सामाजिक

नारी के बिना अधूरा है नर

हमारी भारतीय संस्कृति में  सदैव ही नारी जाति का स्थान पूज्यनीय एवं वन्दनीय रहा है, नारी का रूप चाहे मां के रूप में हो, बहन के रुप में हो, बेटी के रुप में हो या फिर पत्नी के रूप में हो सभी रुपों में  नारी का सम्मान किया जाता है।  यह बात आदिकाल से ही हमारे पौराणिक गाथाओ में विद्यमान रही है। और आज भी जगह –जगह देवी के रुप में पूजी जाती हैं। नौ रात्रों में क्न्या खिलाने की प्रथा आज भी विद्यमान है। हमें यह भी ज्ञात है कि नारी प्रेम, स्नेह, करूणा एवं मातृत्व की प्रतिमूर्ति है। इसलिए जरुरी है की नारी का ख्याल रखना जरुरी है।

नारी की दीनहीन दशा देखकर कई समाज सुधारको ने प्रयत्न किया और आज सरकारी स्तर पर इन्हे समान दर्जा प्राप्त है। राजाराम मोहन राय के अथक प्रयास से सती प्रथा का अंत हुआ।फिर नारी की दशा सुधारने के लिए आचार्य विनोवा भावे ,स्वामी विवेकानंद ने भी काम किया। ईश्वर चंद विद्या सागर के प्रयास से विधवाओं की स्थिति सुधारने के लिए विधवा पुनर्विवाह अधिनियम 1856 आया। नारी की स्थिति सुधारने के लिए- अनैतिक ब्यपार रोकथाम अधिनियम-1956, दहेज रोक अधिनियम-1961,पारिश्रमिक एक्ट 1976,मेडिकल टर्म्मेशन आँफ प्रिगनेंसी एक्ट 1987,लिंग परीक्षण तकनीक( नियंत्रक और गलत इस्तेमाल)एक्ट 1994, बाल विबाह रोकथाम एक्ट 2006,कार्य स्थलो पर महिलाओं का शोषण एक्ट 2013  आदी महिलाओं के सामाजिक,आर्थिक और राजनैतिक स्तर सुधारने के लिए काफी प्रयास किये गये है। इसी का परिणाम है कि 2001 की जनगणना में जहा महिलाओं की संख्या प्रति 1000 पुरुषों  पर 933 थी जो 2011 की जनगणना में 943 हो गई।

विश्व की आधी आबादी महिलाओं की है, लेकिन भारतीय समाज में महिला को वह स्थान आज तक प्राप्त नहीं हो सका है जिसकी वह हकदार है। भारतीय समाज सदैव से ही पुरुष प्रधान माना गया है, लेकिन 21 वीं सदी में अब स्थिति बदलने लगी है। स्क्षियों को पुरुष के समान दर्जा दिया जाने लगा है।आज भारतीय महिलाये प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों से कंधा से कंधा मिलाकर अपना योगदान दे रही है। चाहे बात शिक्षा की हो, बैंकिंग क्षेत्र की हो, स्वास्थ्य की हो,रक्षा की हो,  मनोरंजन की हो,रेल चलाने की हो या हवाई जहाज उड़ाने की,  आई.टी. क्षेत्र हो अथवा राजनैतिक क्षेत्र हो हर क्षेत्र में सक्रिय हैं। कई राज्यो ने तो स्थानीय निकाय चुनावों में 50 %  का आरक्षण  भी दे रखा है।  इसके विपरीत हमारे देश में महिलाओं पर अत्याचार की बढ़ती घटनाओं ने भारतीय नारी की सुरक्षा पर ही प्रश्नचिन्ह लगा दिया है। देश की राजधानी दिल्ली सहित कई प्रदेशों में नारी के साथ अत्याचार अभी भी जारी है।

पितृसतात्मक सत्ता में नारी को सम्बल बनाने की जरुरत है  ताकि  इनकी सामाजिक,आर्थिक औऱ राजनैतिक  स्तर सशक्त हो सके। आज समस्त समाज एकजुट होकर ,   नारी सम्मान एवं उसकी सुरक्षा के सम्मान का संकल्प लेना चाहिय़े।  हम जानते हैं कि नारी के बिना सृष्टि सृजन की कल्पना अधूरी है। वंश चलाने की वात करने वालों लड़के को भी नारी ही जन्म देती है। इसके सहयोग के विना लड़का हो या लड़की कोई भी पैदा नही हो सकता है। जिस प्रकार कोई भी पक्षी एक पंख के सहारे उड़ नहीं सकता, उसी प्रकार नारी के बिना पुरुष की कल्पना भी नहीं की जा सकती।  यदि हम नारी को भयमुक्त वातावरण देने   और आत्मसम्मान के साथ खड़ा करने में सहयोगी बन सके, तो यह हमारे औऱ समाज के लिए गर्व की बात होगी।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बेटी बचाओं बेटी पढ़ाओं अभियान की  नींव रखा है। इसका परिणाम भी धीरे –धीरे  दिखने लगा है। सन 2018 में अन्त महिला दिवस का थीम था-: “प्रेस औऱ प्रोगरेस” वही 2019 में भी महिलाओं के शिक्षा ,स्वास्थ्य ,एवं समानता सहित्य अन्य मुद्दों पर जोर रहेगा।

अन्त. महिला दिवस का इतिहास

सन् 1908  में अमेरिका के न्यूयार्क शहर में  15,000 महिलाओं को वोट का अधिकार दिया गया। फिर 1909 में सोशलिस्ट  पार्टी आँफ अमेरिका  द्वारा  28 फरवरी को महिला दिवस मनाया गया। सन 1910 में सोशलिस्ट इंटरनेशनल द्वारा कोपेनहेगन में महिला दिवस की  स्थापना हुई। इसी वर्ष जर्मनी में भी  सोशल डेमोक्रेटिभ  पार्टी द्वारा महिला दिवस मनाया गया। सन 1911 में 19  मार्च को  आस्ट्रीया, डेनमार्क, जर्मनी,  स्वीट्जरलैंड आदी सहित कई  देशों की महिलाओं ने एक रैली निकाली । 1913-14  प्रथम विश्वयुद्ध के  दौरान लाखों सैनिक  मारे  गये इसके लिए फरवरी के अंतिम ऐतवार को महिलाओं ने एक शांति मार्च निकाला । सन 1913 में ही इसे 19 मार्च के स्थान पर  8 मार्च को मनाया गया ।   आगे चलकर 1975  में संयुक्त राष्ट्रसंघ ने भी महिलाओं के चहुमुखी विकास के लिए इसे अन्त. स्तर पर मनाने की मान्यता प्रदान कर दी।  तब से अब  तक हर साल 8 मार्च को  महिलाओं के सर्वांगिण विकास के लिए अन्त.महिला दिवस मनाते  आ रहे हैं।

— लाल बिहारी लाल, वरिष्ठ साहित्यकार एवं पत्रकार ,नई दिल्ली

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लाल बिहारी गुप्ता लाल

जन्म : 10 अक्टूबर 1974 जन्म स्थान : ग्राम+पो. श्रीरामपुर, भाया - भाथा सोनहो, जिला-सारण (छपरा), बिहार-841460 माता : (स्व.) मंगला देवी पिता : (स्व.) सत्य नरायण साह पत्नी : श्रीमती सोनू गुप्ता संतान : पुत्र ज्येष्ठ—रवि शंकर (11वीं अध्ययनरत); कनिष्ठ—कृपा शंकर (11वीं अध्ययनरत) शिक्षा : स्नातकोत्तर (एम.ए.)-हिन्दी सम्प्रति : वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय, उद्योग भवन, नई दिल्ली में कार्यरत संपादित कृतियाँ : 1. समय के हस्ताक्षर (2006) 2 लेखनी के लाल (2007) 3 माटी के रंग (2008) 4 धरती कहे पुकार के (2009) तथा कोलकाता से प्रकाशित हिन्दी साहित्यिक पत्रिका “साहित्य त्रिवेणी” के पर्यावरण विशेषांक का संपादन (2011) भाषा ज्ञान : हिन्दी, भोजपुरी एवं अंग्रेजी विशेष : हिन्दी एवं भोजपुरी की कविताएँ एवं गीत देश के विभिन्न साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं में छपती रहती हैं। लाल कला साहित्य एवं सामाजिक चेतना मंच (रजि.) बदरपुर, नई दिल्ली-110044 के संस्थापक सचिव। भोजपुरी गीतों का आडियो एवं वी.सी.डी. टी. सीरीज, एच. एम. वी., वीनस सहित देश की कई नामी-गिरामी कंपनियों से बाजार में हैं। संपर्क : 265 ए / 7, शक्ति विहार, बदरपुर, नई दिल्ली - 110044 फोन : 098968163073 // 07042663073 ई-मेल : [email protected], [email protected]