राजनीति

चाचा शिवपाल ने दिखा दी सभी पक्षों को अपनी ताकत

सपा मुखिया अखिलेश यादव के चाचा शिवपाल यादव अपनी नई पार्टी प्रगतिशील समाजवादी पार्टी (लोहिया) की जनाक्रोश रैली में अपनी ताकत का प्रदर्शन करने में काफी सीमा तक सफल रहे हैं। लेकिन सपा संस्थापक व संरक्षक मुलायम सिंह यादव उनकी रैली में शामिल हुए और अपने भाई के सिर पर हाथ रखकर उनको अपना आशीर्वाद दिया और उनकी छोटी बहू अपर्णा यादव ने भी मंच पर पहंुचकर सभी को चैंकाने का काम किया है। रैली में जिस प्र्रकार से मुलायम सिंह यादव और अपर्णा पहंुचंी उसके कई राजनैतिक निहितार्थ तलाशे जा रहे हैं। चाचा शिवपाल यादव ने अपने भाषण में कोई नयी बात जनता के सामने नहीं रखी लेकिन समाजवादी पार्टी से अलग होने के कारणों का खुलासा किया और कहा कि चापलूसों की बढ़ती भीड़ व गतिविधियों के कारण ही सपा छोड़ दी, वहां पर उनका कोई मान सम्मान नहीं बचा था।
जनाक्रोश रैली में उन्होंने पीएम नरेंद्र मोदी पर भी तंज कसे और कहा कि आज देश का युवा, किसान तथा अल्पसंख्यक सभी लोग परेशान हैं। उन्होंने अयोध्या पर भी अपनी बात रखते हुए कह डाला कि अयोध्या में विवादित स्थल पर मंदिर नहीं बनना चाहिए और सभी को कोर्ट के फैसले का कुछ और इंतजार कर लेना चाहिए। शिवपाल की बातों से लग रहा था कि केवल अपनी लूट का हिसाब एक दूसरे से मांग रहा है और इसके लिए दोनों ही पक्ष अपनी ताकत का प्रदर्शन रैलियों के माध्यम से कर रहे हैं।
चाचा शिवपाल यादव अभी अधर में हैं लेकिन उनकी राजनीति के कारण प्रदेश में उनके भाई और भतीजे की समाजवादी पार्टी जरूर लहुलूहान होने जा रही है जिसके साफ संकेत दिखायी पड़ रहे हैं। अब आगामी लोकसभा चुनावों में जिन लोगों का टिकट सपा, बसपा, कांग्रेस तथा भाजपा से कटेगा, वे सभी लोग शिवपाल यादव के ही पास जायेंगे। साथ ही जनाक्रोश रैली में शिवपाल यादव ने यह भी दावा किया है कि उनके गठबंधन में प्रदेश के 40 से अधिक छोटे दलों के समूह उनके साथ आ चुका है और प्रगतिशील समाजवादी के नेतृत्व में बन रहा यह छोटा गठबंधन आगामी लोकसभा चुनाव और 2022 के विधानसभा चुनावों में गहरा असर डालेगा। चाचा शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी से भी अगले लोकसभा चुनावों में 50 फीसदी हिस्सा मांग रहे हैं वह कह रह हैं कि यदि उन्हें 50 प्रतिशत टिकट मिल जाये तो वह सपा के साथ भी गठबंधन कर सकते हैं और यदि भाजपा यह कर दे तो वह भाजपा के लिए भी अपनी बैटिंग कर सकते हैं। लेकिन जिस प्रकार से उन्होंने 25 नवंबर को अयोध्या में अयोजित की गयी धर्मसभा का विरोध किया और कहा था कि वहां पर धारा-144 लागू होने के बावजूद धर्मसभा का आयोजन क्यों किया जा रहा है और वह राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग को लेकर अपना मार्च निकालते हुए राजभवन के दरवाजे तक पहुंच गये थे।
उसके बाद यह लगभग साफ हो गया कि चाचा शिवपाल यादव का साथ कम से कम भारतीय जनता पार्टी के साथ नहीं होने जा रहा है। साथ ही जब भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश सरकार ने उनको मायावती का बंगला एलाट किया था, तब यह कहा जा रहा था कि उनकी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ अच्छी पटरी बैठ रही है और वह योगी जी को एक बेहद ईमानदार मुख्यमंत्री बताते रहे हैं, लेकिन यह शिवपाल यादव का केवल झूठ और धोखे का तिलिस्म रचा जा रहा है। यह चाचा शिवपाल यादव उसी के भाई हैं जिन्होंने अयोध्या में निहत्थे हिंदू कारसेवकों का खून बहाया था। भारतीय जनता पार्टी की ऐसे लोगों के साथ कतई नहीं निभ सकती है। लेकिन भारतीय राजनीति में पवित्र और अपवित्र गठबंधनों का लंबा इतिहास रहा है। राजनीति में कुछ भी संभव है। सभी राजनैतिक विश्लेषक एक यह भी अनुमान लगा रहे हैं कि आगामी लोकसभा चुनावों में भतीजे अखिलेश यादव और बुआ मायावती का सपना तोड़़ने के लिए भाजपा का आशीर्वाद परदे के पीछे से शिवपाल के साथ लगा अवश्य है!
यहां पर एक बात और चर्चा में है जिस प्रकार से मुलायम सिंह यादव ने अपने भाई के सिर पर हाथ रखा और उनको आशीर्वाद दिया लेकिन वह अपने भषण में बार-बार समाजवादी पार्टी को ही मजबूत करने का उल्लेख करते रहे। शिवपाल यादव के समझाने के बाद भी वह प्रगतिशील शब्द नहीं बोले, जिससे लोगों के कान खड़े हो गये कि कहीं यह सपा मुखिया अखिलेश यादव और मुलायम सिंह यादव की चाचा की रैली को हाईजेक करने की साजिश तो नहीं थी। या फिर हो सकता है कि मुलायम सिंह दोनों की ताकत को आजमा रहे हों। एक बात यह भी हो सकती है कि मुलायम सिंह चाचा और भतीजे के बीच मध्यस्थता कर रहे हो ताकि अगले लोकसभा चुनावों में सपा को और अधिक नुकसान न हो।
राजनैतिक विश्लेषक अब यह बात भी जानने की कोशिश कर रहे हैं कि सपा नेता मुलायम सिंह यादव ने अपनी मेहनत के बल पर जिस समाजवादी विचारधारा को आगे बढ़ाया, वह उस समाजवादी विचारधारा व अपने परिवार को इस प्रकार अपने सामने बिखरने हुए नहीं देखना चाहते। मुलायम सिंह यादव अब पूरी तरह बेबस दिखायी पड़ रहे हैं। उनकी यही बेबसी उनकी भाषा शैली और चाल-चलन में भी दिखायी पड़ रही है। चाचा और भतीजे की लड़ाई में मुलायम सिंह यादव की अपनी आभा ध्वस्त होती जा रही है और यदि यही हाल रहा तो समाजवादी दल आने वाले दिनों में और अधिक बिखरा हुआ नजर आयेगा। उत्तर प्रदेश की राजनीति का भविष्य तो पांच प्रांतों के विधानसभा चुनावों पर निर्भर करता है कि वहां का ऊंट किस करवट बैठ रहा है यदि बीजेपी अपने राज्यों को किसी प्रकार से बचाने में सफल रहती है, तब तो ठीक है, नहीं तो आने वाला समय यहां पर भी बहुत कठिन हो जायेगा। चुनाव परिणामों के बाद ही चाचा और भतीजे के बीच नया संघर्ष और प्रदेश की राजनीति का नया स्वरूप आकार लेता दिखायी पड़ेगा।

— मृत्युंजय दीक्षित