“कुंडलिया”
“कुंडलिया”
होता है दुख देखकर, क्योंकर बँधे परिंद।
पिजड़े के आगोश में, करो प्यार मत बिंद।।
करो प्यार मत बिंद, हिंद की जय जय बोलो।
दुखता इनका स्नेह, बंद दरवाजा खोलो।।
कह गौतम कविराय, खेत क्यूँ बावड़ बोता।
बहुत मुलायम घास, काश प्रिय पंछी होता।।
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी