वेदों की मनमानी व्याख्या करने का विरोध
विगत कुछ वर्षों से विश्व पुस्तक मेले में इस्लामिक मान्यता वाले कुछ लोग वेद और क़ुरान को समान बताने का एक षड़यंत्र चला रहे हैं। इस षड़यंत्र के तहत हर वर्ष विभिन्न नामों से एक स्टाल पर वेदों के मनमाने अर्थ कर उन्हें क़ुरान समान बताने का असफल प्रयास करते हैं। आर्यसमाज के गुरुकुल के ब्रह्मचारियों ने जब उनके इस चाल का विरोध किया तो बहानेबाजी करने लगे। उनके ज्ञान की गहराई इस कथन से ही स्पष्ट हो जाती है कि उन्हें यह तक नहीं मालूम कि वेद में श्लोक नहीं मंत्र होते हैं। इस लेख में उनके द्वारा फैलाये कुछ भ्रम को उजागर करेंगे।
भ्रम नंबर 1- क्या वेदों में मुहम्मद साहिब का वर्णन है?
इस्लामिक स्टाल वाले अथर्ववेद के कुंताप सूक्त में नराशंस के नाम पर मुहम्मद साहिब को दर्शाना का असफल प्रयास कर रहे हैं। यह छल नहीं तो क्या हैं? इस भ्रम के इतिहास को जानना आवश्यक हैं। अहमदिया जमात से सम्बन्ध रखने वाले अब्दुल हक विद्यार्थी ने 1940 में एक पुस्तक लिखी थी। जिसका नाम था Muhammad in world scriptures अर्थात विश्व ग्रंथों में मुहम्मद साहिब। इस पुस्तक में अब्दुल हक़ ने यह दर्शाने का असफल प्रयास किया था कि विश्व के प्रत्येक धर्मपुस्तक में मुहम्मद साहिब का वर्णन हैं। अब्दुल हक़ को उस काल के आर्यसमाज के विद्वानों ने यथोचित उत्तर दिया था। तब यह मामला दब गया। लगभग एक दशक पहले इस विस्मृत प्रकरण को दोबारा उछाला गया। डॉ वेद प्रकाश उपाध्याय के नाम से एक लेखक ने “नराशंस और अंतिम ऋषि” नामक एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में अब्दुल हक़ का बिना नाम लिए अथर्ववेद के कुंताप सूक्त से वेदों में मुहम्मद साहिब का होना टेप लिया गया। अब हक़ का नाम लेना उनके लिए हराम था। क्यूंकि मिर्जा गुलाम अहमद कादियानी के अहमदी सम्प्रदाय को इस्लाम में मुसलमान ही नहीं माना जाता। डॉ ज़ाकिर नाइक ने भी यही नकल उतारी। वेदों में नराशंस शब्द से मुहम्मद की कल्पना कर इस्लामिक जगत में खूब प्रशंसा बटोरी। मगर इस भ्रम की उत्पत्ति कहाँ से हुई यह भेद किसी को नहीं बताया। वेद मन्त्रों के साथ इस प्रकार की खींचातानी कर भ्रम फैलाना गलत है। ऐसी खींचातानी तो क़ुरान की आयतों के साथ भी की जा सकती है। आपको दिखाता हूँ। क़ुरान पिछले 1400 वर्षों से स्वामी दयानंद का एक नहीं, दो नहीं अपितु 114 बार गुणगान कर रही हैं। “दया” शब्द का अरबी अनुवाद होता है रहम और रहम करने वाला रहीम। इसलिए दयानन्द का अरबी नाम हुआ रहीम और स्वामी दयानंद का अरबी अनुवाद हुआ दरवेश-ए-रहमत। रहीम शब्द क़ुरान में 114 बार आया है। इससे यही सिद्ध हुआ कि क़ुरान स्वामी जी का मुहम्मद साहिब से भी अधिक गुणगान करती है। क़ुरान की अनेक आयतों से आर्यसमाज के अनेक महान विद्वानों के नाम को इस प्रकार से सिद्ध किया जा सकता हैं।
भ्रम नंबर 2- क्या वेदों में वर्णित ईश्वर और क़ुरान में वर्णित अल्लाह एक है?
स्टाल लगाने वालों ने यह दावा किया है कि वेद और क़ुरान दोनों में एक ईश्वर का वर्णन है। यह सही है कि वेदों में एकेश्वरवाद अर्थात एक ईश्वर का वर्णन मिलता है। मगर वेदों में मनुष्य रूपी आत्मा और ईश्वर दोनों के मध्य वेदों में कोई मध्यस्थ नहीं हैं। इस्लाम में मनुष्य और ईश्वर के मध्य लाखों फरिश्ते, पैगम्बर मुहम्मद, जिन्न, शैतान न जाने क्या क्या हैं। क़ुरान में मध्यस्थ की सिफारिश से ईश्वर का प्रभावित होना भी है। यह क़ुरान के ईश्वर की अन्य पर निर्भरता सिद्ध करता है जबकि वेदों का ईश्वर किसी पर भी आश्रित नहीं है। वेदों का ईश्वर एक भी है और सर्वशक्तिमान भी है। उसे किसी क़ुरान के ईश्वर के समान मध्यस्थ की आवश्यकता ही नहीं है। अगर क़ुरान को मानने वाले इस वेदों की इस मान्यता को स्वीकार कर ले इस्लाम में क्रांतिकारी परिवर्तन हो सकता हैं। क्यूंकि पुरे विश्व में इस्लाम के नाम पर विवाद का मुख्य कारण ही मध्यस्त हैं। इस्लामिक स्टाल वालों को यह पढ़कर अपना भ्रम दूर कर लेना चाहिए।
भ्रम नंबर 3- इस्लामिक बहिश्तऔर वैदिक स्वर्ग। क्या दोनों एक है?
इस्लाम में जन्नत को प्राप्त करना जीवन का उद्देश्य बताया गया है। जबकि वैदिक मान्यता में मोक्ष जीवन का उद्देश्य हैं। अनेक इस्लामिक विद्वानों के अनुसार इस्लामिक जन्नत की हसीन हूरें, अंगूर की रसीली शराब, मीठा पानी, चश्मे किसी भीष्म गर्मी से त्रस्त रेगिस्तानी गडरिये की अनोखी कल्पना मात्र प्रतीत होते हैं। वैदिक स्वर्ग किसी सृष्टि में विशेष स्थान का नाम नहीं हैं। अपितु इसी धरती पर सुख पूर्वक रहना, सकल सृष्टि के प्राणी मात्र सामान समझना स्वर्गमय जीवन का अंग हैं। इस्लामिक जन्नत के चक्कर में विश्व में पिछले 1400 वर्षों से इतना खून-खराबा होता आया है। जन्नत के चक्कर में इस धरती को नरक अर्थात दोज़ख ही बनाकर रख दिया गया हैं। वर्तमान में विश्व के अधिकांश इस्लामिक देश हिंसा और फिरकापरस्ती के झगड़े के चलते मनुष्य के रहने लायक नहीं रहे हैं। इसलिए इस्लाम की मिथक जन्नत के चक्कर में धरती को नर्क न बनाये। इसे स्वर्ग बनाने में योगदान दे। वेदों का यह सन्देश न केवल व्यवहारिक है अपितु सत्य भी हैं।
भ्रम नंबर 4- क्या क़ुरान के ईश्वर और वेद के ईश्वर दोनों निराकार हैं?
इस्लामिक बुक स्टाल वाले क़ुरान के ईश्वर और वेद के ईश्वर दोनों को निराकार बता रहे हैं। यह बड़ी गड़बड़ है। वेदों का ईश्वर निराकार, सर्वदेशीय और सर्वव्यापक है। जबकि क़ुरान का ईश्वर एकदेशीय अर्थात एक स्थान पर रहने वाला एवं साकार हैं। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार क़ुरान का अल्लाह सातवें आसमान पर रहता है। मुहम्मद साहिब लड़की के सर वाले और पंख वाले बराक गधे पर बैठकर उससे मिलने रोज़ रात में जाते थे। वह अनेक पर्दों के भीतर रहता हैं। अल्लाह एक तख़्त पर विराजमान है जिसके नीचे पैर रखने की चौकी हैं। उस तख़्त को फ़रिश्ते उठाये हुए हैं। इस्लामिक साहित्य में अल्लाह के ऐसे वर्णन से यह सिद्ध हो जाता है कि अल्लाह साकार है। अब साकार सत्ता एकदेशी अर्थात एक स्थान तक सीमित होती है। एक स्थान पर सीमित सत्ता सर्वव्यापक अर्थात सृष्टि में हर स्थान पर नहीं होगी। इसके विपरीत वेदों में दर्जनों मन्त्र ईश्वर को निराकार सिद्ध करते है। निराकार सत्ता ही सर्वदेशीय और सर्वव्यापक होगी। इसलिए वेदों में ईश्वर विषयक कथन सत्य और ग्रहण करने योग्य हैं। मेरे विचार से इस्लामिक स्टाल वालों को वेदों में वर्णित ईश्वर का गहन स्वाध्याय करना चाहिए।
भ्रम नंबर 5- क्या वेद और इस्लाम दोनों एकेश्वरवाद की बात करते है?
इस्लामिक स्टाल वाले कह रहे है कि वेद और इस्लाम में एकेश्वरवाद है जो बहुदेवतातवाद के विरुद्ध हैं। इसलिए दोनों समान है। पैगम्बर मुहम्मद रसूल साहिब से लेकर लाखों फरिश्तों को मानने वाला इस्लाम बहुदेवतावाद का समर्थक नहीं तो क्या है? वेदों में वर्णित देव शब्द को समझे। देव शब्द दा, द्युत और दिवु इस धातु से बनता हैं। इसके अनुसार ज्ञान,प्रकाश, शांति, आनंद तथा सुख देने वाली सब वस्तुओं को देव कहा जा सकता हैं। यजुर्वेद[14/20] में अग्नि, वायु, सूर्य, चन्द्र वसु, रूद्र, आदित्य, इंद्र इत्यादि को देव के नाम से पुकारा गया हैं। देव शब्द का प्रयोग सत्यविद्या का प्रकाश करनेवाले सत्यनिष्ठ विद्वानों के लिए भी होता हैं क्यूंकि वे ज्ञान का दान करते हैं। देव का प्रयोग जीतने की इच्छा रखनेवाले व्यक्तियों विशेषत: वीर, क्षत्रियों, परमेश्वर की स्तुति करनेवाले विद्वानों, ज्ञान देकर मनुष्यों को आनंदित करनेवाले सच्चे ब्राह्मणों, प्रकाशक, सूर्य,चन्द्र, अग्नि, सत्य व्यवहार करने वाले वैश्यों के लिए भी होता हैं। वेदों के अनुसार केवल पूजा के योग्य केवल एक सर्वव्यापक, सर्वज्ञ, भगवान ही हैं। जबकि सम्मान के योग्य जनों को देव कहा गया है। इस्लामिक स्टाल वाले यहाँ भी गच्चा खा गए।
यहाँ पर मैंने कुछ उदहारण देकर यह सिद्ध किया है कि कैसे इस्लामिक स्टाल वाले स्वयं भ्रमित हैं। वेदों को बिना जाने व्यर्थ खींचतान करने उन्हें क़ुरान के साथ नत्थी कर भ्रम ही फैला रहे हैं।
— डॉ विवेक आर्य
NDTV द्वारा पुस्तक मेले में हुए विवाद का समाचार इस लिंक पर प्रकाशित किया गया हैं।