पुस्तक समीक्षा

बाल साहित्य का उम्दा सैद्धांतिक विवेचन

समीक्षा— 

पुस्तक: हिन्दी बालसाहित्य का सैद्धांतिक विवेचन

लेखक: डॉ. परशुराम शुक्ल

समीक्षक: ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’  ९४२४०७९६७५

पृष्ठ: 240

मूल्य: 95 रुपए

प्रकाशक: आराधना ब्रदर्स, 124/152—सी, ब्लाक

गोविंदनगर कानपुर. 208006 उप्र

भारत में बालसाहित्य की समृद्ध परंपरा रही है. दादीनानी ने इसे वाचिक रुप से हमेशा आगे बढ़ाया है. श्रुति रूप में हमारे देश में बालसाहित्य का समृद्ध भंडार पड़ा है. इस में लोककथाएं, मिथ कथाएं, मुहावरे, लोकोक्ति कथाएं भरी पड़ी है. मगर, इस के सैद्धांतिक विवेचन की बात आती है तो हम बगले झांकने लगते हैं.

बालसाहित्य की अवधारणा के विश्लेषण के लिए पुस्तकों की कमी है. जब कि हिन्दी साहित्य की अनेक पुस्तकें ओर ग्रंथ प्रकाशित किए है, जिस में साहित्य का काल और उस का स्वरूप का विस्तृत विवेचन मिलता है. इस ओर साहित्य यानी बालसाहित्यकारों को ध्यान देने की जरूरत है.

बालसाहित् की इसी कमी को पूरा करने के लिए हिन्दी बाल साहित्य का सैद्धांतिक विवेचन का सूत्रपात डॉ. परशुराम शुक्ल ने किया है. आप सूचनात्मक साहित्य लेखन के बहुविज्ञ वक्ता, विशेषज्ञ और रचनाकार है. आप की बालसाहित्य में इस ग्रंथ के रूप में पहल सराहनीय है.

बाल साहित् विवेचन की इस पुस्तक में दस अध्याय हैं. इस का प्रथम अध्याय हिन्दी बाल साहित्य के इतिहास पर केंद्रित है. जिस में विशद् अध्ययन द्वारा रचनाकार ने बाल साहित्य के इतिहास की विवेचना करने की सफल कोशिश की हे. साहित् के इतिहास की तरह बाल साहित्य के इतिहास की एैतिहासकिता के परिपेक्ष्य में इस की सैद्धांतिक पड़ताल की है.

दूसरा अध्याय बाल उपन्यास पर आधारित है. बाल साहित्य में बाल उपन्यास की उपादेयता, स्वरूप, तत्व , प्रकार, अनुवाद, रूपांतर आदि का गहन विवेचन प्रस्तुत किया गया है. वही तीसरे अध्याय में बाल धारावाहिक की अवधारणा पर आधारित है. जिस के स्वरूप, तत्व आदि पर इस में विशद् विवेचन किया गया है.

चौथा अध्याय लोककथा पर केंद्रित है. इस की एैतिहासिकता के साथसाथ  इस की व्यापकता, स्वरूप ओर उपादेयता को इस अध्याया में बखूबी रेखांकित किया गया है. इस अध्याय में लोककथा के कथातत्व के वर्णन ने इस अध्याय की रोचक और अविस्मरणीय बना दिया है.

पांचवा अध्याय कहानी राजारानी की, पर आधारित है. इस का व्यापक दृष्टि से रोचक, कहानी  स्वरूप, उपयोगिता ओर उपादेयता के आधार पर विस्तृत विवेचन की गई है. जो किसी बाल लेखक के गहन, अध्ययन और मनन को रेखांकित करता है. इस में कथातत्व, उस का स्वरूप और उस के तत्व का सुंदर विवेचन किया गया है. यह इस अध्याय की महत्वपूर्ण विशेषता भी है.

छटा अध्याय परीकथा पर आधारित है. इस में परीकथा का स्वरूप, उस के गुण, रूप और तौरतरीके के साथसाथ उस के व्यवहार और कथातत्व आदि पर विशद् विवरण इस का अध्याय की विशेषता है. बाल साहित्याकार इस अध्याय को पढ़ कर अपनी लेखनी में नई दृष्टि में व्यापकता प्राप्त कर सकता है.

सातवां अध्याय बाल फैंटसी पर आधारित है. यह फैंटसी की दुनिया की सैर करता है. इस का इतिहारस, कब, कहां और कैसे शुरू हुआ ? की यह विशद् विवेचन करता है. कथातत्व में फैंटसी के तत्व की विवेचना करता है. कथातत्व में फैंटसी के त्तव को समाहित करने की प्रेरणा देना इस अध्याय की मुख्य विशेषता है.

आठवां अध्याय बाल एकांकी पर आधारित है. बाल एकांकी के स्वरूप पर विस्तृत प्र्काश डालना इस अध्याय का मुख्य उद्देश्य है. इस के स्वरूप पर प्रकाश डालने का काम यह अध्याय बखूबी करता है. वही नौवां अध्याय शिशुगीत और बाल कविता पर केंद्रित है. जिस की उपादेयता  को इस की विस्तृत विवेचना को पढ़ने के बाद हम समझ सकत है. इस अध्याय में इन की बहुत बारीकी से सूक्ष्म विवेचना की गई है.

दसवां अध्याय सूचनात्मक बाल साहित्य का विशद् अध्ययन प्रस्तुत करता है. इस अध्याय में सूचनात्मक साहित्य के स्वरूप, इस की उपलब्धता, उस के महत्व आदि की विस्तृत व्याख्या करता है.

कुला मिला कर बाल साहित्य के विशद् अध्ययन और उस के स्वरूप को रोचक ढंग से इस पुस्तक में विवेचित किया गया है. यह पुस्तक बाल साहित्यकारों को एक नई दृष्टि प्रदान करती है. उन्हें अपने लेखन में निखार लाने में उपयोगी सिद्ध होगी.

240 पृष्ट की 95 रुपए मूल्य की यह पुस्तक केंदीय हिन्दी निदेशालय के आर्थिक सहयोग से प्रकाशित की गई है. इसलिए इस का मूल्य वाजिब रखा गया है मुख्य पृष्ठ  आकर्षक है. मुद्रण साफसुथरा और उम्दा है. भाषा शैली रोचक और सरल है. पूरा विवरण कथातत्व में समेटा गया ळै इसलिए पूरी पुस्तक सरस, सलिस और सुंदर बन पड़ी है.

इस का बाल साहित्य की श्रीवृद्धि में स्वागत किया जाएगा. ऐसी मेरी आशा है.

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दिनांक 11.12.2018

ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’

पोस्ट आफिस के पास रतनगढ़

जिला— नीमच—458226 मप्र

9424079675

डॉ परशुराम शुक्ल

*ओमप्रकाश क्षत्रिय "प्रकाश"

नाम- ओमप्रकाश क्षत्रिय ‘प्रकाश’ जन्म- 26 जनवरी’ 1965 पेशा- सहायक शिक्षक शौक- अध्ययन, अध्यापन एवं लेखन लेखनविधा- मुख्यतः लेख, बालकहानी एवं कविता के साथ-साथ लघुकथाएं. शिक्षा-बीए ( तीन बार), एमए (हिन्दी, अर्थशास्त्र, राजनीति, समाजशास्त्र, इतिहास) पत्रकारिता, लेखरचना, कहानीकला, कंप्युटर आदि में डिप्लोमा. समावेशित शिक्षा पाठ्यक्रम में 74 प्रतिशत अंक के साथ अपने बैच में प्रथम. रचना प्रकाशन- सरिता, मुक्ता, चंपक, नंदन, बालभारती, गृहशोभा, मेरी सहेली, गृहलक्ष्मी, जाह्नवी, नईदुनिया, राजस्थान पत्रिका, चैथासंसार, शुभतारिका सहित अनेक पत्रपत्रिकाआंे में रचनाएं प्रकाशित. विशेष लेखन- चंपक में बालकहानी व सरससलिस सहित अन्य पत्रिकाओं में सेक्स लेख. प्रकाशन- लेखकोपयोगी सूत्र एवं 100 पत्रपत्रिकाओं का द्वितीय संस्करण प्रकाशनाधीन, लघुत्तम संग्रह, दादाजी औ’ दादाजी, प्रकाशन का सुगम मार्गः फीचर सेवा आदि का लेखन. पुरस्कार- साहित्यिक मधुशाला द्वारा हाइकु, हाइगा व बालकविता में प्रथम (प्रमाणपत्र प्राप्त). मराठी में अनुदित और प्रकाशित पुस्तकें-१- कुंए को बुखार २-आसमानी आफत ३-कांव-कांव का भूत ४- कौन सा रंग अच्छा है ? संपर्क- पोस्ट आॅफिॅस के पास, रतनगढ़, जिला-नीमच (मप्र) संपर्कसूत्र- 09424079675 ई-मेल opkshatriya@gmail.com

One thought on “बाल साहित्य का उम्दा सैद्धांतिक विवेचन

  • लीला तिवानी

    आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय “प्रकाश” जी, आपने बाल साहित्य का उम्दा सैद्धांतिक विवेचन की समीचीन समीक्षा की है. निःसंदेह यह पुसतक पठनीय है. हम अवश्य इसे पढ़ने की कोशिश करेंगे.

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