मेरे हिस्से आंँसू आये
मेरे मन की पीड़ा आखिर जाकर तुमको कौन सुनाये
तुमको हँसी खुदा ने सौपी मेरे हिस्से आँसू आये
आशाओं के सूने पथ पर थक-थककर चल लेता हूं
एक दीप हूँ खण्डर का मैं बुझते बुझते जल लेता हूं
दिल तुमसे नाराज बहुत है इन आँखो में लाज बहुत है
बाहर – बाहर चुप लगता है भीतर से आवाज बहुत है
आग अगर भीतर बहुत हो तब ये आँखे भर आती है
जीवन के अथाह सागर में जलता ही जीवन है अपना।
मन का टूटा साज बहुत है भीतर से आवाज बहुत है
भले मूल मत लौटाना तुम लेकिन तुम पर ब्याज बहुत है।
— कालिका प्रसाद सेमवाल
मानस सदन अपर बाजार रुद्रप्रयाग उत्तराखण्ड