंदे तो कानून की पनाहगाह में पहुंच गए थे । सचमुच ! कानून ऐसे दरिंदों के लिए पनाहगाह ही नहीं ऐशगाह भी है । दो तीन दिन हवालात में गुजारने के बाद ये तीनों दरिंदे बड़ी शान से मुस्कुराते हुए हमारे ही सामने से जमानत पर रिहा हो गए थे । हमारी चीख पुकार कानून के बहरे कानों तक पहुंच भी नहीं पाई और न ही उसकी अंधी आंखों को दिखाई पड़ा उन दरिंदों का गुनाह । उन जंगली जानवरों को खुला छोड़ दिया गया था फिर एक बार किसी मासूम का शिकार करने के लिए । तब से किसी शहरी को देखकर हमारा खून खौल उठता है । बसंती की याद से तड़प उठते हैं हम और हमारी भुजाएं मचलने लगती हैं बदला लेने के लिए । हर शहरी लड़की से हमें नफरत सी हो गई थी । और इसी नफरत के चलते हम एक भयानक गुनाह करने जा रहे थे । ईश्वर का लाख लाख शुक्र है कि उसने ऐन वक्त पर बिरजू को भेजकर हमें इस गुनाह का भागी होने से बचा लिया ।
मैं तुम्हें नहीं जानता बहन ! लेकिन यह अवश्य मानता हूं कि तुम कोई देवी हो । सचमुच ! यकीन मानो मैं अपने दिल की गहराइयों से कह रहा हूँ कि तुम अवश्य कोई देवी हो क्योंकि अपने अपराधी के प्रति इतना बड़ा दिल रखनेवाला कोई मनुष्य नहीं हो सकता ।
पलभर पहले जो उसे तहसनहस करने का प्रयास कर रहा था उसी के जान की हिफाजत करने के लिए तुमने अपना दुपट्टा फेंक दिया था । यह कोई देवी ही कर सकती है और यदि बिरजू की बात सही है तो निश्चित ही तुमने हम दोनों की जान बचाई है । मेरी गलती माफी के काबिल तो कत्तई नहीं है फिर भी मैं तुम्हारे चरणों में हूँ बहन ! हो सके तो मुझे माफ़ कर दो । अब मैं समझ गया हूँ कि न सभी गांववाले अच्छे होते हैं न सभी शहरी बुरे होते हैं । अच्छाई और बुराई तो इंसानी चरित्र पर निर्भर है और मैं दावे से कह सकता हूँ कि कंक्रीट के इन घने जंगलों में आप जैसी देवी भी रहती हैं जो एक नरम दिल रखती हैं और इंसानियत की पूजा करती हैं । ” बड़ी देर तक सुधीर रजनी के कदमों में झुका न जाने क्या क्या उससे कहता रहा और अपने मन की भड़ास निकालता रहा । रजनी हैरान थी उसके इस हृदय परिवर्तन पर और उसने तो उसे कब का माफ़ कर दिया था । मन ही मन वह ईश्वर का शुक्रिया अदा कर रही थी और चीखने चिल्लाने के अपने फैसले पर खुद से खुद को शाबासी भी दे रही थी । यदि उसने यह सोचकर कि इस सुनसान विरान जगह पर भला कौन आएगा मदद करने ? नहीं चीखी होती तो ? ……….! आगे सोचकर ही उसकी रूह कांप गई । उसने कहीं पढ़ रखा था इंसान को अंतिम दम तक प्रयास करते रहना चाहिए । प्रयास फलीभूत न भी हुए तो क्या हुआ ? मन में प्रयास किये जाने का संतोष हमेशा बना रहेगा । ‘
अब तक बिरजू , राधे और मन्नू भी पानी से बाहर निकल चुके थे । सुधीर की पीठ पर धीरे से एक धौल जमाते हुए बिरजू बोल पड़ा , ” अबे पहले पानी से तो बाहर निकल और फ़िर बहनजी से माफी मांग । जो दिल की इतनी अच्छी हैं कि तुझे बचाने के लिए अपना दुपट्टा भी उठाकर फेंक दिया था वो तुझे अवश्य माफ कर देंगी । ” सुधीर भी जैसे उसके हुक्म की प्रतीक्षा कर रहा था । हड़बड़ाकर उठने का प्रयास किया और इसी प्रयास में झील के किनारे कड़क चिकनी मिट्टी पर पैर फिसल कर गिर पड़ा । बचने के प्रयास में वह फिर से पानी में गिर पड़ा । उसकी हड़बड़ाहट और फिर बचने का प्रयास देखकर उस भारी माहौल में भी सबकी हंसी छूट गई । रजनी भी खिलखिलाकर हंस पड़ी । गिरा हुआ सुधीर सबको हंसते देखकर और हड़बड़ा गया । इसी हड़बड़ाहट में निकलने का प्रयास करते हुए वह फिर छपाक से पानी में गिर पड़ा ।
हंसते हुए ही बिरजू ने अपना हाथ आगे बढ़ाया और उसका हाथ थाम कर सुधीर पानी से बाहर निकल आया । किनारे पर ही गिरने की वजह से उसकी पतलून कीचड़ से सन गई थी ।
तभी रजनी के मोबाइल से टुन्न की आवाज आई । कोई संदेश आया था उसके मोबाइल में ।
किनारे से परे हटकर रजनी ने मोबाइल की स्क्रीन पर देखा । व्हाट्सएप में एक नया संदेश फ़्लैश हो रहा था । रजनी ने व्हाट्सएप देखा । संदेश अमर का था । उत्सुकता से रजनी ने लिस्ट में से अमर की तस्वीर पर क्लिक किया । रजनी के लिए संदेश था ,” मेरी प्यारी रज्जो ! आज सुबह से ही मन कुछ उदास सा था । तुमसे मिलना चाहता था , कुछ कहना चाहता था । लेकिन फिर हिम्मत नहीं हुई थी । सोचा था तुमसे मिलते ही तुम्हें सारी बात बता दूंगा लेकिन फिर तुम्हें देखते ही मन के भाव मन में ही दफन हो गए । चाहकर भी तुमसे कुछ कह न सका । तुम सोच रही होगी कि ऐसी क्या बात है जो मैं चाहकर भी तुमसे नहीं कह सका । न न कोई कयास न लगाओ ! मुझे कहने दो । रज्जो ! मैं तुम्हारा शुक्रगुजार हूं कि कॉलेज के सैकड़ों काबिल , रईस व सभी तरह से योग्य लड़कों को छोड़कर तुमने मुझे अपने जीवनसाथी के रूप में पसंद किया । सचमुच तुम्हारा वह इकरार आज भी मुझे याद है जब तुमने कहा था ‘ अमर ! मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं ! ‘ यकीन मानों मैंने ईश्वर से उसी पल मांग लिया था कि हे ईश्वर ! काश ! ये पल यहीं थम जाए ! वो पल मेरे जीवन के सबसे मधुर लम्हे थे । हों भी क्यों नहीं । जिसकी एक झलक , एक मुस्कान के दीवाने पूरे कॉलेज के लड़के थे वह मुझसे कह रही थी ‘ मैं तुमसे बहुत प्यार करती हूं ! ‘ मैं सुहाने ख्वाबों में खोकर मदहोश हो गया था । सोचना समझना भूल कर हकीकत से मुंह मोड़कर सपनों की दुनिया में खो गया था । वास्तविकता का ध्यान ही नहीं रह गया मुझे …..! भूल गया था अपने आपको और अपनी औकात भूल कर चांद सितारों को छूने जैसा असंभव प्रयास करने लगा । इसमें शायद कुछ गलती तुम्हारी भी थी रज्जो ! क्यों नहीं देखा तुमने मेरी गरीबी को ? क्यों नहीं देखा मेरी हैसियत को ? क्यों नहीं देखा मेरे सामाजिक दायरे को ? मान सम्मान , हैसियत , रुतबा कहीं से भी तो मैं तुम्हारे नजदीक भी नहीं था । फिर क्या देखा था तुमने मुझमें रज्जो ? शायद यही तुम्हारी गलती थी और मानता हूं मैं गलती मेरी भी थी लेकिन शायद स्वार्थ की मोटी पट्टी मेरे आंखों पर बंध गई थी । स्वार्थ तुम्हारे रुतबे और रईसी से संबंधित नहीं था । मेरा स्वार्थ बस इतना सा था कि मैं किसी भी कीमत पर तुम्हारे जैसा खूबसूरत , हसीन समझदार साथी खोना नहीं चाहता था ……..’
इतना पढ़कर रजनी एक पल के लिए रुकी । उसकी आँखों से आंसू बरसने लगे थे ।

क्रमशः

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।