लघुकथा

लघुकथा – दुखिया संसार

रामचरन बरमादे के कोने में पड़ी टूटी-फूटी चारपाई पर पड़े-पड़े खांस रहे थे | सामने से पुराने टाट की तिरपाल लटक रही थी, जिससे बाहर वाला कोई उन्हें देख नहीं सकता था | हाँ सिर्फ आवाज़ ही सुनाई पड़ती थी |

बेचारे रामचरन टूटी खटिया पर पड़े-पड़े अपने अतीत में चले गये | किस तरह पाई-पाई जोड़कर इस घर को उन्होंने बनाया था | अपनी धर्मपत्नी सुखप्यारी का समय पर इलाज भी रुपयों के लोभ में नहीं कराया और परिणामस्वरूप सुखप्यारी समय से पहले रामचरन जी का साथ छोड़कर चलबसीं | रामचरन ने किसी तरह अपने दु:ख को छिपाया और दोनों बेटों को अच्छे से पढ़ाया-लिखाया, शादी-ब्याह किया |

तभी बड़ी बहू की कड़कती आवाज आई – ‘कल ही तो हमने रोटी दी थी, आज छोटी की बारी है | रोज-रोज हम नहीं खिला सकते |’

रामचरन जी अपने अतीत से वर्तमान में आ गये | उन्हें ऐसा लगा जैसे किसी ने उनके कानों में सीसा पिघलाकर उढ़ेल दिया हो | वे प्रभु से प्रार्थना करने लगे – हे! प्रभु अब और नहीं जीना इस दुखिया संसार में, अपने पास बुलालो, यहाँ कोई किसी का नहीं…? सब नाते रिस्ते झूठे हैं |

— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा 

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111