कविता

मेरी चुनिंदा कहानी

काले रंग की आड़ केलर,
पलकों की हरकतों से,
बेहद अदाएँ बरसानेवाली,
लुका-छिपी आँखों की नमी में,
ढकी-छिपी थी,
मेरी चुनिंदा कहानी।

आँख से होकर हँसी-बातों तक,
हाथ से होकर कंधे-बाहों तक,
अधर से होकर छाती से भी तक,
लिखती-बढ़ती थी,
मेरी चुनिंदा कहानी।

एक ही देश के क्यों न हो,
प्रेम हमारा, दो दिलों का था।
एक ही भाषी क्यों न हो,
साथ जीने का वादा रहा था।
एक ही हालत में क्यों न हो,
उनका मेरे साथ आना कबूल था।
फिर भी
नियति ने अधूरी कर रखी है,
मेरी चुनिंदा कहानी।